Wednesday, April 17, 2024
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देश को राष्ट्रगान पर सवाल खड़े करने के बजाय उसकी रक्षा और गरिमा के बारे में सोचना होगा

SI News Today

आज 7 मई को कविवर रविन्द्र नाथ टैगोर की जयंती है, जिनके द्वारा रचित गीत भारत का राष्ट्रगान बना। राष्ट्रगान स्वतंत्र भारत की आन-बान- शान का प्रतीक और हमारा गौरव है। टैगोर इसे लिखने के एक माध्यम मात्र रहे हैं। जब कोई गीत किसी देश विशेष के राष्ट्रगान का दर्जा पा लेता है और सर्वमान्य बन जाता है, तब उसके भाव और उसके अर्थ उसके रचयिता से कहीं अधिक सर्वोपरि हो जाते हैं। यह हमारे भारत की सहिष्णुता है कि आजादी के बाद से भारतीय इतिहास को अलग अलग इतिहासकार और जनता अपनी सोच और सहूलियत के अनुसार विश्लेषित करने के लिए स्वतंत्र रहती आई है। विभिन्न पुराने मुद्दों को गड़े मुर्दों की तरह उखाड़कर उनकी चीड़फाड़ करने में कुछ लोगों को काफी मजा आता है। यह वह प्रवृत्ति होती है, जो आग लगाकर तमाशा देखने की श्रेणी में आती है और प्रायः ऐसे तमाशों से उन लोगों का कुछ मानसिक या पूर्वाग्रही तात्कालिक तुष्टिकरण हो जाता है।

हमारे राष्ट्रगान जन गण मन अधिनायक जय हे को लेकर भी मानसिक संतुष्टि के नाम पर समय समय पर कई प्रश्न उठाए जाते रहते हैं कि इसमें अधिनायक’ कौन है या फिर यह कि टैगोर ने यह गीत ब्रिट्रिशकाल में जॉर्ज पंचम के भारत आगमन पर उसकी प्रशंसा में लिखा था, आदि आदि। ऐसे प्रश्नों का सामयिक संबंध अब कोई मायने नहीं रखता बल्कि इसके शाब्दिक अर्थ अधिक गहरे मायने रखने लगते हैं। रविन्द्र नाथ टैगोर ने किन परिस्थितियों या भावों को केंद्र में रखकर गीत की संरचना की थी, इसका साक्ष्य इतिहास के पास यदि है भी तो उसकी प्रामाणिकता के पैमाने टैगोर की काव्य संवेदनाओं के तात्कालिक भावों को कैसे माप सकते हैं? लेकिन शब्दों के माध्यम से हुआ भारत के जयघोष में आज भी उतनी ही शक्ति है, इसकी अनुभूति हर उस नागरिक को राष्ट्रगान के गायन के समय हो सकती है, जो यह भाव तजकर उसे गाता है कि यह किसने लिखा है। किसी भी भारतीय की राष्ट्रगान के प्रति सम्मान की भावना टैगोर और उनके लेखन के प्रति किसी व्यक्ति या समाज या धर्म की निजी मतभेद से कहीं बहुत ऊपर हो जाती है।

यदि कोई गीत अब राष्ट्रगान है, तो उसकी गरिमा को बनाए रखना हर नागरिक की राष्ट्रीय व नैतिक प्रतिबद्धता बन जाती है। यहां राष्ट्रगान और उसके भाव प्रमुख हो जाते हैं जबकि उसका रचयिता गौण हो जाता है। इसका मतलब यह नहीं है कि रवींद्रनाथ टैगोर गौण हो गए, लेकिन राष्ट्रगान के संदर्भ में ऐसी उक्ति देना इसलिए आवश्यक हो जाता है क्योंकि लोग अपनी ऐतिहासिक सोच और समझ की तुष्टि के लिए राष्ट्रगान का मजाक बनाने में भी पीछे नहीं रहते। टैगोर के लिए अँग्रेजियत के प्रति सौहार्द्र रखने या उनको नोबल पुरस्कार मिलने को लेकर जिस भी सच या झूठ में लोग रहते हैं, उसका संबंध राष्ट्रगान से कदापि नहीं होना चाहिए। अधिनायक उनके भावों में उस समय कोई भी रहा हो, लेकिन जनगण मन के राष्ट्रगान घोषित किए जाने के बाद से गीत का अधिनायक वही है, जो होना चाहिए और जिसे जनता समझना चाहती है।

कहीं न कहीं राष्ट्रगान में होने वाले जयघोष की शक्ति ही है, जिसके कारण आज हर भारतवासी आतंकवाद और नक्सलवाद जैसी इतनी संघर्षशील परिस्थितियों में भी भारत की जय की कामना कर सकता है। यह टैगोर का दिया जयघोष ही है, जो भारत को अंतरिक्ष की ऊँचाइयों में ले जाने की क्षमता व संकल्प प्रदान करता है। निर्धारित 52 सेकण्ड में सावधान की मुद्रा में भारतीय ध्वज की तरफ उन्मुख होकर राष्ट्रीय प्रतिबद्धता की भावना के साथ गाए जाने वाले टैगोर रचित राष्ट्रगान में कुछ तो बात है ही, तभी तो यूनेस्को की ओर से जन गण मन को विश्व के सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रगान से अलंकृत किया गया है।

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