निर्देशक चक्री तोलेटी इसके पहले साउथ में कुछ बड़ी फिल्मों का निर्देशन कर चुके हैं और ‘वेलकम टू न्यूयार्क’ से वो बालीवुड में अपना पदार्पण कर रहे हैं. कहना पड़ेगा कि बॉलीवुड की चमक दमक ने उनको वाकई में धोखा दे दिया है. उनकी पहली कोशिश बेहद ही सतही है बॉलीवुड का मजाक उड़ाने के मामले में जो फिल्म का थीम भी है. भले ही मजाक उड़ाने की इस कोशिश में बॉलीवुड के कुछ बड़े सितारों ने उनका साथ दिया है लेकिन इस लचर फिल्म में उनकी कोशिश धरी की धरी रह जाती है. फिल्म देखकर साफ पता चलता है कि चक्री ने अपनी पहली फिल्म के लिए हॉलीवुड के मशहूर निर्देशक रॉबर्ट अल्टमैन की एक पुरानी फिल्म को अपने इस फिल्म का बेस बनाया है.
फिल्म की कहानी में कोई जान नहीं है
फिल्म की कहानी बालीवुड के अवॉर्ड समारोह आईफा के परिप्रेक्ष्य में होती है. जब आईफा की एक कर्मचारी सोफी (लारा दत्ता) को उनके अपने काम को लेकर उसके बॉस (बोमन ईरानी) से क्रेडिट नहीं मिलता है तब वो एक साजिश रचती है. सोफी एक टैलेंट हंट का आयोजन करती है और उसमें दो ऐसे विजेता को चुनती है जो सितारों के साथ रेड कारपेट पर कदम से कदम मिलाने के साथ-साथ पूरे समारोह को बर्बाद करने में कोई कसर भी नहीं छोड़ेंगे. पंजाब से तेजी (दिलजीत दोसांझ) और गुजरात से जीनल (सोनाक्षी सिन्हा) का चुनाव होता है. उनके आने के बाद समारोह में कई आफतों का सिलसिला एक के बाद एक शुरू होता है जिसमें बीच में हमारी मुलाकात कई बालीवुड के सितारों से होती है जिनका फिल्म में स्पेशल अपीयरेंस है. फिल्म कॉमेडी है तो जाहिर सी बात है सभी से हंसी निकलवाने की कोशिश की गई है लेकिन हंसाने की यही कोशिश धरी की धरी रह जाती है. इस पूरे फिल्म में बॉलीवुड अपनी ही कारगुजारियों पर हंसता है लेकिन ये सब कुछ बेहद ही सतही लगता है.
इस फिल्म में करण जौहर, रितेश देशमुख, राना दग्गुबती, सुशांत सिंह राजपूत और सलमान खान जैसे सरीखे कलाकारों का स्पेशल अपीयेरेंस है और इन सभी ने उन सारी चीजों का मजाक बनाने की कोशिश की है जिसके लिए वो जाने जाते हैं. एक हद के बाद आप खुद को बोलते हैं कि मैं क्या देख रहा हूं. लेकिन सब कुछ बुरा नहीं है फिल्म के साथ. जब करण जौहर ‘कुछ कुछ होता है’ और ‘कभी खुशी कभी गम’ बनाने वाले को जान से मारने की इच्छा व्यक्त करते हैं तब बरबस हंसी निकल ही जाती है. करण और रितेश की नोंक-झोंक को देखने में मजा आता है. अवॉर्ड समारोह के बीच में दिलजीत दोसांझ और सोनाक्षी सिन्हा की कारगुजारियां चलती रहती है.
कलाकारों का अभिनय बेहद साधारण है
अभिनय के मामले में ये कहना सही रहेगा कि जो फिल्म के मुख्य कलाकार हैं उनसे ज्यादा बॉलीवुड के सितारों को देखने में मजा आता है. और मजा इसलिए आता है क्योंकि वो फिल्म में खुद के ही रूप में नजर आते हैं. सोनाक्षी और दिलजीत के बीच की केमिस्ट्री में किसी भी तरह की कोई जान नहीं है. अगर जोड़-तोड़ कर फिल्म बनाने का निर्माता का मकसद था तो वो अपनी कोशिश में कामयाब हुए हैं कि चलो एक फिल्म तो बन गई लेकिन इसके अलावा वो एक सभ्य फिल्म के मानदंडों पर कहीं भी खरे नहीं उतर पाए हैं.
फिल्म देखना समय की बर्बादी होगी
इस फिल्म को बनाने में जाहिर सी बात है कि आईफा ऑर्गनाइजर्स की टीम शामिल है लिहाजा ब्रांड को हर जगह दिखाने में कोई भी कमी नहीं बरती गई है. जो चीजें हम ‘वेलकम टू न्यूयार्क’ में देखते हैं वो कुछ नया नहीं है. जब भी कोई सितारा कपिल शर्मा के शो या फिर किसी अन्य टीवी शो में अपनी फिल्म को प्रमोट करने जाता है, कुछ वैसा ही करता है. चक्री की ये फिल्म हंसी की कई गैग्स को जोड़कर बनाया गया है जो अंत में एक फिल्म नजर नहीं आती है. अगर फिल्म इंडस्ट्री के लोग खुद पर हंसकर लोग को सिनेमा हॉल खींचना चाहते हैं तो हमें इस बात को कतई नहीं भूलना चाहिए कि इसके पीछे उनकी भी साजिश शामिल है और वो मकसद है पैसे बटोरने का. अफ़सोस इसी बात का है कि लोग उनके चाल में नहीं फसेंगे. ‘वेलकम टू न्यूयार्क’ एक चालू फिल्म है जहां पर वेन्यू से लेकर सितारे सभी कुछ बड़ी आसानी से मिल गए थे. शायद इसके पीछे की अहमियत को फिल्म बनाने वाले भूल गए थे.