सुप्रीम कोर्ट ने यूपी के एक मोबाइल टॉवर को बंद करने का फैसला सुनाया है। यह फैसला एतिहासिक माना जा रहा है क्योंकि पहली बार किसी मोबाइल टॉवर को बंद करने का आदेश दिया गया है। इससे आने वाले वक्त में एक नई बहस जन्म ले सकती है। जिस मोबाइल टॉवर को बंद किया गया वह मध्य प्रदेश के ग्वालियर में है। हरीश चंद तिवारी नाम के एक शख्स ने सुप्रीम कोर्ट में अपने घर के पास लगे टॉवर को हटाने के लिए कहा था। हरीश ने कहा था कि दाल बाजार में उसके पड़ोसी ने अपनी छत पर 2002 में BSNL का मोबाइल टॉवर लगवाया था जो कि पिछले 14 सालों से 24 घंटे हानिकारक विकिरण निकाल रहा है। हरीश ने यह भी दावा किया कि टॉवर से निकलने वाली विकिरण की वजह से उसको कैंसर भी हो गया।
पहला मामला: इसपर जस्टिस रंजन गोगई और नवीन सिन्हा की बेंच ने बीएसएनएल को उस टॉवर को सात दिनों के अंदर बंद करने का आदेश सुनाया। किसी याचिका की सुनवाई के बाद हटाया गया यह पहला मोबाइल टॉवर होगा।
टॉवर से हानिकारक विकिरण निकलने वाले मामलों की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल मार्च में शुरू की थी। तब कोर्ट ने दोनों ही पक्षों को अतिरिक्त सबूत देने के लिए कहा था। तब याचिकाकर्ता ने कहा था कि किरणों की वजह से चिड़िया, कौंए और मधुमक्खियां मर रही हैं। इसपर सेलुलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया और केंद्र सरकार ने कहा था कि किसी भी शोध में ऐसी बात निकलकर सामने नहीं आई है।
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में एक एफिडेविट दिया था जिसमें कहा गया कि देश के कुल 12 लाख मोबाइल टॉवर पर की गई रिसर्च के बाद यह बात सामने आई है। यह भी कहा गया था कि कुल 212 टॉवर ऐसे थे जो कि तय मात्रा से ज्यादा रेडिएशन निकाल रहे थे और उनपर दस-दस लाख रुपए का जुर्माना लगाया गया था। फाइन के तौर पर सेल्यूलर कंपनियों से 10 करोड़ रुपए वसूलने की बात भी कही थी।
2014 में संसदीय कमेटी ने केंद्र सरकार को रिसर्च करवाने के लिए कहा था जिससे दूरसंचार, मोबाइल फोन टॉवर और हैंडसेट के मनुष्य पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में जाना जा सके। निजी याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि ऐसी कोई रिसर्च अबतक नहीं करवाई गई।