Tuesday, March 26, 2024
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‘मायाना कोलाई’ उत्सव: अच्‍छाई की जीत के इस उत्‍सव में जिंदा मुर्गा चबा जाते हैं लोग…

SI News Today

तमिल कैलेंडर के अनुसार मासी अमावस्या के दिन उत्सव मनाने के लिए कब्रिस्तान जाते हैं। इस उत्सव को अच्छाई की विजय के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। उत्तर भारत के पर्व शिवरात्रि के बाद तमिलनाडु की गलियों में ढोल की गूंज शुरु हो जाती है। इस उत्सव में लोग नाटकीय प्रस्तुति करते हैं और देवी को प्रस्तुत की जाने वाली खाद्य वस्तुएं लेकर निकलते हैं। योद्धाओं की ये टोली श्री अंगलाम्मन और पावाडरायण के साथ निकलते हैं, इनके साथ सेवक तलवारे लेकर चलते हैं जो मायाना कोलाई की प्रस्तुति देते हैं।

देवी कादुकाल्ल जिन्हें कब्रिस्तान की देवी माना जाता है, उन्हें खाद्य वस्तुएं अर्पित करते हैं। तंजौर तमिल विश्वविद्यालय से जुड़े व्यक्ति बताते हैं कि मायाना कोलाई का उत्सव सभी योद्धा और उनके परिवार मनाते हैं। यह परंपरा तब से मनाई जा रही है जब सैनिक युद्धा के लिए जाते थे। इस उत्सव पर देवी से प्रार्थना की जाती है कि जो भी नुकसान युद्धा के दौरान हुआ है, उसकी भरपाई जल्दी हो जाए। देवी को प्रसन्न करने के लिए लोग हाथ, पैर और शरीर के अन्य अंग अर्पित करते हैं। आज के समय योद्धा जंग के लिए नहीं जाते हैं तो इस उत्सव में युद्ध की नाटकीय प्रस्तुति की जाती है।

मायाना कोलाई के उत्सव में एक व्यक्ति अंगलाम्मन के रुप में और उन्हीं के साथ एक व्यक्ति भगवान शिव या हनुमान के रुप में होता है। यह सभी छोटी परेड लेकर कब्रिस्तान की तरफ जाते हैं। वहां मायना सूरण की तस्वीर मिट्टी, राख और हड्डियों से बनी हुई होती है। सूरण की तस्वीर बनाने के लिए लोग इच्छानुसार सामग्री का प्रयोग करते हैं। अधिकतर अंगलाम्मन बकरी, मुर्गा या सूअर होता है। सूरण के पूजन के दौरान सूरई शब्द को तीन बार बोला जाता है। कई लोगों की मान्यता है कि अंगलाम्मन और देवी काली एक ही हैं। देवी काली को अम्म काली भी कहा जाता है। इस कारण से इस पर्व में हड्डियों, खून, मांस आदि का प्रयोग किया जाता है। मायाना कोलाई को कई तरीकों से मनाया जाता है।

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