लखनऊ: पर्वतीय इलाकों में बर्फबारी के असर मैदानी से क्षेत्रों में कड़ांके की ठंड है। उत्तर प्रदेश में तो शीतलहर चरम पर है। फिलहाल कुछ दिन ठंड से निजात मिलने वाली भी नहीं है। ऐसे में लोक कहावतों में वर्णित ठंड की याद और अधिक कंपा देती है। सर्दी को नजदीक से महसूस करने वालों में क्षेत्रीय भाषा के कवि रमई काका का नाम भी कहीं पीछे नहीं है। हाड़कंपाउ ठंड को किसी ने बिल्कुल सटीक शब्दों में उतारा है।-लरिकन ते हम बोलित नाहीं ज्वान लगैं सग भाई। बुढवन का हम छोडि़त नाहीं चाहे औढै सात रजाई।- इन दिनों शर्दी के चलते आम चन जीवन प्रभावित है। शाम होते ही शहर और गांव कोहरे की चादर से ढके नजर आते है। दूसरे दिन दोपहर तक सूरज के दर्शन मिलना मुश्किल हो जाता है।
सुबह रजाई से निकलने की हिम्मत नहीं पड़ती है। रोंगटे खड़े कर देने वाली शीत से मुकाबले के लिए कोई खुद को सक्षम नहीं पा रहा है। रमई काका की कविता में कहे तो -निकसन खन भ्वार रजाई ते कटि परत द्याहं पर पाला अस। बउखा लागति है तीरु आइसि औ रौवांवा एकदम भाला अस।-काफी सटीक बैठती है। सर्दी में रोज स्नान करना भी अच्छी खासी लड़ाई जीतने जैसा है। कुछ लोग तो स्नान से कतरा जाते है तो कुछ कंकड़ी स्नान जैसे फार्मूले अपना कर अपने को संतुष्ट कर रहे हैं। कुछ मंत्रोच्चार कर अपने ऊफर गंगा जल छिड़ककर खुद को पवित्र करने में लगे हैं। कुछ तो इन सबसे निराले मन चंगा तो कठौती मा गंगा कहकर स्नान की जरूरत से ही दूर निकल लेते हैं। रमई काका ने एक बहू का सास के प्रति डर और सुबह नहाने की अनिवार्यता को कविता में कुछ इस तरह देखा-बहुरेवा सासु का डेरु कइके बसि जोर जोर सिसियाइ देहेसि बसि आड़ मा धोती बदलि लेहेसि औ भुँइ मा पानी नाइ देहेसि।। यही हाल हमेशा स्नान के बाद ही ध्यान, पूजन और भोजन आदि करने वालों का है।-जाड़े मा तड़के का नहाउब अब भूलि गई भगति चाची बसि दुइ लोटिया पानी डारैं घर मां घूमैे नची नाची।-वैसे हाल के वर्षों में सर्दी ने 1962 और 2002 में सारे रिकार्ड तोड़ दिए थे लेकिन इस साल हो रही सर्दी भी कुछ कम नहीं है।
वास्तव में सर्दी के लिए लरिकन ते हम बोलित नाहीं कहावत काफी सटीक दिखाई देती है। बच्चों को खेल के आगे सब कुछ पीछे रह जाता है। एक कहावत-कत्थर-गुद्दर ओढ़े मरजादा बैठे रोवाएं-अलग अलग लोगों के लिए सर्दी का मिजाज भी अलग अलग होने की बात कहती है। कुछ लोग जो मिला उसे पहनकर खुश रहते हैं लेकिन कुछ बेहतर परिधानों की उम्मीद में ठिठुरते रहते हैं। वैसे किसी हद तक यह ठीक ही है तभी तो एक कहावत-संगति कुसंगति अक्यालय भला बस्तर कुबस्तर उघारै भला-ऐसे लोगों का समर्थन करती है।
ठंड से हर कोई परेशान है। आज दिन भर शीत लहर चलती रही और सूर्यदेव के दर्शन नहीं हो सके। दिन के समय धुंध भी छाई रही। ठंड से बचने के लिए लोग जगह-जगह अलाव तापते नजर आए। पूरे प्रदेश में प्रमुख बाजारों में लोगों ने अलाव के सहारे दिन बिताया तो सरकारी कार्यालयों में कर्मचारी व अधिकारी हीटर ब्लोअर के सहारे ठंड से बचाव करते दिखे। फैजाबाद नरेंद्रदेव कृषि विश्वविद्यालय के मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार अभी ठंड से निजात नहीं मिलेगी। वैज्ञानिकों के मुताबिक पर्वतीय इलाकों में बर्फबारी का सिलसिला जारी है। इसी का असर मैदानी क्षेत्रों में पड़ा है। उस ओर से आ रही हवा वातावरण में गलन व ठिठुरन घोल दे रही है।