Tuesday, April 16, 2024
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कितना पढ़े-लिखे थे हमें आजादी दिलाने वाले ये महापुरुष, जानिए

SI News Today

हमारी आजादी के 70 साल पूरे हो चुके हैं। इस आजादी को दिलाने में भारत के स्वतंत्रता सेनानियों की अहम भूमिका रही है। अंग्रेजों को भगाने के लिए और देश को आजादी दिलाने के लिए स्वतंत्रता सेनानियों ने कई तरह के आंदोलन चलाए। वैसे तो हम बचपन से ही पढ़ते आ रहे हैं कि स्वतंत्रता सेनानियों ने किस तरह से अपने खून बहाकर हमें आजादी दिलाई। आजादी के 70 साल बाद आज हम खुले आसमान में सांस ले पा रहे हैं। सैकड़ों वर्षों से गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ भारत सन 1947 में आज़ाद हुआ। यह आजादी लाखों लोगों के त्याग और बलिदान के कारण संभव हो पाई। इन महान लोगों ने अपना तन-मन-धन त्यागकर देश की आजादी के लिए सब कुछ न्योछावर कर दिया।

स्वतंत्र भारत का हरेक व्यक्ति आज इन वीरों और महापुरुषों का ऋणी है जिन्होंने अपना सब कुछ छोड़ सम्पूर्ण जीवन देश की आजादी के लिए समर्पित कर दिया। भारत माता के ये महान सपूत आज हम सब के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं। इनकी जीवन गाथा हम सभी को इनके संघर्षों की बार-बार याद दिलाती है और प्रेरणा देती है। इन महापुरुषों में नेताजी सुभाष चंद्र बोस, सरोजनी नायडू, सरदार वल्लभभाई पटेल, सरदार भगत सिंह, महात्मा गांधी प्रमुख हैं। आप लोगों ने इनके बारे में काफी कुछ अब तक पढा होगा। लेकिन आज हम आपको यह बताने जा रहे हैं कि इन्होंने आजादी की लड़ाई के साथ-साथ किस तरह से अपनी पढ़ाई पूरी की। यही नहीं इन लोगों ने देश को आजादी दिलाने के लिए अपने प्राणों की भी आहूति दे दी।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस: उनकी मृत्यु एक रहस्य बनी हुई है फिर भी हम उन्हें उनकी दृढ़ इच्छा और रणनीति के लिए याद करते हैं। उन्होंने भारत की आजादी के लिए आजाद हिंद फौज का निर्माण किया था। नेताजी ने स्कूली शिक्षा कटक के स्टेवार्ट स्कूल से ग्रहण किया था। जब वह सातवीं कक्षा में थे तभी उनका दाखिला रावेनशॉ कॉलेजिएट स्कूल में करा दिया गया। वहां से उन्होंने मैट्रिक की पढ़ाई की। इसके बाद वे प्रेसिडेंसी कॉलेज चले गए। वहां उन्होंने प्रोफेसर ई.एफ. ओटेन पर हुए हमले के इर्दगिर्द पनपे विवाद पर प्रेसीडेंसी कालेज ऑफ कोलकाता के छात्रों का दृढ़ता के साथ समर्थन किया। बोस ने 1918 में कोलकाता विश्वविद्यालय के तहत स्कॉटिश चर्च कॉलेज से दर्शन में बीए पास किया। हालांकि, उन्होंने अपने पिता से भी वादा किया था कि वे अच्छे अंकों से आईसीएस (सिविल सेवा) की परीक्षा पास करेंगे। जोकि उन्होंने किया भी, मगर 1921 में असहयोग आंदोलन को लेकर उन्हें यह सेवा छोड़नी पड़ी।

