गुजरात में गायों का आधार कार्ड जैसा यूनिक आइडेंटिफिकेशन कार्ड (आईडी) बनाने का काम शुरू हो चुका है। एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार तकनीशियनों की एक टीम शुक्रवार (26 मई) से राज्य की गायों के कानों में एक चीप लगाने का काम शुरू कर चुकी है। पिछले महीने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने एक रिपोर्ट में कहा था की गायों की तस्करी रोकने के लिए उन्हें भी आधार कार्ड जैसा पहचान पत्र दिया जाना चाहिए। भाजपा शासित झारखंड सरकार ने राज्य की 12 हजार गायों का आधार कार्ड जैसा 12 अंकों वाला पहचान पत्र बनवाया जिसमें उनकी सींग-पूंछ, नस्ल और मालिक की जानकारी दी हुई है।
अधिकारियों ने एनडीटीवी को बताया कि गायों के कानों में रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन डिवाइस लगाए जा रहे हैं। राज्य सरकार के अनुसार इस चिप से गायों के स्वास्थ्य, प्रजनन दर और अवैध तस्करी पर नजर रखी जाएगी। पिछले महीने गुजरात की भाजपा सरकार ने कानून में बदलाव करते हुए गोहत्या के लिए आजीवन कारावास का प्रावधान किया था।
रिपोर्ट के अनुसार इस कार्यक्रम के पहले चरण में गुजरात की 37 हजार गायों को यूनिक आईडी प्रदान की जाएगी। गुजरात में करीब 60 लाख गोवंशी पशु हैं। गायों से जुड़े आंकड़ों को इकट्ठा करन के लिए राज्य के गौसेवा और गौचर विकास बोर्ड ने गांधीनगर स्थित अपने मुख्यालय में एक सेंट्रल सर्वर सिस्टम बनाया है।
अभियान के तहत विशेषज्ञ 200 गौशालाओं और पशु संरक्षण घरों में गायों को लाकर उनके कान में सूई के आकार जैसी चिप लगाए जा रहे हैं। गायों से जुड़ी सारी जानकारी डिजिटल फॉर्म में इकट्ठा की जाएगी। प्रोजेक्ट कोऑर्डिनेटर किरण बालिकाई ने एनडीटीवी को बताया कि गायों के कानों में लगने वाल में चिप में गाय का रंग, नस्ल, सींगों का आकार, जन्मतिथि और प्रजनन दर की जानकारी होगी। गायों के बारे में ये जानकारी गौसेवा बोर्ड के सेंट्रल सर्वर पर उपलब्ध होगी।
रिपोर्ट के अनुसार इस परियोजना के पहले चरण का कुल खर्च करीब 2.8 करोड़ रुपये होगा। पहले चरण में गिर, कांकरेज और दांगी नस्ल की गायों को पहचान पत्र दिया जाएगा। गौसेवा बोर्ड गायों को जीपीआरएस सिस्टम से भी जोड़ना चाहता है ताकि उनकी स्थिति को इंटरनेट के माध्यम से जाना डा सके। गौसेवा बोर्ड के चेयरमैन वल्लभ कथारिया ने एनडीटीवी को बताया कि गायों से जुड़ी जानकारी इकट्ठा करने के बाद सेंट्रल डाटा बेस भेजी जाएगी।