Friday, April 19, 2024
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अपनी गलतियों पर पर्दा डालने में भी महारथ हासिल है लोक निर्माण विभाग को

SI News Today

लखनऊ : भ्रष्टाचार के आकंठ में डूबे लोक निर्माण विभाग के उच्चाधिकारी जब अपनी गर्दन पर तलवार लटकती है तो अपने आप को बचाये जाने के लिए कैसे अपनी गलतियों पर पर्दा ढकते हैं. इसका जीता जगता नमूना ये है कि वर्ष 1978 -1979 से 1983 – 1984 के मध्य जिन तदर्थ सहायक अभियंताओं का विनियमितीकरण किये जाने के सुप्रीम कोर्ट ने आदेश जारी किये थे,उनमें से 42 अभियंताओं को जिन्हें हाईकोर्ट के आदेश पर मूल पद, तदर्थ नियुक्त किया. जबकि इनको ऊपर हाईकोर्ट का आदेश लागु नहीं होता था. जिसके चलते 42 अधिसंख्य पद सृजित किये गए.

शासनादेश संख्या 4111 / 23 -4 -2008 -3 AE / 98 दिनांक 12 दिसंबर 2008 में दस साल की सेवा मानते हुए प्रत्येक सहायक अभियंता के सामने तिथिवार पद सृजन की तिथि विनियमितीकरण के लिए दी गयी.बताया जाता है कि इसको लागु करवाने के लिए अभियंता बार – बार प्रयास करते रहे, लेकिन चार सालों तक शासन के कानों में जूं तक नहीं रेंगी. नतीजतन विवश होकर अभियंताओं ने इस आदेश को लागु करवाने के लिए अदालत की शरण ली. अदालत ने विभिन्न याचिकाओं में शासनादेश दिनांक 12 दिसंबर 2008 को छह माह के भीतर इस आदेश का अनुपालन करने के निर्देश शासन को दिए. बावजूद इसके शासन ने अदालत के इस आदेश का पालन नहीं किया.

इसके चलते अभियंताओं ने अदालत में जाकर अवमानना की याचिका दायर की. इस याचिका के खगिलाफ भी शासन ने सुप्रीम कोर्ट में जाकर गलत तथ्यों के आधार पर एसएलपी दाखिल कर दी. इस एसएलपी पर सुप्रीम कोर्ट ने शासन को ये निर्देश दिए कि शासन नियमावली 1988 के तहत या 10 नवंबर 1994 से विनियमितीकरण किये जाने के निर्देश दिए. साथ ही आदेश में ये भी कहा कि आपको स्पष्ट कारन बताना पड़ेगा. ये इसलिए हुआ कि शासन ने सुप्रीम कोर्ट को इस बात से अवगत नहीं कराया कि आप के आदेश से शासन दस साल की सेवा मानते हुए पहले ही इनका विनियमितीकरण किया जा चुका है.

इसके बाद शासन ने दिनांक 31 दिसंबर 2013 को 50 अभियंताओं का विनियमितीकरण 10 नवंबर 1994 से कर दिया. जिसको अभियंताओं ने आज तक नहीं माना है क्योंकि शासनादेश 12 दिसंबर 2008 का अनुपालन हाईकोर्ट के आदेश का नहीं किया गया. इसलिए आज तक अवमानना हाईकोर्ट में लंम्बित हैं. बताया जाता है कि उमेश प्रताप सिंह की अवर अभियंता पद पर नियुक्ति 15 -1 – 1973 थी. जबकि शासन ने इन्हें तदर्थ सहायक अभियंता किया. इनको मूल पद पर वापस भेजा जाना था. शासनादेश में भी इनकी पद सृजन की तिथि 15 -1 – 1983 होनी चाहिए थी, जबकि दिखाया 6 -6 – 1981 है, जो भी भ्रष्टाचार का एक ताजातरीन नमूना है.

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