Friday, March 29, 2024
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मामले कितने भी चले लालू प्रसाद यादव की स्थिती और होगी मजबूत

SI News Today

साहेब बेफिक्र हैं। बिहार में साहेब का मतलब हर कोई जानता है। साहेब यानी लालू प्रसाद यादव। राजद के सुप्रीमो। उनके खिलाफ एक नहीं चाहे जितने मामले चलें, लाख तरह की जांचें हों, इस वजह से उनकी स्थिति कमजोर नहीं होने वाली। उलटे मजबूत ही होगी। अपनों के कान में एक मंत्र फूंक दिया है उन्होंने। ऐसा मंत्र है कि उससे उन्हें सियासी फायदा ही होता रहेगा। मंत्र है- साहेब को फंसाया और सताया जा रहा है। साहेब यादव नेता हैं। पिछड़ों के नेता हैं। मुसलमानों के भी रहनुमा हैं। इसलिए विरोधी उनके खिलाफ साजिश रचते रहते हैं। सूबे में सबसे ज्यादा तादाद यादवों की ही है। वही साहेब की असली ताकत है। उनके खिलाफ जितनी ज्यादा जांच-पड़ताल होगी, यादवों में उनके प्रति उतना ही ज्यादा प्रेम जगेगा। इस हकीकत को साहेब भी बखूबी समझते हैं। एक समय था जब उनकी यादवों से दूरी बढ़ गई थी। उसी के कारण सत्ता हाथ से गई थी। फिर साहेब संभले। यादवों के सामने कान पकड़ कर गलती मानी। नतीजतन राजपाट हाथ में वापस आ गया। साहेब केंद्र सरकार और भाजपा के खिलाफ लगातार मुखर रहे हैं। दूसरी तरफ यादवों को गोलबंद भी कर रहे हैं। उनके शब्दों में रैला (रैली) की भी तैयारी हो रही है। विरोधी खासकर भाजपा के लोग सोच रहे हैं कि लालू प्रसाद पर भ्रष्टाचार से जुड़ा मामला रंग लाएगा। उनकी पार्टी और परिवार सड़क पर आ जाएंगे। पर भाजपाई मुगालता पाले बैठे हैं। लालू को साहेब कहने वाले यादव उनके विरोधियों पर भारी पड़ेंगे। ऊपर से मुसलमान अलग उनकी ताकत बढ़ा देंगे।

उत्तर प्रदेश के विधानसभा और दिल्ली के नगर निगम चुनाव के नतीजों ने तो राजस्थान के कांग्रेसियों को सदमे की हालत में पहुंचा दिया है। बेशक इस सूबे में कांग्रेस की हालत उत्तर प्रदेश से तो कहीं ज्यादा मजबूत है। इकलौता विपक्षी दल ठहरा तो भी कांग्रेसी सहमे हैं। लेकिन सूबे की भाजपा सरकार की लगातार बिगड़ती छवि उनके लिए राहत की बात है। पार्टी आलाकमान को भी लगता है कि राजस्थान में पंजाब दोहराया जा सकता है। लेकिन पहले सूबे के क्षत्रप एक तो हों। आलाकमान ने इस दिशा में अपनी तरफ से पहल भी कर दी है। शुरुआत सूबे के प्रभारी गुरुदास कामत से छुटकारा दिलाकर की गई। अविनाश पांडेय बनाए गए हैं नए प्रभारी। गुटबाजी खत्म करने का जिम्मा सौंपा है उन्हें राहुल गांधी ने। सहप्रभारी मिर्जा इरशाद बेग भी हटा दिए गए हैं। उनकी जगह चार सचिव लाए गए हैं। पांडेय ने अपने सचिवों के साथ पहली बार सूबे का दौरा किया तो पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं के कमजोर मनोबल से रूबरू हुए। अशोक गहलोत, सीपी जोशी और मोहन प्रकाश यों एक साथ शामिल हुए बैठक में। लेकिन तीनों ही राष्ट्रीय महासचिव हैं। पर सूबे में तो तीनों के समर्थक अपनी-अपनी ढपली बजा ही रहे हैं। असली जंग इस बात पर छिड़ी है कि अगले चुनाव का रहनुमा कौन होगा। असल में पार्टी की परंपरा है कि जिसकी अगुवाई में चुनाव लड़ा जाता है, बहुमत मिल जाए तो मुख्यमंत्री का ताज उसी के सिर पर रख दिया जाता है। पांडेय ने समझदारी दिखाई। पार्टी के लोगों का भ्रम दूर कर दिया। फरमाया कि चुनाव राहुल गांधी के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। सचिन पायलट के चुनाव तक सूबेदार बने रहने का एलान भी कर गए। इससे सचिन पायलट खेमे का बल्लियों उछलना स्वाभाविक ही है। अशोक गहलोत फिलहाल गुजरात के प्रभारी हैं। देखना है कि पार्टी किस तरह करेगी वसुंधरा राजे का मुकाबला। अभी तक तो यही सिलसिला चलता आया है कि एक बार कांग्रेस की सरकार तो अगली बार भाजपा की सरकार बने।

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