Thursday, April 25, 2024
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गर्मी बहुत बढ़ गयी है, मगर क्यूँ बढ़ रही है ये भी जानिए..

SI News Today

Summer has increased a lot, but why is it increasing? Also know this…

@globalwarming 

शहरों में “Urban Heat Island Effect” की घटना आसपास के उपनगरीय या ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में हवा का तापमान गर्म होने का कारण बनता है। शहरों में, हवा, सतह और मिट्टी के तापमान ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में लगभग हमेशा गर्म होते हैं। “Urban Heat Island Effect” शब्द सबसे पहले 20 वीं शताब्दी के मध्य में उपयोग में आया था। इसके लिए कई कारण हैं, जिनमें बड़ी संख्या में इमारतों और सड़कों शामिल हैं जो सूर्य से गर्मी को अवशोषित करती हैं, पानी की वाष्पीकरण से हवा को ठंडा करने वाले पौधों की कमी, और यहां तक ​​कि कई मानव निकायों द्वारा उत्पन्न गर्मी भी शामिल है।

नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार “Urban Heat Island Effect” गर्म हवा के तापमान से संबंधित “वायु गुणवत्ता, सार्वजनिक स्वास्थ्य और ऊर्जा की मांग अधिक मांग की वजह से होते है”। यह स्पष्ट हो गया कि शहरों के Urban Heat Island (UHI) प्रभाव वायु तापमान के रिकॉर्ड को प्रभावित कर रहा था, जिसका उपयोग जलवायु परिवर्तन का आकलन करने के लिए किया जाता है। दूसरे शब्दों में, मौसम की सटीक भविष्यवाणी सुनिश्चित करने के लिए मौसम स्टेशन के रिकॉर्ड से शहरी “प्रदूषण” को हटाना अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया है।

यहाँ ये भी महत्वपूर्ण है कि शहरों में आबादी बढ़ गई है जिससे गर्मी बढ़ती है इसलिए INDOOR COOLING की मांग भी बढ़ी है – आमतौर पर एयर कंडीशनिंग से INDOOR COOLING की जाती है। यह ठंडे मौसम में भी लागू होता है, जहां इमारत के उपयोग में बदलाव ने INDOOR COOLING की मांग में वृद्धि की है।
गर्मियों में, एक बड़ा शहर आसानी से आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में +5°F से लेकर +18°F गर्म हो सकता है, जो एक अप्रिय गर्मी की लहर को घातक आपदा में बदल सकता है।

