Sunday, April 27, 2025
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लखनऊ मेट्रो का ट्रैक और कोच दोनों अत्याधुनिक! जापान की पटरी पर, फ्रांस के आधुनिक डिब्बे के साथ दौड़ेगी लखनऊ मेट्रो…

SI News Today

लखनऊ: अपने पहले चरण के सफर पर तैयार लखनऊ मेट्रो का ट्रैक और कोच दोनों अत्याधुनिक है। लखनऊ मेट्रो जापान की पटरी पर दौड़ेगी, जिसमें फ्रांस के आधुनिक डिब्बे लगे हैं।

लखनऊ मेट्रों की गति गति औसतन 35 किमी प्रति घंटे होगी। यात्रियों को इसके हर कोच के भीतर वह सभी सुविधाएं मिलेंगी जो होनी चाहिए। 60 किलोग्राम की 13 मीटर लंबी पटरी पर 42 टन का डिब्बा मिनटों में रफ्तार पकड़ सकेगा। एलएचबी (लिंक हॉफमैन बुश) तकनीक से लैस यह सभी कोच टक्कर रोधी भी हैं। जापान से मंगवाई गईं पटरियों को कोलकाता के रास्ते लखनऊ लाया गया था। प्राथमिक सेक्शन के 23 किमी. रूट पर इन्हीं पटरियों का इस्तेमाल हुआ है। करीब पचास साल से अधिक चलने वाली इन पटरियों को मेट्रो के डिपो में भी इस्तेमाल किया गया है।

मेट्रो के कोच फ्रांस की एलस्टॉम कंपनी चेन्नई के श्री सिटी शहर की फैक्ट्री में तैयार कर रही है। अब तक 24 कोच राजधानी आ चुके हैं। 80 कोच अप्रैल 2019 तक आने हैं। प्रत्येक कोच लंबे ट्रेलर के जरिये यहां लाया जा रहा है।

एक कोच में आठ दरवाजे
लखनऊ मेट्रो के प्रत्येक कोच में 327 यात्री पीक सीजन में सफर कर सकेंगे, वहीं करीब 186 यात्री बैठ सकेंगे। चार कोच में कुल 1310 यात्री सफर कर सकते हैं। प्रत्येक कोच 2.9 मीटर चौड़ा है। मेट्रो कोच की डिजाइन अधिकतम 90 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से दौडऩे के हिसाब से की गई है। मेट्रो की औसत गति 33 से 34 किमी प्रति घंटा होगी। प्रत्येक कोच में वरिष्ठ नागरिक, गर्भवती महिला, सामान्य महिला, बच्चों को वरीयता मिलेगी। हर कोच में चार-चार थ्री डी कैमरे और पूरी चार ट्रेन के कोच में 16 थ्री डी कैमरे होंगे।

प्रत्येक कोच में आठ-आठ दरवाजे और 32 स्मोक डिटेक्टर होंगे। चार कोच की मेट्रो में 48 एलइडी स्क्रीन विज्ञापन के लिए लगाई गई हैं। इसमें डिस्प्ले के जरिए तीन भाषाओं में मिलेगी अगले स्टेशन की जानकारी। प्रत्येक कोच में व्हील चेयर के लिए व्हील लॉक होगा। एक कोच में 60 हैंड ग्रिप और चार कोच में 240 हैंड ग्रिप हैं। हर कोच में 84 मोबाइल चार्जिंग प्वाइंट हैं। मेट्रो स्टेशन पर सुबह 6 से रात 10 बजे तक रेडियो सिटी के गाने को सुनने को मिलेंगे।

ट्रैक की खूबियां
मेट्रो जिस ट्रैक गेज पर दौड़ेगी वह 1435 एमएम का है। मेट्रो का पूरा ट्रैक गिट्टी रहित है। ट्रैक्शन सिस्टम यानी जिस करंट पर मेट्रो दौड़ेगी वह 25केवी एसी ओएचई का होगा। सिगनलिंग प्रणाली सबसे आधुनिक कम्युनिकेशन बेस्ड ट्रेन कंट्रोल आधारित है। स्टेशनों पर ऑटोमेटिक फेयर कलेक्शन सिस्टम होगा।

तीन भाषाओं में उद्घोषणा
लखनऊ मेट्रो में यात्रियों को तीन भाषाओं में डिस्प्ले के जरिए अगले स्टेशन की जानकारी मिलेगी। यह भाषा अंग्रेजी, हिन्दी व उर्दू में रहेगी। वहीं हिन्दी व अंग्रेजी में उद्घोषणा होगी।

मेट्रो की छत पर कैमरा
मेट्रो की छत पर व कोच के भीतर कैमरा लगा होगा। इससे मेट्रो के मूवमेंट पर नजर रखी जा सकेगी। इमरजेंसी में केबिन में स्थित दरवाजा खुल सकेगा और इमरजेंसी विंडो भी खुल सकेंगी।

कंट्रोल रूम की रहेगी निगरानी
लखनऊ मेट्रो ईथरनेट बेस माइक्रो प्रोसेसर तकनीक से लैस है। यह तकनीक किसी भी मेट्रो में इस्तेमाल नहीं हुई है। मेट्रो की प्रत्येक गतिविधि की जानकारी इसके जरिये कंट्रोल में बैठे ऑपरेटर को मिलती रहेगी।