सरदार वल्लभभाई पटेल: भारत के लौह पुरुष कहे जाने वाले सरदार वल्लभभाई पटेल ने 22 साल की उम्र में मैट्रिक पास किया था। वैसे तो वे बैरिस्टर बनना चाहते थे, लेकिन अपना सपना पूरा करने के लिए उनके पास अधिक पैसे नहीं थे। 36 साल की उम्र में वे इंग्लैंड चले गए और वहां जाकर मध्य मंदिर से जुड़ गए। उन्होंने 36 महीने के पाठ्यक्रम को सिर्फ 30 महीनों में पूरा किया। भारत लौटने के बाद वह अहमदाबाद के सबसे सफल बैरिस्टर में से एक बन गए। हालांकि, शुरूआत में राजनीतिक सफर उनका अच्छा नहीं रहा, लेकिन बाद में उन्होंने गांधी से मुलाकात के बाद रणनीति बदल लिया।

सरोजिनी नायडू: नायडू एक होनहार छात्रा थीं। 12 वर्ष की उम्र में उन्होंने मैट्रिक टॉप किया। 16 वर्ष की आयु में वो इंग्लैंड गयीं। वहां पहले उन्होंने किंग कॉलेज लंदन में दाखिला लिया उसके बाद कैम्ब्रिज के ग्रीतान कॉलेज से शिक्षा हासिल की। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद सरोजिनी ने 19 साल की उम्र में विवाह कर लिया। उन्होंने अंर्तजातीय विवाह किया था जो कि उस दौर में मान्य नहीं था। यह एक तरह से क्रांतिकारी कदम था। वर्ष 1905 में बंगाल विभाजन के दौरान वो भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल हुईं। इस आंदोलन के दौरान वो गोपाल कृष्ण गोखले, रवींद्रनाथ टैगोर, मोहम्मद अली जिन्ना, एनी बेसेंट, सीपी रामा स्वामी अय्यर, गांधीजी और जवाहर लाल नेहरू से मिलीं। नायडू अपनी मधुर वाणी, सुंदर कविताओं और प्रभावशाली भाषण के लिए भी जानी जाती हैं। इसलिए उन्हें ‘भारत कोकिला’ और ‘भारत की बुलबुल’ कहकर भी पुकारा जाता है। ‘द गोल्डन थ्रेशोल्ड’, ‘द बर्ड ऑफ टाइम’ और ‘द ब्रोकन विंग’ उनके लिखे प्रसिद्ध ग्रंथ हैं।

सरदार भगत सिंह: शहीदे आजम भगत सिंह एक ऐसे क्रांतिकारी थे, जिनकी बहादुरी और साहस के किस्से उनकी शहादत के 85 साल बाद आज भी सुने और सुनाए जाते हैं। उन्होंने बंगा गांव में सरकारी स्कूल से प्राथमिक शिक्षा पूरी की। उसके बाद वे उच्चतर शिक्षा ग्रहण करने के लिए लाहौर चले गए, वहां उन्होंने डीएवी कॉलेज में दाखिला ले लिया। लाहौर में ही उनकी मुलाकात भाई परमानंद और जय चंद विद्यानंकर से हुई। यहां उनके शिक्षक द्वारा दी गई राष्ट्रवादी उनके विचारों ने उन्हें काफी प्रभावित किया। बाद में भगत सिंह लाला लाजपत राय द्वारा स्थापित राष्ट्रीय कॉलेज में शामिल हो गए, जहां से उन्होंने 1923 में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। इसी वर्ष वे हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचएसआरए) में शामिल हुए। यह वही वक्त था जब उन्होंने ‘इंकलाब जिंदाबाद’ का नारा दिया था। वह एक महान लेखक भी थे और उन्होंने अमृतसर और अकाली (अमृतसर) से उर्दू पेपर ‘कीर्ति’ का संपादन किया था। वे एक अच्छे पत्रकार भी थे।

महात्मा गांधी: वह सबसे प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों में से एक हैं जिनकी लोकप्रियता बेजोड़ है। वह गुजरात से थे और 1888 में वकालत की पढ़ाई करने के लिए लंदन चले गए। जून 1891 में गांधी भारत लौट गए और वहां जाकर उन्हें अपनी मां के मौत के बारे में पता चला। उन्होंने बॉम्बे में वकालत की शुरुआत की पर उन्हें कोई खास सफलता नहीं मिली। आखिर में उन्होंने सन् 1893 में एक भारतीय फर्म से नेटल (दक्षिण अफ्रीका) में एक वर्ष के करार पर वकालत का कार्य स्वीकार कर लिया।

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