और चूंकि ग्लोबल वार्मिंग देश भर में तापमान को एकदम से बढ़ा देती है, इसलिए “Urban Heat Island Effect” की स्थिति मजबूत हो रही है। Journal Landscape and Research Planning के एक नए अध्ययन से पता चलता है कि देश के काफी हिस्से बहुत तेज़ी से गर्म हो रहे हैं। सबसे बड़े मेट्रो क्षेत्रों के तीन-चौथाई हिस्से प्रति दशक 0.60 डिग्री फ़ारेनहाइट की औसत दर से गर्म हो रहे हैं। एक नई रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया की आधी आबादी शहरी क्षेत्रों में रहती है, और यह आंकड़ा 2050 तक 66 प्रतिशत तक पहुंचने की उम्मीद है। दुनिया भर में तेरह शहरों के तापमान में “खतरनाक” स्थिति तक पहुंचने का अनुमान है जो अगले दशक में 2°C से अधिक हो सकता है। कोलंबिया विश्वविद्यालय में स्थित शहरी जलवायु परिवर्तन अनुसंधान नेटवर्क द्वारा किए जाने वाले शोध के अनुसार – कई वर्षों में रूसी राजधानी, मॉस्को को 100 से अधिक शहरों में सबसे ज्यादा संभावित वृद्धि का सामना करना पड़ सकता है।
कुछ समय पूर्व दक्षिण-पूर्वी एशिया एवं जापान में आई सुनामी, पाकिस्तान, हैती तथा चीन में हुए भूकंप, साथ ही कटरिना एवं उत्तर और मध्य अमरीका में आई अन्य चक्रवात आदि द्वारा हुए प्राकृतिक संकट देखे हैं। इन की तीव्रता के कारण हुआ अभूतपूर्व विध्वंस तथा जन-हानि हमारे मन पर अंकित हो गई है। विश्वविख्यात वैज्ञानिक संस्थानों ने भी इस बात का स्वीकार किया है कि पृथ्वी का तापमान बढता जा रहा है। कई भूवैज्ञानिक दावा करते हैं कि प्राकृतिक आपदाओं की तीव्रता में और पृथ्वी के तापमान में वृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग) होने के कारण कुछ और नहीं, अपितु पृथ्वी पर नियमितरूप से होनेवाले चक्रीय परिवर्तन के परिणाम हैं। मानव प्रकृति को भारी मात्रा में प्रभावित करता है और यह प्रभाव तब पडता है जब भारी संख्या में वृक्ष कटते हैं, तेल का रिसाव होता है तथा कारखानों से धुआं फैलता है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण होने वाले जलवायु परिवर्तन के लिये सबसे अधिक जिम्मेदार ग्रीन हाउस गैस हैं। ग्रीन हाउस गैसें, वे गैसें होती हैं जो बाहर से मिल रही गर्मी या ऊष्मा को अपने अंदर सोख लेती हैं। ग्लोबल वार्मिंग में 90 प्रतिशत योगदान मानवजनित कार्बन उत्सर्जन का है। नदियाँ प्रदूषण की वजह से गन्दी हो रही है और उनका BOD बढ़ रहा है, जिससे न तो उसमे जलीय जीव पनप रहे है और न वो पीने लायक रह गयी है। गंगा नदी इसका प्रमुख उदाहरण है, जिसका जल पवित्र माना जाता है अब वो जानवरो के पीने तो क्या आपका गंगाजल से आचमन करने का भी मन नहीं करेगा।

ग्लोबल वार्मिंग को रोकने का कोई इलाज नहीं है। इसके बारे में सिर्फ जागरूकता फैलाकर ही इससे लड़ा जा सकता है। हमें अपनी पृथ्वी को सही मायनों में ‘ग्रीन’ बनाना होगा।

1. अपने ‘कार्बन फुटप्रिंट्स’ (प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन को मापने का पैमाना) को कम करना होगा।

2. हम अपने आस-पास के वातावरण को प्रदूषण से जितना मुक्त रखेंगे, इस पृथ्वी को बचाने में उतनी ही बड़ी भूमिका निभाएंगे।

3. ग्लोबल वार्मिंग में कमी के लिये मुख्य रूप से CFC गैसों का उत्सर्जन रोकना होगा और इसके लिये फ्रिज़, एयर कंडीशनर और दूसरे कूलिंग मशीनों का इस्तेमाल कम करना होगा या ऐसी मशीनों का उपयोग करना होगा जिससे CFC गैसें कम निकलती हों। 

4. औद्योगिक इकाइयों की चिमनियों से निकलने वाला धुआँ हानिकारक है और इनसे निकलने वाला कार्बन डाइआॅक्साइड गर्मी बढ़ाता है। इन इकाइयों में प्रदूषण रोकने के उपाय करने होंगे। उद्योगों और ख़ासकर रासायनिक इकाइयों से निकलने वाले कचरे को फिर से उपयोग में लाने लायक बनाने की कोशिश करनी होगी।

5. वाहनों में से निकलने वाले धुएँ का प्रभाव कम करने के लिये पर्यावरण मानकों का सख्ती से पालन करना होगा।

6. प्राथमिकता के आधार पर पेड़ों की कटाई रोकनी होगी और जंगलों के संरक्षण पर बल देना होगा।

7. अक्षय ऊर्जा के उपायों पर ध्यान देना होगा यानि अगर कोयले से बनने वाली बिजली के बदले पवन ऊर्जा, सौर ऊर्जा और पनबिजली पर ध्यान दिया जाए तो वातावरण को गर्म करने वाली गैसों पर नियंत्रण पाया जा सकता है तथा साथ ही जंगलों में आग लगने पर रोक लगानी होगी।

8. नदियों के जल संरंक्षण पर विशेष ध्यान देना होगा ताकि Ecosystem सही ढंग से अपना काम करता रहे। 

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