Friday, April 19, 2024
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देश के गौरव का अनसुना इतिहास

SI News Today

Unheard of history of country’s pride.

       

महात्मा गाँधी ने कहा है, हम भारतीयों, मुस्लिम, क्रिस्चियन, पारसी और सभी धर्मो के लोगो के जीने और मरने के लिये एक ध्वज का होना बहुत जरुरी है। जिससे उनके देश का पता चल सके. देश की आज़ादी के बाद से लेकर अब तक प्रत्येक वर्ष में 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के रूप में राष्ट्र ध्वज को फहराया जाता है. लेकिन क्या आपने कभी ये सोचा है कि इस तिरंगे का निर्माण कैसे हुआ था? क्या आप जानते है कि इस तिरंगे की अभीकल्पना किसने की थी? आज हम आपके समक्ष उन सभी सवालों का जवाब रखने वाले हैं जो आपके दिमाग में कभी ना कभी तो आते ही होंगे.

पिंगली वेंकैया ने हमारे ध्‍वज की अभिकल्‍पना की थी. 22 जुलाई 1947 में इसके स्वरुप को संविधान सभा की बैठक के दौरान अपनाया गया था. तीन रंगो से भरे हमारे ”तिरंगे” का मतलब भारतीय राष्‍ट्रीय ध्‍वज होता है. क्षैतिज पट्टियो वाले इस तिरंगे में सबसे ऊपर केसरिया, बीच में सफेद ओर नीचे गहरे हरे रंग की प‍ट्टी होती है. जबकि इससे पहले पिंगली वैंकैयानन्‍द ने लाल व हरे रंग वाला तिरंगा तैयार किया था जोकि हिन्दू व मुस्लिम समुदाय की एकता का प्रतीक था. लेकिन गाँधी जी के कहने पर सभी समुदायों को एक साथ रखने के लिए इसमे सफ़ेद रंग जोड़ा गया. वही तिरंगे में बने इस चक्र को सम्राट अशोक द्वारा बनाए गए सारनाथ में स्थित अशोक स्तम्भ से लिया गया है. जिसका अर्थ है कि जीवन गति‍शील है और रुकने का अर्थ मृत्‍यु है.

ध्‍वज संहिता

सन 2002 से पहले, भारत की आम जनता के लोग केवल गिने चुने राष्ट्रीय त्योहारों को छोड़ सार्वजनिक रूप से राष्ट्रीय ध्वज फहरा नहीं सकते थे. वही तब एक उद्योगपति, नवीन जिंदल ने, दिल्ली उच्च न्यायालय में, इस प्रतिबंध को हटाने के लिए जनहित में एक याचिका दायर की थी. जिसके बाद जिंदल ने जान बूझ कर, झंडा संहिता का उल्लंघन करते हुए अपने कार्यालय की इमारत पर झंडा फहराया.जिसकी वजह से उन पर मुकदमा चलाने की चेतावनी दी गई. लेकिन जिंदल ने हार नहीं मानी, उन्होंने बहस की कि एक नागरिक के रूप में मर्यादा और सम्मान के साथ झंडा फहराना उनका अधिकार है और यह एक तरह से भारत के लिए अपने प्रेम को व्यक्त करने का माध्यम है.

वही 26 जनवरी 2002 में भारतीय ध्‍वज संहिता में संशोधन के बाद भारत के नागरिकों को अपने घरों, कार्यालयों और फैक्ट्रियों में तिरंगा फहराने की अनुमति मिल गई. इस संशोधन के बाद कोई भी भारतीय नागरिक किसी भी समय बिना किसी रुकावट के तिरंगे को फेहराह सकते हैं. बशर्ते कि वे ध्‍वज की संहिता का कठोरता पूर्वक पालन करें और तिरंगे की शान में कोई कमी न आने दें.

26 जनवरी 2002 में जब भारतीय ध्‍वज संहिता में संशोधन किया गया था तो उसे तीन भागों में बांटा गया . इसके पहले भाग में राष्‍ट्रीय ध्‍वज का सामान्‍य विवरण है. दूसरे भाग में जनता, निजी संगठनों, शैक्षिक संस्‍थानों आदि के सदस्‍यों द्वारा राष्‍ट्रीय ध्‍वज के प्रदर्शन के विषय में बताया गया है. इसके तीसरे भाग में केन्‍द्रीय व राज्‍य सरकारों और उनके संगठनों, अभिकरणों द्वारा राष्‍ट्रीय ध्‍वज के प्रदर्शन के विषय में जानकारी दी गई.

जब घर के अंदर प्रदर्शित होना हो झंडे को

अगर झंडे को किसी बंद कमरे, सार्वजनिक बैठकों या किसी भी प्रकार के सम्मेलनों में प्रदर्शित किया जाता है तब तिरंगा तो दाईं ओर रखा जाना चाहिए क्योंकि यह स्थान अधिकारिक होता है. जब झंडा हॉल या किसी बैठक में एक वक्ता के बगल में प्रदर्शित किया जा रहा हो तब तिरंगा वक्ता के दाहिने हाथ पर रखा जाना चाहिए. जब तिरंगा हॉल के किसी दूसरी जगह पर प्रदर्शित किया जाता है, तो उसे दर्शकों के दाहिने ओर रखा जाना चाहिए. वही अगर तिरंगे को मंच के पीछे की दीवार पर लंब में लटका दिया गया है तो, केसरिया पट्टी को ऊपर रखते हुए दर्शेकों के सामने रखना चाहिए ताकि शीर्ष ऊपर की ओर हो.

