Miracle : The milk of this village of Rajasthan turns into curd.
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आप दही जमाने के पारंपरिक तरीकों से भलीभांति जानते होंगे. दही जमाने के लिए ज्यादातर खट्टा (छाछ) का प्रयोग किया जाता है. लेकिन क्या आपको पता है अजब-गजब इस दुनिया के हर एक कोने में दही ज़माने के लिए अलग तरीके मौजूद हैं. तो आज हम आपको राजस्थान के एक ऐसे गांव के बारे में बताने जा रहे है जहाँ दही ज़माने के लिए ना तो छाछ काम में ली जाती है और ना किसी रासायन का प्रयोग किया जाता . बल्कि इस गांव के लोग सैकड़ो वर्षो से दूध से दही जमाने के लिए एक चमत्कारी पत्थर का उपयोग करते आ रहे हैं.
रिसर्च में साबित हुआ है की इस पत्थर में दही जमाने वाले कैमिकल मौजूद हैं. इस पत्थर में एमिनो एसिड, फिनायल एलिनिया, रिफ्टाफेन टायरोसिन हैं. ये कैमिकल दूध से दही जमाने में सहायक होते हैं. जिसकी वजह से यह दूध में डालने के करीब 14 घंटे बाद यह दूध को दही में परिवर्तित कर देता है.
हाबूर गांव के लोग तो ‘जमावन’ नहीं होने की स्थिति में आज भी इस ‘चमत्कारी’ पत्थर के टुकड़े से ही दही जमाते हैं. यह पत्थर जैसलमेर से 40 किलोमीटर दूर स्थित हाबूर क्षेत्र में ही पाया जाता है.कत्थई-गेरूएं रंग के धारीदार इस पत्थर के कई उपयोग है। इन दिनों जैसलमेर में बृजरतन ओझा बाबा महाराज तो इस पत्थर की कलाकृतियां बनवा कर देश-विदेश के सैलानियों को बेच रहे हैं। बतौर बाबा महाराज ‘यह पत्थर बड़ा कीमती है। इसकी तादाद सीमित हैं.
बाबा ने बताया कि इस पत्थर के कई नाम है, जैसे हाबूर का छींटदार पत्थर, सुपारी, हरफी, दिलपाक, अजूबा, अभरी, महामरियम, दूध जमावणिया, भूत भगावणिया आदि नाम हैं. उन्होंने बताया कि इस पत्थर से मालाएं, फूलदान, प्याले, गिलास, बरछी, कुल्हाड़ी, प्लेट्स, ट्रे, ऐस्ट्रे, नगीने, पेंडेन्ट्स, एक्यूप्रेशर पेंसिल, पेपरवेट, अगरबत्ती स्टैंड, कैंडल स्टैंड, छतरी, गणेश, कप प्लेट्स व गणेश आदि कलाकृतियां बनाई जाती है.
बताया जाता है कि राजस्थान के यह रेगिस्तानी जिला जैसलमेर पहले अथाह समुद्र हुआ करता था और इसके सूखने के बाद कई समुद्री जीव यहां जीवाश्म बन गए और पहाड़ों मे बदल गए.