Monday, April 28, 2025
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पितृ पक्ष की अमावस्या को ही क्यों किया जाता है सभी पितरों का श्राद्ध, जानिए वजह..

SI News Today

हिंदी कैलेंडर कस अनुसार भाद्र पक्ष की पूर्णिमा से पितृ पक्ष खत्म होने वाला है। कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक पितृ पक्ष चलता है। इस दौरान अपने पितरों की मोक्ष प्राप्ति के लिए पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है। इसे महापर्व भी बोला जाता है, इसके बाद आना वाले दुर्गा पूजा में 9 दिन का महोत्सव होता है और इससे पहले गणेश उत्सव में भी 11 दिन का उत्सव होता है लेकिन पितृ पक्ष सोलह दिन तक चलता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दौरान हमारे पूर्वज मोक्ष प्राप्त करने के लिए अपने परिजनों के निकट आते हैं। इस पर्व में अपने पितरों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता व उनकी आत्मा के लिए शान्ति देने के लिए श्राद्ध किया जाता है। ज्योतिषों के अनुसार जिस तिथि को माता-पिता, दादा-दादी आदि परिजनों की मृत्यु होती है, उस तिथि पर इन सोलह दिनों में उनका श्राद्ध करना उत्तम रहता है। जब पितरों के पुत्र या पौत्र द्वारा श्राद्ध किया जाता है तो पितृ लोक में भ्रमण करने से मुक्ति मिलकर पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त हो जाता है।

पितृ पक्ष के दौरान किसी भी तरह का शुभ काम नहीं होता है। कोई भी नई वस्तु की भी खरीदारी नहीं की जाती है। पितृ पक्ष में पिंड दान अवश्य करना चाहिए ताकि देवों व पितरों का आशीर्वाद मिल सके। इस दौरान पितरों का पसंदीदा भोजन बनाना चाहिए। बनाए हुए भोजन में से पांच पत्तल अलग कर देने चाहिए और उन्हें पंडित अनुसार जानवरों और पक्षियों को खिला देना चाहिए। ये माना गया है कि कौवे व अन्य पक्षियों द्वारा भोजन ग्रहण करने पर ही पितरों को सही मायने में भोजन प्राप्त हैं क्योंकि पक्षियों को पितरों का दूत व विशेष रूप से कौवे को उनका रूप माना जता है। अब जब पितृ पक्ष का अंत होने वाला है तो अमावस्या के दिन अपने सभी पितरों को याद किया जाता है और उन्हें भोजन समर्पित किया जाता है। इसके बाद शाम के वक्त पितरों का विसर्जन किया जाता है। अर्थ ये है कि पितृ इस दौरान धरती पर आते हैं और विचरण करते हैं. अमावस्या के दिन उनसे उनके स्थान पर जाने की विनती की जाती है।

विष्णु पुराण के अनुसार जो व्यक्ति बहुत निर्धन है और अलग-अलग पकवान बना कर पूर्वजों को निमित्त नहीं कर सकता है तो वो मोटा अनाज चावल या आटा भी दे सकते हैं। ये भी संभव ना हो तो सब्जी-साग व फल भी आस्था पूर्ण ब्राह्मण को दान करे तो भी उसके पूर्वज खुश होकर आशीर्वाद देते हैं। यदि ये सब भी संभव ना हो पाए तो व्यक्ति तीन बार पानी में तिल मिलाकर भी ब्राह्मण को दान कर सकता है, ऐसा करने पर भी श्राद्ध की प्रक्रिया को पूरा माना जाता है। आपको ये बात बताने का अर्थ ये है कि हर किसी के लिए श्राद्ध की प्रक्रिया को पूरा करना जरूरी होता है अथवा इसका बुरा प्रभाव भी पड़ सकता है। यदि पितरों की श्राद्ध तिथि मालूम नहीं हो तो आखिरी श्राद्ध यानि 20 सितंबर को भी श्राद्ध की प्रक्रिया को पूरा कर सकते हैं। इससे पितरों को मोक्ष मिल जाता है और आपको वो आशीर्वाद देते हैं।

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