Friday, March 29, 2024
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भारत की आन बान और शान तिरंगा कैसे बना राष्ट्र ध्वज

SI News Today

How make India’s Flag Anan Baan and Shaan, the National Flag.

    

किसी भी राष्ट्र का ध्वज उस देश की आन बान और शान का प्रतीक होता है ध्वज से ही राष्ट्र की पहचान होती है हमारा तिरंगा भारत का गौरव है जिसे बनाये रखने के लिए न जाने कितनो ने अपनी जान की कुर्बानियां दे दी। अपने तिरंगे को आसमान में लहलहराता हुआ देख कर मन में देश भक्ति हिलोरे मारने लगती है। हवा में लहलहराते तिरंगे को देखकर क्या कभी आपने सोचा है कि देश कि अखंडता और गौरव का प्रतीक हमारा तिरंगा कब और कैसे राष्ट्र ध्वज के स्वरुप में आया ।तिरंगे के रंगों और धर्म चक्र का अर्थ और महत्व के बारे में तो हम सब जानते ही होंगे लेकिन क्या आप जानते है कि भारत का तिरंगा कब राष्ट्र ध्वज के स्वरुप में आया । हमारा तिरंगा राष्ट्र ध्वज बनने से पहले किन किन पड़ावों से होकर गुजरा है। आखिर हमारे राष्ट्रीय ध्वज के साकार होने की क्या कहानी है इसे हम आप को बताते है।

ध्वज की कहानी की शुरुआत तो स्वतंत्रता से पूर्व ही शुरू हो गई थी। आपको बता दे कि 1857 के आंदोलन के समय ध्वज बनाने की सबसे पहली योजना बनाई गई थी । लेकिन आंदोलन असमय समाप्त होने के साथ ही योजना भी बीच में ही रह गई थी। लेकिन क्या आप जानते है की हमारा राष्ट्र ध्वज वर्तमान रूप तक पहुंचने से पूर्व की पड़ावों से होकर गुजरा है। कुछ ऐतिहासिक पड़ाव इस प्रकार है।

इसकी शुरुआत उस समय हो गई जब देश में आजादी का आंदोलन चारो ओर जोरों से चल रहा देश में क्रांति की आग चरों ओर भड़क उठी थी। तमाम प्रतीक और नारों के बैनर तले आजादी की अलख जगाने के लिए लोग सड़कों पर आ चुके थे। ये देख ब्रिटिश सरकार भयभीत हो चुकी थी। जिससे घबराकर अब ब्रिटिश सरकार आजादी के लिए आवाज उठा रहे क्रांतिकारियों के संगठनों को तोड़ने का प्रयास में गए लेकिन वे असफल रहे। तभी उसी समय बीसवीं सदी की शुरुआत में भारत का सबसे पहला झंडा लोगो के सामने आया। जिसके तले आजादी की लड़ाई को एक नया स्वरुप देने का प्रयास किया गया।

1. भारत का पहला झंडा 1904 में विवेकानंद जी की शिष्या भगिनी निवेदिता द्वारा तैयार किया गया था। जिसे सिस्टर निवेदिता ध्वज के नाम से जाना गया । ये 7 अगस्त 1906 में कांग्रेस अधिवेशन में कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) के पारसी बगान (ग्रीन चौक ) पर फहराया गया था।


इस ध्वज को लाल, पीले और हरे रंग की क्षैतिज पट्टियों से बनाया गया था। ऊपर की ओर हरी पट्टी में आठ कमल थे और नीचे की लाल पट्टी में सूरज और चाँद बनाए गए थे। बीच की पीली पट्टी पर “बोंडे मातोंरम ” बांग्ला भाषा में लिखा गया था।

2. कुछ समय बाद एक और ध्वज लोगो के सामने आया जिसे 22 अगस्त 1907 में पेरिस में मैडम कामा और उनके साथ निर्वासित क्रांतिकारियों द्वारा जर्मनी में फहराया गया था। यह ध्वज विदेशी धरती पर फहराया जाने वाला पहला ध्वज बन गया । कुछ लोग इसे 1905 की घटना मानते है उस दिन से इसे बर्लिन कमेटी ध्वज जाने लगा। यह भी पहले ध्वज के समान ही था; सिवाय इसके कि इसमें सबसे ऊपर की पट्टी पर केवल एक कमल था, किंतु सात तारे सप्तऋषियों को दर्शाते थे। यह ध्वज बर्लिन में हुए समाजवादी सम्मेलन में भी प्रदर्शित किया गया था।


3. 1917 में एक और झंडे का पदार्पण हुआ उस समय राजनैतिक संघर्ष ने नया मोड़ लिया। डॉ॰ एनी बीसेंट और लोकमान्य तिलक ने घरेलू शासन आंदोलन के दौरान तृतीय चित्रित ध्वज को फहराया। इस ध्वज में पांच लाल और चार हरी क्षैतिज पट्टियां एक के बाद एक और सप्ततऋषि के अभिविन्यास में इस पर सात सितारे बने थे। ऊपरी किनारे पर बायीं ओर (खंभे की ओर) यूनियन जैक था। एक कोने में सफेद अर्धचंद्र और सितारा भी था।


4. 1921 में देश का एक और झंडा आया जिसे विजयवाड़ा के अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सत्र में फहराया गया इसे आंध्र प्रदेश के एक युवक पिंगली वैंकैया द्वारा बनाकर गांधी जी को दिया गया ये देश का चौथा झंडा था यह दो रंगों का बना था। लाल और हरा रंग जो दो प्रमुख समुदायों अर्थात हिन्दू और मुस्लिम का प्रतिनिधित्वं करता है। गांधी जी ने सुझाव दिया कि भारत के शेष समुदाय का प्रतिनिधित्व करने के लिए इसमें एक सफेद पट्टी और राष्ट्र की प्रगति का संकेत देने के लिए एक चलता हुआ चरखा होना चाहिए।


5. वर्ष 1931 तिरंगे के इतिहास में एक स्मरणीय वर्ष है। इस दिन तिरंगे ध्वज को भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया था और इसे राष्ट्र-ध्वज के रूप में मान्यता मिली थी। इस ध्वज को वर्तमान ध्वज के स्वरूप का पूर्वज कह सकते है। ये केसरिया, सफेद और मध्य में गांधी जी के चलते हुए चरखे के साथ था। इसमें यह भी स्पष्ट रूप से बताया गया था कि इसका कोई साम्प्रदायिक महत्त्व नहीं था।


6. 22 जुलाई 1947 को निर्वाचक असेंबली में आजाद भारत के ध्वज को स्वीकार किया। इसकी अभिकल्पना पिंगली वैंकैया ने की थी। आजादी पक्की होने के बाद उनके रंगों को तो नहीं बदला गया लेकिन गाँधी जी के चरखे का स्थान अशोक सम्राट के अशोक चक्र ने लिया । और तब जाके कांग्रेस का राष्ट्रीय ध्वज अब आजाद भारत का राष्ट्रीय ध्वज बन चुका था ।

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