सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि नाबालिग से रेप के आरोपी व्यक्ति को उस वक्त पीड़िता से बिना जिरह किए दोषी ठहराया जा सकता है जब अन्य सभी सबूत रेप की पुष्टि करने के लिए पर्याप्त हैं। खबर के मुताबिक अगर बाकी सारे सबूत दोष की पुष्टि करते हैं तो आरोपी व्यक्ति को दोषी ठहराने के लिए नाबालिग पीड़िता से जिरह करने की कोई जरूरत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर रेप के मामले में नाबालिग रेप पीड़िता आरोपी के खिलाफ एक्जामिनेशन कराने में असमर्थ होती है तो ऐसे में आरोपी को पीड़िता की कमजोर स्थिति का फायदा नहीं उठाने दिया जा सकता। ऐसी स्थिति में बाकी सारे सबूतों के आधार पर मामले की सुनवाई की जा सकती है और आरोपी को दोषी करार ठहराया जा सकता है। यह बात जस्टिस एके गोयल और जस्टिस यूयू ललित की पीठ ने बॉम्बे हाई कोर्ट के उस आदेश को खारिज करते हुए कही है जिसमें हाई कोर्ट ने आरोपी को पीड़िता द्वारा एक्जामिनेशन नहीं करने की वजह से रिहा कर दिया था।
हाई कोर्ट के आदेश को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरोपी को दोषी करार देने के लिए पर्याप्त सबूत थे, उसे केवल इस आधार पर बरी नहीं किया जा सकता था कि मामले में पीड़िता की जांच नहीं हुई। बता दें कि साल 2008 में नागपुर के पास एक मानसिक रोगी और सुनने में असमर्थ नाबालिग लड़की का रेप हुआ था, इस केस में पीड़िता की से जिरह नहीं किया जा सका था। इस केस में बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा था, ‘क्योंकि पीड़िता की जांच नहीं हो सकी, इसलिए इस केस में आरोपी के शामिल होने की पुष्टि करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं है।’ बता दें कि आरोपी के ऊपर आरोप था कि उसने मानसिक रूप से बीमार नाबालिग लड़की को मिठाई का लालच देकर रेप किया था।
हाई कोर्ट के आदेश को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘इस मामले में पीड़िता की मां ने पर्याप्त सबूत मुहैया कराए थे, जिसमें ये साफ होता है कि जिस दिन अपराध हुआ था उस दिन आरोपी और पीड़िता को एक साथ देखा गया था। घटना होने के बाद पीड़िता ने जो कुछ भी बात अपनी मां को बताई थी, वही बात एफआईआर में भी लिखी गई है। चिकित्सा प्रमाणों ने भी रेप होने की पुष्टि की थी। आरोपी की पहचान भी विवाद का मुद्दा नहीं था। इस मामले में इन सारे सबूतों के आधार पर ट्रायर कोर्ट ने ने आरोपी को दोषी करार दिया था, लेकिन हाई कोर्ट ट्रायल कोर्ट के फैसले से संतुष्ट नहीं था और आरोपी को रिहा कर दिया गया था।’