परमानेंट अकाउंट नंबर (पैन) के लिए आधार को अनिवार्य बनाने के सरकार के फैसले को बुधवार सुप्रीम कोर्ट में आलोचना का सामना करना पड़ा और इसका विरोध करने वालों ने कहा कि यह कदम नागरिक स्वतंत्रताआें को कमजोर कर देगा व नागरिकों पर हावी हो जाएगा। विरोध करने वालों की दलील है कि खुद को लोकतांत्रिक कहने वाले किसी देश ने आधार जैसी प्रणाली लागू नहीं की है। उन्होंने कहा कि किसी व्यक्ति पर नजर रखी जा सकती है और वह आजीवन इलेक्ट्रानिक निगरानी के तहत बना रहता है। उन्होंने कहा कि यह कदम उन नियमों से पूरी तरह से टकराव वाला है जो इसकी सांविधिक शाखा यूआइडीएआइ ने निर्धारित की है जो स्पष्ट रूप से कहती है कि आधार ‘स्वैच्छिक’ है।
वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने कहा कि नागरिकों से डाटा और बायोमेट्रिक एकत्र करने वाले लोग निजी कंपनियों के हैं और डाटा के दुरुपयोग या लीकेज का गंभीर खतरा है। ऐसे मामले हैं जहां ऐसी सूचना वाणिज्यिक रूप से बेची गई हैं। कानून कहता है कि जीवन और शरीर सर्वोच्च है और अगर किसी व्यक्ति के उंगलियों के निशान चोरी होते हैं तो यह उसकी पहचान खत्म कर देगा। उन्होंने न्यायमूर्ति एके सीकरी और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की सदस्यता वाले एक पीठ से कहा, अगर हम यहां नाकाम हो जाते हैं तो इस बात की बहुत संभावना है कि सरकार नागरिक स्वतंत्रताओं को कमजोर कर देगी और अपने नागरिकों पर हावी हो जाएगी। फिर नागरिक स्वतंत्रता की अवधारणा नहीं रहेगी। उन्होंने कहा कि यूनिक आइडेंटीफिकेशन आॅथरिटी आॅफ इंडिया (यूआइडीएआइ) ने बार-बार कहा है कि भारत का हर नागरिक इसके ‘स्वैच्छिक’ रूप से पाने का हकदार है। सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली तीन में दो याचिकाओं का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील ने न्यायालय से कहा कि अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने दलील दी थी कि आधार ‘अनिवार्य ’ है।
अधिवक्ता श्याम दीवान ने पीठ से कहा, यहां तक कि आज भी यूआइडीएआइ वेबसाइट कहती है कि हर नागरिक आधार स्वैच्छिक रूप से हासिल करने का हकदार है। आधार अधिनियम का जन्मदाता, प्राधिकरण इसे स्वैच्छिक कहता है। उन्होंने कहा कि कानून की भाषा और यूआइडीएआइ की समझ स्पष्ट है। आधार पूरी तरह से स्वैच्छिक है। आधार बनवाने के आवेदन में भी इसे स्वैच्छिक बताया गया है। दीवान ने अपनी दलील के समर्थन में शीर्ष न्यायालय के पहले के आदेशों का जिक्र करते हुए कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने इसे स्वैच्छिक कहा है। यह न्यायालय का कर्त्तव्य है कि वह इस देश के नागरिकों का संरक्षण करे। दीवान ने दलील दी कि आधार अधिनियम और आयकर अधिनियम की धारा 139 एए के बीच पूरी तरह से टकराव है। यह धारा आयकर रिर्टन भरने के लिए और इस साल एक जुलाई से पैन आबंटन की अर्जी देने के लिए आधार या आधार आवेदन पंजीकरण का नंबर का जिक्र करना अनिवार्य करता है। सरकार ने जब याचिकाकर्ताओं की दलीलों का विरोध किया तब पीठ ने कहा कि क्या कोई व्यक्ति कह सकता है कि वह उस तरीके से कर अदा करेगा जैसा कि वह चाहता है। एक कर व्यवस्था में आप नहीं कह सकते कि मैं कर नहीं अदा करूंगा…। सवाल यह है कि एक व्यक्ति कर देने को तैयार है। क्या वह कह सकता है कि मैं उस तरीके से कर अदा करूंगा जैसा कि मैं चाहता हूं।
वहीं, केंद्र ने अपने रुख को कायम रखते हुए कहा कि धारा 139 एए संसद ने बनाई ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि फर्जी पैन कार्ड प्रणाली खत्म हो और इसे दूर करने के लिए आधार सर्वश्रेष्ठ प्रभावी तरीका है। इस पर पीठ ने पूछा कि याचिकाकर्ता कह रहे हैं कि इस कानून का अनुपालन क्यों करे जो उनके मुताबिक अवैध है। इस पर सरकार ने कहा कि संसद ने अपने विवेक से फैसला किया है कि आपको कुछ चीजें करनी होगी जो याचिकाकर्ता नहीं करना चाहते। इसने कहा कि सरकार के पास अधिकार है कि वह सूचना मांग सके और सरकार ऐसा करती भी है। हालांकि, पीठ ने कहा कि यह निजता के पहलू पर नहीं जाएगी क्योंकि इस मुद्दे से एक संविधान पीठ निपटेगा। बहरहाल, न्यायालय में दलील गुरुवार को भी जारी रहेगी। इससे पहले मंगलवार को सरकार ने अदालत को बताया कि पैन कार्ड के लिए आधार को अनिवार्य बनाया गया है ताकि फर्जी पैन कार्ड पर अंकुश लग सके क्योंकि इसका इस्तेमाल आतंकवाद के लिए वित्तपोषण और कालाधन में हो रहा था। इसके साथ ही सरकार ने निजता पर जताई चिंताओं को भी ‘फर्जी’ बताया।