Friday, March 29, 2024
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दबाई जा रही असहमति की आवाज, विपक्षी दल राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मिल कर कहा- देश में खौफ का माहौल,

SI News Today

कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की अगुवाई में 13 प्रमुख विपक्षी दलों के सांसदों ने बुधवार को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मुलाकात की। इन नेताओं ने राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंप कर कहा कि असहमति की आवाज दबाई जा रही है। गलतबयानी की जा रही है। राष्ट्रवाद के नाम पर धार्मिक भावनाएं भड़काई जा रही हैं। मोरल पुलिसिंग, गौ रक्षक दलों और एंटी रोमियो स्क्वायड की गतिविधियां समेत कई ऐसे काम किए जा रहे हैं जो लोकतंत्र के लिए हितकर नहीं हैं। प्रणब मुखर्जी से मिल कर लौटने के बाद संवाददाताओं से बातचीत में राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि देश में भय और असुरक्षा का माहौल बन गया है और असहमति की आवाज दबाई जा रही है। उन्होंने कहा कि हमने राष्ट्रपति से हस्तक्षेप का आग्रह किया है ताकि संवैधानिक लोकतंत्र और नागरिकों के बुनियादी अधिकारों की रक्षा की जा सके और देश में कानून की शासन स्थापित हो सके।

विपक्ष के नेताओं के प्रतिनिधिमंडल में कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खरगे, तृणमूल के सुखेंदु शेखर राय, कांग्रेस के अहमद पटेल, एके एंटनी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के तारीक अनवर, बसपा के सतीश चंद्र मिश्र, भाकपा के डी राजा, राजद के जयप्रकाश नारायण यादव आदि शामिल थे। शिष्टमंडल ने इस दौरान ईवीएम में छेड़छाड़ का मुद्दा भी उठाया। गुलाम नबी आजाद के अनुसार, हाल में संपन्न हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में ईवीएम के खराब होने और उसके साथ छेड़छाड़ ने समूची चुनावी प्रक्रिया की शुचिता पर सवाल खड़े किए हैं। विपक्ष ने प्रमुख विधेयकों को वित्त विधेयक के रूप में पारित कराने में राज्यसभा की अनदेखी का सवाल भी राष्ट्रपति के सामने उठाया।

आजाद ने कहा कि संवैधानिक संस्थाओं पर हमले किए जा रहे हैं। विश्वविद्यालयों, शिक्षा केंद्रों, सांस्कृतिक और इतिहास शोध से जुड़े संस्थानों की स्वायत्तता पर हमले किए जा रहे हैं। नेहरू मेमोरियल म्युजियम और लाइब्रेरी केंद्र की मौजूदा सरकार के खास निशाने पर है। इस संस्थान ने आजादी की लड़ाई का इतिहास और दस्तावेजों को संभाल कर रखा है। अब यहां ऐसे लोगों की भरमार कर दी गई है, जिनका भारत के राष्ट्रीय आंदोलनों और देश के नायकों के सिद्धांतों से कोई लेना देना नहीं। इसी तरह नालंदा विश्वविद्यालय की स्वायत्तता का हनन किया जा रहा है।

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