Friday, September 20, 2024
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हथियार ज़्यादा हों तो दंगे कम होंगे

SI News Today

View Source:- Sotry Page  Kamlesh Singh  

अगर किसी को भी कोई भी हथियार रखने की छूट हो, दुकानों में खिलौनों की तरह हथियार बिकने लगें तो दंगे और उपद्रव ख़ुद-बख़ुद बहुत कम हो जाएँगे। जबसे अंग्रेज़ों ने हथियार रखने पर पाबंदी लगायी, तब से सांप्रदायिक दंगे बहुत बढ़ गए।

अहिंसा की गारंटी है हिंसा/ प्रतिहिंसा की क्षमता। दंगे का मतलब है कि किसी समुदाय की हिंसा की क्षमता कम हो गई है या कम करके आँकी गई है। आज दुनिया में 300 साल पहले की तुलना में बहुत कम हिंसा इसलिए है कि देश और समुदाय हिंसा/प्रतिहिंसा की क्षमता से लैश हैं।

1000 सालों में इस्लामी हमलावर सेनाएँ और जेहादी गिरोह सिर्फ 10 करोड़ हिंदुओं-बौद्धों को मार पाए यानि हिन्दुस्तान बचा रह गया तो इसका कारण था हिन्दू-समाज की प्रतिहिंसा की क्षमता जिसे 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद अंग्रेज़ों ने नेस्तनाबूद करने में कोई कसर नहीं रखी। सम्भव है कि ऐसा नहीं होता तो हिन्दुस्तान का बँटवारा भी नहीं होता।

मुसलमानों ने भले ही 1857 के बाद पहले से कम हथियार रखे, फिर भी जेहाद के इस्लामी सिद्धान्त के तहत हिंदुओं या ग़ैर-मुसलमानों (सिखों को छोड़) के बनिस्पत उनके पास ज़्यादा हथियार रहते थे। इसलिए जिन्ना के ‘डायरेक्ट एक्शन’ के कौल के तहत मुसलमानों ने भीषण क़त्लेआम मचाया, नोआखाली दंगों में गाँधी ने तब हस्तक्षेप किया जब हिन्दुओं ने प्रतिहिंसा में मुसलमानों को मारना शुरू कर दिया था।

इस तरह दूरगामी शांति के मद्देनज़र ‘सत्य और अहिंसा’ के घोषित पुजारी गाँधी ने सही मायने में ‘असत्य और हिंसा’ का ही पक्ष मजबूत किया जिसका दुष्परिणाम देश आज भी भुगत रहा है।
‘असत्य’ इसलिए कि मनुष्य के बुनियादी स्वभाव (ताक़त के आधार पर अपनी बात मनवाना) के अटल सत्य के ख़िलाफ़ था गाँधी का आचरण और कथन; ‘हिंसा’ इसलिए कि हिंदुओं ने गाँधी की बात पर विश्वास ज़्यादा किया और इस्लामी हिंसा के शिकार हुए।

सीमान्त गाँधी यानि ख़ान अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ान और उनके अनुगामी पख़्तूनों का भी यही हाल हुआ, बलूच भी ठगे गए। ख़ान अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ान ने तो आहत होकर गाँधी से कहा था: आपने हमें भेड़ियों (पाकिस्तान समर्थक जेहादी मुसलमानों) के हवाले कर दिया है।
©चन्द्रकान्त प्रसाद सिंह
#साभार

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