तिरंगे के बारे में कुछ अनसुनी बातें

भारत में बेंगलुरु से 420 किमी स्थित हुबली एक मात्र लाइसेंस प्राप्त स्थान हैं जो झंडा बनाने का व सप्लाई करने का काम करता हैं.  यहां 40 महिलाएं प्रतिदिन 100 के करीब झंडे सिलती हैं. राष्ट्रपति भवन में हीरे-जवाहरातों से जड़ा तिरंगा रखा हुआ हैं. संसद भवन देश का एक मात्र ऐसा भवन हैं जिसपर एक साथ तीन तिरंगे फहराया जाता हैं. तिरंगे को रात में फहराने की अनुमति 2009 दी गई. तिरंगा हमेशा कॉटन, सिल्क या फिर खादी की होना चाहिए, प्लास्टिक के झंडे पर रोक लगाई गई हैं. भारतीय तिरंगे को 29 मई, 1953 को एवरेस्ट की चोटी पर, यूनियन जैक (यूनाइटेड किंगडम) और नेपाल के राष्ट्रिय ध्वज के साथ फहराया गया था. भिकाजी रूस्तम कामा ने सर्वप्रथम भारतीय झंडे तिरेंगे को विदेशी भूमि (जर्मनी के संसद) में फहराया था.

पहला भारतीय झंडा 7 अगस्त 1906 में कलकत्ता के पारसी बगान स्कवॉयर में फहराया गया था. इस झंडे में हरे, पीले और लाल रंग की तीन पट्टियां थी. इसके बीच की पट्टी पर वंदेमातरम लिखा हुआ था. नीचे की पट्टी पर सूर्य और चांद का सांकेतिक चिन्ह बना हुआ था.

देश का दूसरा झंडा 1907 में मैडम कामा और निर्वासित क्रांतिकारियों के उनका संगठन ने पेरिस में फहराया था. इसमें हरे, पीले और नारंगी रंग की तीन पट्टियां थी. इस झंड़े की बीच की पट्टी पर वंदेमातरम लिखा हुआ था. नीचे की पट्टी पर सूर्य और चांद का सांकेतिक चिन्ह बना हुआ था.

1917 के दौरान देश में तीसरे झंडे को डॉ. एनी बेसेंट और लोकमान्य तिलक ने होम रूल मूवमेंट के दौरान फहराया था. झंडे में ऊपर की तरफ यूनियन जैक था. इसमें बिग डिपर या सप्तर्षि नक्षत्र और अर्धचंद्र चंद्र और सितारा भी था.

देश में चौथा झंडा 1916 में पिंगली वेंकैया ने डिजाइन किया था.गांधी जी ने इस झंड़े को 1921 में फहराया था. इसमें सबसे ऊपर सफेद, बीच में हरा और सबसे नीचे लाल रंग की पट्टियां थी.

देश में पांचवा झंडा 1931 में आया जब कांग्रेस कमेटी बैठक में पास हुए एक प्रस्ताव में भारत के तिंरगे को मंजूरी मिली थी. इस तिरंगे में केसरिया रंग ऊपर, बीच में सफेद और सबसे नीचे हरे रंग की पट्टी थी. सफेद रंग की पट्टी पर नीले रंग का चरखा बना हुआ था.

देश में छठे झंडे को आजाद भारत के लिए संविधान सभा ने स्वीकार कर लिया था. भारत के राष्ट्रीय ध्वज में जब चरखे की जगह अशोक चक्र लिया गया तो गाँधी जी नाराज़ हो गए थे. उन्होंने कहा था कि मैं अशोक चक्र वाले झंडे को सलाम नहीं करूगां. हालाँकि अब यही झंडा 1947 से भारत का राष्ट्रीय ध्वज है.

हमारे राष्ट्रीय ध्वज को डिज़ाइन करने वाले आंध्रप्रदेश के पिंगली वेंकैया की मौत 1963 में बहुत गरीबी में हुई थी. वही इनकी मृत्यु के 46 वर्ष बाद डाक टिकट जारी कर करे इनको सम्मान दिया गया. कर्नाटक में भारत का सबसे ऊंचा झंडा है जिसकी ऊंचाई 369 .89 फ़ीट है . झंडे की गरिमा के अनुरूप जब वह क्षतिग्रस्त या मैला हो गया है तो उसे गंगा में विसर्जन या उचित सम्मान के साथ दफना देना चाहिए.

भारतीय झंडे का इतिहास पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें –  भारत की आन बान और शान तिरंगा कैसे बना राष्ट्र ध्वज

 

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