पिछले दो महीनों में पूरा देश डोकलाम नाम से परिचित हो चुका है। सिक्किम के निकट स्थित डोकलाम में भारत, भूटान और चीन की सीमाएं मिलती हैं। डोकलाम को लेकर चीन और भूटान के बीच विवाद है। भारत डोकलाम को भूटान का इलाका मानता है। चीन ने जब इस इलाके में भारी सैन्य वाहनों की आवाजाही लायक सड़क बनानी शुरू कर दी तो भारत ने इसका विरोध किया। 16 जून को भारतीय सैनिकों ने डोकलाम में सड़क बना रहे चीनी सैनिकों को रोक दिया। भारत के अनुसार डोकलाम में सड़क बनाने से इस इलाके में यथास्थिति बदल जाएगी और इसका भारत की सुरक्षा पर प्रतिकूल असर पड़ेगा।
जून मध्य से ही दोनों देशों के बीच इसे लेकर गतिरोध बना हुआ था। चीन की तरफ से कई बार परोक्ष रूप से युद्ध तक की धमकी दी गयी लेकिन भारत अपने रुख से नहीं डिगा। आखिरकार, सोमवार (28 अगस्त) को भारतीय विदेश मंत्रालय ने साफ किया कि दोनों देशों ने शांतिपूर्व मौजूदा गतिरोध सुलझा लिया है और डोकलाम में यथास्थिति बरकरार रहेगी। इसे भारत की बड़ी कूटनीतिक जीत बताया जा रहा है। आइए हम आपको बताते हैं कि पीएम नरेंद्र मोदी के किन पांच अफसरों ने इस जीत में बड़ी भूमिका निभायी है।
1- अजीत डोभाल, भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार- भारत और चीन के बीच करीब दो महीने से जारी गतिरोध में बड़ा मोड़ तब आया जब भारतीय एनएसए अजीत डोभाल ब्रिक्स देशों (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक में शामिल होने के लिए जुलाई के आखिरी हफ्ते में चीन गए थे। टाइम्स ऑफ इंडिया अखबार की रिपोर्ट के अनुसार जब डोभाल चीन के एनएसए यांग जिएची से 27 जुलाई को बीजिंग में मिले तो यांग ने उनसे पूछा, “क्या ये आपका इलाका है?” इस पर डोभाल ने कहा, “क्या हर विवादित इलाका अपने आप चीन का हो जाता है?” खबर के अनुसार डोभाल ने चीन को साफ कह दिया कि भारत डोकलाम को भूटान का हिस्सा मानता है और उसने लिखित संधि में भूटान को सुरक्षा में मदद का वादा किया है। डोभाल ने साफ कहा कि डोकलाम चीन और भूटान के बीच विवादित इलाका है और जब तक दोनों देशों के बीच इस पर कोई अंतिम समझौता नहीं हो जाता इस इलाके की यथास्थिति नहीं बदल सकती।
2- जनरल बिपिन रावत, भारतीय थल सेना प्रमुख- डोकलाम विवाद के दौरान दोनों देशों के सैनिक वास्तविक नियंत्रण रेखा (पीएलए) पर कम से कम चार-पांच जगहों पर आमने-सामने डटे हुए थे। भारत के लिए ये महत्वपूर्ण था कि चीनी सैनिक अवांछित इलाके में घुसपैठ न करने पाएं। चीन ने इस दौरान बार-बार भड़काऊ बयान भी दिए। लेकिन भारतीय सेना को संयम बरकरार रखते हुए अपना मोर्चा कायम रखना था। पीएलए पर एक भी गोली चल जाने पर मामला बिगड़ सकता था। इस चुनौती को जनरल बिपिन रावत के नेतृत्व में भारतीय सेना ने बखूबी निभाया। जनरल रावत ने सुनिश्चित किया कि जब दोनों देशों के बीच कूटनीतिक बात हो तो सीमा पर भारत की मौजूद स्थिति से देश अपनी बात ठोस तरीके से रख सके
3- लेफ्टिनेंट जनरल अनिल भट्ट, मिलिट्री ऑपरेशंस के डायरेक्टर जनरल- भारत और चीन के बीच सीमा पर दिन-प्रति-दिन की निगरानी और देश के हुक्मरानों को वस्तुस्थिति जानकारी देते रहने का काम लेफ्टिनेंट जनरल अनिल भट्ट का है। जमीनी हालात की पल-पल की खबर रखने के साथ ही 3488 किलोमीटर लम्बे भारत-चीन सीमा की रखवाली का जिम्मा उनके सिर ही था। जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद पर रोकथाम के मिशन का सफलतापूर्वक नेतृत्व कर चुके लेफ्टिनेंट जनरल भट्ट ने डोकलाम विवाद के दौरान भी उल्लेखनीय नेतृत्व किया।
4- एस जयशंकर, भारत के विदेश सचिव- एस जयशंकर देश के सर्वाधिक अहम राजनयिकों में एक माने जाते हैं। वो अमेरिका और चीन में भारत के राजदूत रह चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें साल 2015 में भारत का विदेश सचिव नियुक्त किया था। डोकलाम विवाद में जयशंकर का चीन से जुड़ा अनुभव काफी काम आया। जयशंकर चीन के तौर-तरीकों से भलीभांति वाकिफ माने जाते हैं। तमाम भड़काऊ बयानबाजियों के बीच उन्होंने चीन और भूटान दोनों देशों के राजनयिकों से संपर्क बनाए रखा। एक तरफ उन्होंने चीन को समझाने के लिए “संयम” का इस्तेमाल किया तो भूटान को भारत के साथ बनाए रखने के लिए “सहानुभूति” का
5- विजय केशव गोखले, चीन में भारत के राजदूत– मीडिया रिपोर्ट के अनुसार चीन में भारत के राजदूत विजय केशव गोयल ने डोकलाम विवाद में अहम भूमिका निभायी है। 1981 बैच के आईएफएस गोखले ने चीनी राजनयिकों के सामने भारत का पक्ष स्पष्ट करते रहे।