बीजेपी के खिलाफ मोर्चाबंदी करने में जुटे प्रमुख विपक्षी दलों के मंसूबों को झटका लग सकता है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रास्ताव लाने के विचार के प्रति असहमति जताई है। वहीं, दूसरी ओर विपक्षी दलों को एकजुट करने के लिए प्रयासरत राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के संस्थापक प्रमुख शरद पवार ने तृणमूल कांग्रेस प्रमुख से दिल्ली में मुलाकात की है। हालांकि, पवार ने पहले ममता बनर्जी से मुलाकात या डिनर करने की बात से साफ इनकार किया था। उन्होंने कहा था, ‘कोई बैठक नहीं, कोई डिनर नहीं।’ अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों को देखते हुए क्षेत्रीय क्षत्रप बीजेपी के खिलाफ साझा मोर्चा बनाने में जुटे हैं। भाजपा विरोधी खेमे के सूत्रधारों में ममता बनर्जी भी एक हैं, लेकिन उन्होंने विपक्षी दलों की ओर से NDA सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश करने के विचार के प्रति असहमति जताकर नया राग छेड़ दिया है। उनके बयान से विपक्षी एकता में दरार के आसार बढ़ गए हैं। बता दें कि ममता बनर्जी की पार्टी मौजूदा लोकसभा में बीजेपी, कांग्रेस और अन्नाद्रमुक के बाद चौथी सबसे बड़ी पार्टी है। विपक्षी दलों में तृकां का नंबर तीसरा है।
विपक्ष को एकजुट करने के प्रयास के तहत UPA प्रमुख सोनिया गांधी ने कुछ दिनों पहले ही दिल्ली में डिनर पार्टी भी दी थी। इसमें विभिन्न दलों के प्रमुख जुटे थे, लेकिन तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी ने शिरकत नहीं की थी। उन्होंने इसमें अपने प्रतिनिधि को भेजा था। ऐसे में ममता बनर्जी को एक मंच पर लाने के लिए दोबारा प्रयास शुरू किया गया है। शरद पवार इसमें मुख्य भूमिका निभा रहे हैं।
दिलचस्प है कि उत्तर प्रदेश में लोकसभा उपचुनावों से पहले अखिलेश यादव और मायावती को एक मंच पर लाने का श्रेय ममता बनर्जी को दिया जाता है। तृणमूल प्रमुख ने ही अखिलेश को मायावती से हाथ मिलाने की सलाह दी थी। बता दें कि आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने के लिए वाईएस जगनमोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआर कांग्रेस ने लोकसभा में नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का नोटिस दिया था। इसके बाद NDA से अलग होकर TDP ने भी ऐसा ही नोटिस दिया था। इन दोनों क्षेत्रीय दलों के अलावा कांग्रेस ने भी मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का नोटिस दिया है। हालांकि, लोकसभा में हंगामे के कारण विपक्षी दलों के प्रस्ताव पर विचार नहीं हो सका है। दूसरी तरफ, विपक्षी दलों के इस रवैये को भाजपा के खिलाफ एकजुट होने के प्रयास के तौर पर भी देखा जा रहा है।