Friday, September 13, 2024
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भ्रष्टाचार, आतंकवाद खत्म करने की बात कह रहे थे मोदी, लेकिन इसके बाद और तेजी से बढ़ी ऐसी गतिविधियां’

SI News Today

मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के महासचिव सीताराम येचुरी ने मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर नोटबंदी को लेकर निशाना साधा। येचुरी ने कहा कि प्रधानमंत्री नोटबंदी से भ्रष्टाचार, कालाधन और आतंकवाद के खत्म होने की बात कह रहे थे, लेकिन यह सभी इस आर्थिक कदम को उठाए जाने के बाद बढ़ रहे हैं। माकपा नेता ने सोशल मीडिया पर कहा, “नोटबंदी के बाद, भ्रष्टाचार, कालाधन और आतंकवाद तीनों के खत्म होने का दावा मोदी ने किया था, लेकिन आज नोटबंदी के बाद यह और मजबूती के साथ बढ़ रहे हैं। उन्होंने कहा, “छह महीने बीतने के बाद भी अभी तक कोई आंकड़ा नहीं है कि कितना पुराना नोट प्रणाली में वापस आया।

येचुरी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 8 नवंबर के 500 व 1000 रुपये के नोटबंदी के कदम को आर्थिक आपदा बताया। उन्होंने कहा, “सरकार ने बड़ी मछलियों-बैंक ऋण के बकाएदारों को छोड़ दिया और भारत की अनौपचारिक अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर दिया जो करीब दो तिहाई भारतीयों को रोजगार देती है और हमारे जीडीपी में आधा से ज्यादा का योगदान देती है।

वहीं दूसरी ओर थिंकटैंक सीएमएस- इंडियन करपशन स्टडी के मुताबिक पिछले साल 8 नवम्बर को पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा नोटबंदी का ऐलान करने के बाद से भ्रष्टाचार में कमी आई है। इसकी रिपोर्ट में बताया गया है कि 2005 के मुकाबले सरकारी अधिकारियों में घूसखोरी घटी है। यह सर्वे जनवरी में 20 राज्यों में फोन के द्वारा करवाया गया था। सर्वे के दौरान 56 फीसदी लोगों ने यह बात कही की नोटबंदी की वजह से भ्रष्टाचार में कमी आई है। 21 फीसदी लोगों का कहना था कि हालात अभी भी पहले जैसे ही है और वहीं बाकी फीसद लोगों ने इस विषय में कुछ भी कहने से इंकार कर दिया।

सीएमएस द्वारा तैयार की गई किसी सर्वे की यह 11वीं रिपोर्ट है। यह सर्वे 3 हजार परिवारों के अनुभव के आधार पर किया गया था। यह सर्वे पुलिस, न्यायिक सेवाएं, जल विभाग, राशन की दुकानें और बिजली विभाग जैसी जगहों पर आधारित है। लोगों मे भ्रष्टाचार की वजह जरूरी दस्तावेज की कमी और अपने काम को जल्दी करवाना जैसे काम है। सर्वे में बताया गया है कि पिछले कुछ साल रहे हों या साल 2017, लोग सिर्फ थोड़ी-थोड़ी वजहों के कारण घूस लेते और देते दिखाई दिए हैं। आपको बता दें कि सीएमएस की इस रिपोर्ट में बताया गया है कि 2005 में 53 फीसदी लोगों ने सार्वजनिक सेवाओं में भ्रष्टाचार की बात कही थी तो वहीं 2017 में यह आंकड़ा 33 फीसदी घट गया है।

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