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इमोशन कम, कनफ्यूजन ज्यादा है ‘मिर्जा जूलियट’ में

निर्माताः शेमारू/ग्रीन ऐपल मीडिया

निर्देशकः राजेश राम सिंह

सितारेः दर्शन कुमार, पिया बाजपेयी, प्रियांशु चटर्जी, स्वानंद किरकिरे, चंदन रॉय सान्याल
रेटिंग**

मिर्जा जूलियट में दो महान प्रेम कहानियों की छाया है। मिर्जा-साहिबा और रोमियो-जूलियट। मिर्जा-जूलियट इन कहानियों का बॉलीवुड रीमिक्स है। अतः नएपन की उम्मीद बेकार है। जेल से छूटे अपराधी से हीरोइन का प्यार, तकरार और अंत में त्रासदी। फिल्म को उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर का परिवेश दिया गया है। जिसमें कहानी पनपती-बढ़ती है। खत्म होती है नेपाल जाकर।

इलाहाबाद में जेल की सजा काट रहे मिर्जा (दर्शन कुमार) के हाथों पुलिस अधिकारी एक राजनेता की हत्या कराता है। रिहाई के बाद मिर्जा जब मिर्जापुर लौटता है तो मुलाकात बचपन की दोस्त जूली (पिया) से होती है। जूली की शादी मिर्जा के हाथों मारे गए नेता के भतीजे (चंदन रॉय सान्याल) से तय हो चुकी है।

जूली के तीन भाई मिर्जापुर को अपनी पिस्तौलों की नोंक पर रखते हैं। जूली भाइयों के प्यार में बिगड़ी बहन है और लोगों को गालियां देने से लेकर चप्पल चलाने के काम करती है। मिर्जा से वह सेक्स की बातें करती हैं और वह सकपका जाता है। इस कहानी में इमोशन कम, कनफ्यूजन ज्यादा है।

ऐसे में मिर्जा-जूली का प्यार किस अंजाम तक जा सकता है?

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फिल्म में ऐसा कोई पल नहीं आता जो बांध सके। प्रियांशु बड़े दबंग भाई की भूमिका में और चंदन हमेशा सेक्स के लिए लालायित नेता के बेटे के रोल में जमे हैं। लेकिन स्क्रिप्ट में उनके लिए ठोक कुछ नहीं।

मैरी कॉम और एनएच10 जैसी फिल्मों से मजबूत उपस्थिति दर्ज कराने वाले दर्शन कुमार की बॉलीवुड हीरो के अंदाज में पहली फिल्म है। कुछ दृश्यों में वह जमे हैं लेकिन फिलहाल पूरी फिल्म अपने दम पर खींचने वाली बात उनमें नहीं है।

पिया बाजपेयी के संवाद कुछ पल को चौंकाते और फिर हवा हो जाते हैं। ऐसा ही उनकी मौजूदगी के साथ होता है। गीत-संगीत में दम नहीं है।

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