ऐसे दौर में जब कश्मीर के मुस्तकबिल को नफरत की राह पर ले जाने की साजिश है, लेफ्टिनेंट उमर फयाज जैसे नौजवानों की साजिश अंधेरे में रोशनी की लीक दिखाती है. उनकी कुर्बानी की शमां से आज दिल्ली का इंडिया गेट भी रोशन होगा. फैयाज के साथियों ने उनकी याद में यहां मोमबत्ती जुलूस किया है. लेकिन इस पहल से भी ज्यादा दिल जीत रहा है, फयाज के दोस्तों का बनाया गया वीडियो.
मैं उमर फयाज बोल रहा हूं..
इस वीडियो को कैंडल मार्च के बाद होने वाली सभा में दिखाया जाएगा. वीडियो में फयाज की जुबानी कहा गया है…
‘मैं उमर फयाज, मेरे वालिद एक किसान. मैं उनका इकलौता बेटा. मेरा शौक हॉकी खेलना. अभी 8 जून को मैं 23 पार करने वाला हूं. ये मेरी मां जमीला है. पर ये रो क्यों रही है? क्योंकि मैं अब जिंदा नहीं हूं. मेरा कसूर क्या था, बस इतना भर कि मैं कश्मीरी होकर भी हिंदुस्तानी था. मेरी ममेरी बहन की शादी होनी थी. उसने कहा- शादी मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा दिन है तुम्हें आना ही होगा, इसलिए मैंने इंडियन आर्मी में भर्ती के बाद पहली बार छुट्टी ली थी. राजपुताना राइफल्स में बतौर लैफ्टिनेंट 10 दिसंबर को ही मेरी कमीशनिंग हुई थी. मेरे आने की खबर कश्मीर के दुश्मनों तक पहुंच गई. कुछ हथियारबंद नकाबपोश मेरी बहन के सामने ही मुझे खींच ले गए और अगले दिन गोलियों से छलनी मेरा शरीर शोपियां के हरमन चौक पर मिला. मेरी कातिल कौन थे? मेरे खून के दाग किसके दामन पर लगे? वो कौन थे जो एक कश्मीरी और कश्मीरियत के दुश्मन थे? मेरी शहादत के जिम्मेदार ना पाकिस्तानी थे, ना हिंदुस्तानी, वो मेरे अपने कश्मीरी थे. जिनकी हिफाजत की कसमें खाई थीं, वो ही मेरे खूनी निकले. ये महज मेरे नहीं, ये पूरी घाटी के दुश्मन हैं. ये वो हैं जो कश्मीरियत को आगे नहीं बढ़ते देखना चाहते. फौज मेरे जैसे नौजवानों के ख्वाबों की ताबीर कर रही है. घाटी के बाशिंदे डरेंगे नहीं, क्योंकि वो जानते हैं कि डर के आगे जीत है. कश्मीरियत की जीत. ये एक फैयाज की बात नहीं. ये घाटी फैयाजों की टोली है. अमनोचमन के लिए मैंने तो अपनी कुर्बानी दे दी अब तय कश्मीरियों को करना है कि घाटी में किलकारियां गूंजें या बंदूकें. हाथों में पत्थर हों या गुलाबी सेब. डोलियां उठें या जनाजे निकलें. घाटी जन्नत बने, या जहन्नुम. तय करना होगा यहां कायर रहेंगे या दिलेर. बुरहान वानी रहेगा या उमर फयाज हिंदुस्तानी.’
अपनों ने दिया था दगा
22 साल के फयाज कश्मीर के शोपियां इलाके के सुरसोना गांव के रहने वाले थे. पिछले दिनों वो बाटपुरा में अपने मामा की लड़की की शादी में शरीक होने गए थे. सेना में भर्ती होने के बाद ये फयाज की पहली छुट्टी थी. लेकिन बीते मंगलवार की रात को शादी से लौटते वक्त आतंकियों ने उन्हें अगवा किया. फयाज को गोलियों से छलनी करने के बाद उनके शव को चौक पर फेंक दिया गया था. शुरुआती जांच के मुताबिक फयाज के अपने ही परिचितों ने उनकी सूचना आतंकियों को दी थी