Thursday, March 28, 2024
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भारत का ये अहम हिस्सा आज भी है ब्रिटिश सरकार का गुलाम, देता है लगान

SI News Today

This important part of India is still the slave of the British government, gives Lagaan.

 

भारत को आजादी 15 अगस्त 1947 को मिले हुए लगभग 71 साल हो गए है, लेकिन आपको यकीन नहीं होगा कि भारत देश के एक हिस्से पर ब्रिटिश हुकूमत का राज आज भी कायम है और यही नहीं यहां से हर साल 120 करोड़ का राजस्व ब्रिटेन को भेजा जाता है।

दरअसल भारत में बिछी हुई अमरावती से मुर्तजापुर तक एक रेल लाइन है, जिसका मालिकाना हक भारतीय रेलवे की बजाए ब्रिटेन की एक निजी कंपनी के पास है। ऐसे में इसकी रॉएल्टी भी उसी को जाती है। इस आप यूँ समझ सकते है कि आज भी भारत ब्रिटिश हुकूमत को उनकी ट्रेन को चलने के लिए लगान देता है। साल 1951 में भारतीय रेल का राष्ट्रीयकरण करने के बावजूद सिर्फ ये रूट ही भारत सरकार के अधीन नहीं हुआ। अंग्रेजों ने इस ट्रैक का निर्माण अमरावती से कपास मुंबई पोर्ट तक पहुंचने के लिए करवाया था। इसका निर्माण 1903 में ब्रिटिश कंपनी क्लिक निक्सन ने शुरू किया था और रेल ट्रैक को बिछाने का काम 1916 में पूरा हुआ था। 1857 में स्थापित इस कंपनी को आज Central Province Railway कंपनी के नाम से जाना जाता है।

वैसे इस रेलवे ट्रैक पर सिर्फ एक ही ट्रेन शकुंतला एक्सप्रेस पैसेंजर ही चलती है। यह ट्रेन अमरावती से मुर्तजापुर के 189 किलोमीटर का सफर अधिकतम गति 20 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से पूरा करती है। शकुंतला एक्सप्रेस पहली बार 2014 में और दूसरी बार अप्रैल 2016 में बंद किया गया था। मगर स्थानीय लोगों की मांग और सांसद आनंद राव के दबाव में सरकार को फिर से इसे शुरू करना पड़ा। आनंद राव का कहना है कि, यह ट्रेन अमरावती के लोगों की लाइफ लाइन है। उन्होंने इसे ब्रॉड गेज में कन्वर्ट करने का प्रस्ताव भी रेलवे बोर्ड को भेजा है।

भारत सरकार ने इस ट्रैक को कई बार खरीदने का प्रयास भी किया, लेकिन तकनीकी कारणों से वह संभव नहीं हो सका। आज भी इस ट्रैक पर ब्रिटेन की इस कंपनी का कब्जा है। इसके देख-रेख की पूरी जिम्मेदारी भी इसपर ही है। हर साल पैसा देने के बावजूद यह ट्रैक बेहद जर्जर है। रेलवे सूत्रों का कहना है कि, पिछले 60 साल से इसकी मरम्मत भी नहीं हुई है। सात कोच वाली इस पैसेंजर ट्रेन में रोजाना एक हजार से ज्यादा लोग यात्रा करते हैं।

100 साल पुरानी 5 डिब्बों की इस ट्रेन को 70 साल तक स्टीम का इंजन खींचता था, जिसे 1921 में ब्रिटेन के मैनचेस्टर में बनाया गया था। 15 अप्रैल 1994 को शकुंतला एक्प्रेस के स्टीम इंजन की जगह डीजल इंजन का यूज़ किया जाने लगा। इस रेल रूट पर लगे सिग्नल आज भी ब्रिटिशकालीन हैं। इनका निर्माण इंग्लैंड के लिवरपूल में 1895 में हुआ था।

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