दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपनी साढ़े तीन वर्षीय भतीजी का यौन उत्पीड़न करने और अपराध को छिपाने के लिए उसकी हत्या करने के जुर्म में एक व्यक्ति को मृत्युपर्यंत उम्रकैद की सजा सुनाई है. यह घटना वर्ष 2010 की है, तब व्यक्ति की उम्र 45 वर्ष थी. अदालत ने कहा कि उस घने जंगल में बच्ची की चीखों को सुनने वाला कोई नहीं था. व्यक्ति ने कृत्य को अंजाम देने के बाद उसे उस जंगल में फेंक दिया था.
व्यक्ति को निचली अदालत ने दोषी करार दिया था और सजा सुनाई थी, इस आदेश को चुनौती देते हुए उसने याचिका दायर की थी, जिसे न्यायमूर्ति प्रतिभा रानी और न्यायमूर्ति रेखा पल्ली ने खारिज कर दिया.
पीठ ने कहा, ‘भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (2) के तहत अपराध के लिए अपीलकर्ता को उम्रकैद की जो सजा सुनाई गई है उसका मतलब है कि बाकी के जीवन यानी प्राकृतिक रूप से मौत होने तक वह जेल में रहेगा, इसे इसी तरह लागू किया जाए’. अदालत ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सामने आए इस तथ्य पर गौर किया कि बर्बर यौन उत्पीड़न के बाद बच्ची को बुरी तरह पीटा गया और फिर उसकी हत्या कर दी गई.
अभियोजन पक्ष के मुताबिक घटना नवंबर 2010 की है. बच्ची की मां ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली की पुलिस में बेटी के लापता होने की शिकायत दर्ज करवाई थी. वह व्यक्ति बच्ची के पिता का चचेरा भाई था और टॉफी दिलाने के बहाने बच्ची को अपने साथ ले गया था, जिसके बाद से वह लापता थी.
उसने पुलिस को बताया कि बलात्कार के बाद बच्ची ने कहा था कि वह इस बारे में अपनी मां को बताएगी, जिसके बाद पकड़े जाने के डर से उसने बच्ची की हत्या कर उसका शव झाड़ियों में फेंक दिया.