Friday, April 19, 2024
गोण्डामेरी कलम से

कुलभूषण एक जीत??

SI News Today

1947 में भारत के सीने पर चीरा लगाती रेडक्लिफ रेखा जिसने एक अखंड देश को धर्म के आधार पर खण्डित कर रख दिया।खण्डन के अगले ही दिन से भारत और पाकिस्तान में वैचारिक राजनीतिक और जमीनी विवाद बढ़ता ही गया।1947,65,71और 1999 में इस मतभेद ने युद्ध का व्यापक रूप भी देखा जिसमे पाकिस्तान को हमेशा मुंह की खानी पड़ी लेकिन नुकसान हमारा भी कम नही हुआ।हमको भी अपने सपूतों की आहूति देनी पड़ी।बात 1947 में पाक अधिग्रहित कश्मीर की हो या 1965 में कच्छ के रण की खून इंसानो के ही बहाये गये हैं।भारत हमेशा से कहीं न कहीं इस लापरवाह और ज़िद्दी मुल्क के साथ उलझ कर अपनी विकास गति को रोकता आया है।दो देशों के मध्य होते युद्ध से आर्थिक राजनीतिक और मानवीय क्षति का आकलन करना बहुत कठिन है।युद्ध भले ही हमेशा भारत ने जीता हो लेकिन कूटनीतिक हार भी हमेशा भारत की ही हुई है।1947 में पाकिस्तान सेना द्वारा कब्जे में लिया गया कश्मीर पाकिस्तान के ही पास है।युद्ध के दौरान संयुक्त राष्ट्र में नेहरू जी का जाना एक हार का प्रतीक ही है।और 1965 में भारत द्वारा पाकिस्तान की 322 वर्ग किलोमीटर की जमीन को 11 जनवरी 1966 को हुए ताशकंद समझौते के दौरान पाकिस्तान को वापस करना भी एक जीत नहीं कही जा सकती।इस समझौते में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने अपने आपको ठगा सा महसूस किया और कुछ ही घंटे बाद उनकी रहस्यमयी मृत्यु हो गयी।फिर यही हाल शिमला समझौते का भी हुआ।हम युद्ध मे अपने सैनिकों के बलिदान देकर जो कुछ भी पाए उसको हमारे विफल कूटनीतिकार नेताओं के द्वारा पाकिस्तान को दान दे दिया गया।भारत की युद्धनीति हमेशा से रक्षात्मक रही जिसका फायदा हमेशा पाकिस्तान उठाता रहा है।कभी हमारे किसानों को कभी व्यपारियों को पाकिस्तान भारतीय जासूस बता कर मारता आया है।अभी हम सरबजीत का गम भूले नही थे कि कुलभूषण जाधव को अपने चंगुल में पाकिस्तान ने फसा कर उनकी फांसी की सज़ा भी मुकर्रर की।सैनिको के सर काटने से लेकर हफ़ीज़ सईद को पनाह देने वाला पाकिस्तान वैश्विक मंच पर हमेशा खुद को मासूम बताता आया है।मोदी सरकार के आने से भारत मे एक लहर चली की अब पाकिस्तान खत्म,लेकिन पाकिस्तान अपने हरकतों से बाज़ आने के बजाए और नंगा नाच नाचता गया।मोदी सरकार ने नीति बनाई की पाकिस्तान को वैश्विक मंच पर अलग थलग करके उसपर कूटनीतिक वार किया जाए।लेकिन क्या इस कूटनीतिक वार से पाकिस्तान जैसे लापरवाह देश में कोई सुधार होगा? जो भी हो आज अंतराष्ट्रीय न्यायालय में कुलभूषण जाधव के फांसी पर लगे रोक को देख कर लगता है कि भारत कहीं न कहीं वैश्विक स्तर पर मजबूत हुआ है।जो कि एक शुभ संकेत भी है।युद्ध कोई भी हो उसका फैसला हमेशा राजनीति और कूटनीति से ही होता है और कूटनीतिक विफलता ही युद्ध का कारण भी बनती है।जब भारत ने कसाब को पकड़ा तो उस पर बकायदा भारतीय कानून के तहत मुकदमा चलाया गया निचली अदालत से लेकर सर्वोच्च अदालत तक मे उसको अपना पक्ष रखने का मौका दिया गया तब जाकर उसको फांसी दी गयी।जब हमारी सरकार कसाब को जेल में रख कर ट्रायल चला रही थी तब हम आक्रोशित थे कि सरकार आतंकवादियों को भी मौका देती है।लेकिन अगर हमने भी ऐसा कुछ न किया होता तो आज पाकिस्तान और हमारे बीच कोई अंतर न रह जाता।आज मिली सफलता मात्र एक छोटी सी शुरुवात भर है।आज भी ना जाने कितने सरबजीत और कुलभूषण पाकिस्तानी जेलों में गुमनामी की मौत मारे जा चुके हैं या इंतज़ार में हैं।कितने युद्ध बंदियों को पाकिस्तान ने ताशकंद और शिमला समझौते के अंतर्गत भारत को वापस किया? क्या भारत की यह अब तक हुई कूटनीतिक हार नही थी।कुलभूषण जाधव के मसले को लेकर अब जाकर हम पाकिस्तान को घेर पाए हैं अब हमको मौका गवाना नही चाहिए इसी मामले को लेकर पूर्व में पाकिस्तान द्वारा किया गया अत्याचार भी समस्त विश्वपटल पर उजागर करना चाहिए।और हम आशा करते हैं कि अभी तक जो शांति हथियार वाले युद्ध से नहीं मिली वो अब इस वैचारिक और कूटनीतिक युद्ध से मिल जाये।महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्स्टाईन ने कहा था शांति युद्ध से नहीं समझदारी से आती है।लेकिन क्या यह किसी आत्मघाती और लापरवाह देश के लिए सही है जो समझदारी की बात जानता ही ना हो।खैर भाषा जो वो चाहेगा हम उस तरीके से उसको समझा सकने में सक्षम हैं।लेकिन कूटनीतिक युद्ध मे पाकिस्तान हमसे बहुत कमजोर नज़र आया जो कि उसकी बौखलाहट को साफ देख कर लगता है, जिसका पूरा फायदा हमको उठाना चाहिए।और हम आशा करते हैं कि कुलभूषण जाधव को सकुशल उसके परिवार के बीच लाया जा सके।।

SI News Today
Pushpendra Pratap singh

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