बीजेपी सरकार ने साल 2015 में 18,452 गांव में से 73 फीसदी गांव को विद्युतीकरण के लिए चुना था। जिनमें अब बिजली दी जा रही है। लेकिन सरकार के ही आंकड़ों के मुताबिक केवल 8 फीसदी गांव ही ऐसे हैं जिनके सभी घरों में बिजली दी जा रही है। बिजली मंत्रालय के ग्रामीण विद्युतीकरण (जीएआरवी) डैशबोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक, 25 मई तक 13,523 गांवों का विद्युतीकरण किया गया है, लेकिन सिर्फ 1,089 गांवों के ही 100 फीसदी घरों में बिजली पहुंच पाई है। इसके अलावा, पूरे देश के 25 फीसदी (45 मिलियन) ग्रामीण घरों में अभी भी बिजली नहीं है। उत्तर प्रदेश, नागालैंड, झारखंड, और बिहार के 50 फीसदी से भी कम ग्रामीण घरों में बिजली की सुविधा है। तीन साल पहले बीजेपी ने सभी घरों में बिजली देने का वादा किया था।
सरकार ने 43.5 मिलियन बीपीएल कार्ड धारकों को दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण ज्योति योजना के तहत फ्री में बिजली कनेक्शन देने के लिए चुना था। इसके तहत 23.5 मिलियन (59 फीसदी) परिवारों को बिजली दी जा चुकी है। वहीं जिन ग्रामीण इलाकों को ग्रिड से नहीं जोड़ा जा सकता है ऐसे इलाकों में दूसरी तरह की बिजली जैसे सोलर पावर आदि से जोड़ा गया है। हालांकि एक अध्ययन में ऐसा पता चलता है कि इस तरह की ऊर्जा बिजली का विकल्प नहीं है क्योंकि इससे ज्यादा फायदा नहीं होता है। अक्टूबर 1997 के बाद से विद्युत मंत्रालय द्वारा उपयोग किए गए मानदंडों के अनुसार, स्कूलों, पंचायत कार्यालयों, स्वास्थ्य केंद्रों, डिस्पेंसरी और सामुदायिक केंद्रों और कम से कम 10 प्रतिशत घरों में बिजली होने के बाद ही उस गांव को विद्युतीकृत माना जाता है। इसके मुताबिक किसी गांव के 90 फीसदी घरों में बिजली नहीं होने के बाद भी उसे विद्युतीकृत माना जाता है।
मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, घरेलू स्तर पर बिहार, झारखंड, नागालैंड और उत्तर प्रदेश जैसे कई राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में 50 प्रतिशत से कम बिजली की आपूर्ति होती है। ग्रामीण घरों में बिजली भेजने में दो दिक्कतें आ आ रही हैं। ऊर्जा, पर्यावरण और जल पर काउंसिल के सीनियर प्रोगाम लीडर अभिषेक जैन ने बताया कि काफी लोग कनेक्शन का खर्च नहीं उठा सकते। इसकी कीमत अलग अलग राज्यों में 2,000 से 3,000 रुपये तक आती है। वहीं दूसरा कारण है कि अगर कोई कनेक्शन ले भी ले तो वहां बिजली नहीं आती है।