50 डिग्री तापमान पर काम करेगा एसी
मेट्रो के कोचों को 50 डिग्री तापमान के हिसाब से डिजाइन किया गया है। बाहर तापमान अगर 50 डिग्री भी है तो कोच कूलिंग करेंगे। वातानुकूलित सिस्टम के लिए देश के पिछले 20 वर्षों के तापमान का परीक्षण किया गया है।

सिगरेट पीने पर खैर नहीं
मेट्रो के कोचों में 32 स्मोक डिटेक्टर लगाए गए हैं। अगर कोई सिगरेट पीता है तो स्मोक डिटेक्टर बजने लगेगा। इससे मौके पर ही यात्री को पकड़ा जा सकेगा।

35 साल होगी एक कोच की लाइफ
मेट्रो कोचों का रखरखाव बेहतर होता रहा तो एक कोच की लाइफ करीब 35 साल होगी। मेट्रो के चार कोच (एक ट्रेन) की कीमत 43 करोड़ है। कोच की हर चार साल में या आठ लाख किमी. चलने के बाद पीरियोडिक ओवरहालिंग (पीओएच यानी समय-समय पर मरम्मत) होगी। प्रत्येक कोच का वजन 42 टन है, ऐसे में जब पैसेंजर बैठेंगे तो उनका वजन मिलाकर कोच का भार 50 से 52 टन के बीच में होगा।

दुनिया मशीनों की
राजधानी में मेट्रो को रफ्तार देने के लिए आधुनिक मशीनों की अहम भूमिका रही है। वर्षों के काम को महीनों में करने वाली इन मशीनों के बारे में शायद ही लोग जानते हों। हर मशीन की अपनी एक खूबी और क्षमता है। कोई सैकड़ों टन वजन मिनटों में उठा लेती है तो किसी मशीन को जमीन के नीचे ही नीचे सुरंग बनाने में महारत हासिल है। यही नहीं जमीन के सत्तर फीट नीचे खंभा बनाने वाली मशीनें भी काम कर रही हैं। इन मशीनों की झलक ट्रांसपोर्ट नगर से मुंशी पुलिया के बीच बन रहे मेट्रो स्टेशन के बीच देखी जा सकती है।

गैंट्री मशीन
मेट्रो जिन यू गर्डर पर चलने जा रही है। उन्हें उठाने वाली गैंट्री भी खूब काम की है। सांचे में ढलने के बाद यू गर्डर का वजन 150 टन का हो जाता है। इसके बाद उन्हें उठाने का काम यही गैंट्री मशीन करती है। इसकी क्षमता दो सौ टन होती है। यह यू गर्डर एक स्थान से उठाकर दूसरे स्थान पर रखने के साथ ही ट्रकों पर लोड भी करवाती है।

120 फीट का ट्रक
मेट्रो अपने गर्डर को कास्टिंग यार्ड से उठाकर साइड पर ले जाने के लिए 120 फीट लंबे ट्रक का इस्तेमाल करता है। इस ट्रक को आसानी से मोड़ा जा सकता है। इसमें दो स्टीर्यंरग हैं और ट्रक के आगे व पीछे दो इंजन लगे हैं।

पाइलिंग मशीन
मेट्रो के 23 किलोमीटर रूट पर पाइलिंग मशीन का सबसे बड़ा योगदान है। वर्तमान में हर उस
स्टेशन पर यह मशीन काम कर रही है, जहां पाइलिंग (खोदाई) का काम चल रहा है। इस मशीन में लोहे की मोटी रॉड लगी होती है, जो जमीन के भीतर मजबूत खंभा खड़ा करने का काम करती है।

क्रेन मशीन
मेट्रो के काम में क्रेन मशीनों की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। मेट्रो ने जरूरत के हिसाब से हर स्टेशन पर क्रेन लगा रखी हैं। चार सौ टन वाली क्रेन गर्डर उठाने का काम बेहतर तरीके से कर रही है।

टीबीएम
टनल र्बोंरग मशीन। अस्सी मीटर लंबी इस मशीन को चलाने के लिए चार ऑपरेटर चाहिए। नार्थ-साउथ कॉरिडोर में तीन भूमिगत स्टेशन बनाने में इसका उपयोग किया जा रहा है। यह मशीन एक दिन में 14 मीटर सुरंग बनाने की क्षमता रखती है।

ऑक्सीजन/वेंटीलेशन पाइप
सुरंग के भीतर काम करने वाले कर्मियों को ऑक्सीजन पहुंचाने का काम इसी के जरिए होता है। सुरंग के भीतर 20.9 फीसद ऑक्सीजन यही पाइप मेंटेन रखता है। कार्य के दौरान करीब सौ मीटर लंबे इस पाइप का महत्वपूर्ण योगदान है।

लोकोमोटिव
सुरंग की खोदाई में निकलने वाली मिट्टी निकालने का काम लोकोमोटिव करता है। इसके पीछे चार बड़े बॉक्स होते हैं, जिनमें मिट्टी भरती है। इसके बाद लोकोमोटिव बॉक्स को सुरंग से निकालता है जहां से क्रेन बॉक्सों को उठा लेती है।

इंस्ट्रूमेंटेशन एंड मॉनीर्टंरग
इस उपकरण के जरिए सुरंग के भीतर चल रही हर गतिविधि पर नजर रखी जा सकती है। स्क्रीन के सामने बैठा कर्मी हर दिन का डाटा मैच करता है। इसी की रिपोर्ट पर आगे के कार्य की रणनीति बनती है।

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