featuredमेरी कलम से

।। THE DEATH BEHIND “Nuclear success”||

पुष्पेंद्र प्रताप सिंह- 1965 भारत पाकिस्तान युद्ध के बाद से भारतीय खुफिया एजेंसी इंटेलिजेंस ब्यूरो ने पाकिस्तान को परमाणु शक्ति की तरफ अग्रसर होने का संकेत दिया। सोवियत संघ रूस की खुफिया एजेंसी के.जी.बी के तरफ से भी यह अंदेशा आया कि पाकिस्तान को उसके हिमायती अमेरिका द्वारा मजबूत बनाना और एशिया में अपने मजबूत हथियार के रूप में इस्तेमाल करने का इरादा है। और पाकिस्तान जो कि 1965 तक एक टाइगर इकॉनमी कहलाने वाला देश था जिसके लिए ये काम अमेरिका के सरपरस्ती में कोई मुश्किल भी नहीं था। और एशिया में पाकिस्तान का हिमायती चीन भी 16 अक्टूबर 1964 को परमाणु हथियार का सफल प्रयोग कर चुका था। 1962 का जख्म और 1965 के दंश के बाद से भारत अपने आर्थिक हालात के बुरे दौर से गुज़र रहा था। आज़ादी के बाद से समस्त विश्व को यह अंदेशा हो गया था कि भारत आने वाले समय मे विश्व की एक उभरती अर्थव्यवस्था और मजबूत शक्ति के रूप में सामने आएगा। भारत को सोवियत संघ द्वारा बार बार सतर्क किये जाने पर भारत ने भी परमाणु शक्ति प्राप्त करने का निश्चय किया। और इसकी कमान सौंपी गई महान भारतीय भौतिक शास्त्री व परमाणु वैज्ञानिक होमी जहांगीर भाभा को। भारतीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री द्वारा खुले तौर पर पहली बार यह कहा गया की अब हमको अपनी सुरक्षा का जिम्मा खुद उठाना पड़ेगा और हमको भी परमाणु सम्पन्न होना पड़ेगा। और सुनने में तो यह भी आता है कि लाल बहादुर शास्त्री ने जल्द से जल्द ही परमाणु परिक्षण करने की भी ठानी जिससे अमेरिका को काफी चिंता भी हुई। और ताशकंद समझौते के दौरान ताशकंद (उज़्बेकिस्तान) में भारतीय प्रधानमंत्री की रहस्यमयी मृत्यु हो गयी। भारत को झकझोर देने वाली इस दुर्घटना का आज तक कुछ भी पता नही चल पाया और इस रहस्यमई मृत्यु को एक साधारण मृत्यु बता कर इस मामले की जांच राज्य पुलिस से करवाई गई। एक चैनल द्वारा हाल ही में यह भी बताया गया कि अमरीकी खूफिया एजेंसी C.I.A के पूर्व जासूस रोबर्ट.टी.क्राउली ने डेविड वइसे की किताब Molehunt में यह खुलासा किया था कि C.I.A 1965 में लाल बहादुर शास्त्री द्वारा पाकिस्तान के ऊपर अपनायी गयी आक्रमक युद्ध नीति को देख कर काफी असहज था। उसको एशिया में अपनी पकड़ खो देने का डर सताने लगा और उसके पास लाल बहादुर शास्त्री को खत्म करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा था। लाल बहादुर शास्त्री जी की मृत्यु आज भी एक रहस्य है। और जिन्होंने इस रहस्य को खोलने का प्रयास किया उनकी भी हत्या होती गयी। चाहे वह शास्त्री जी के डॉक्टर आर.एन. चुग जिनकी मौत जांच कमेटी के सामने पहुंचने से कुछ दूर पहले सड़क हादसे में हुई या फिर शास्त्री जी का करीबी नौकर रामनाथ जिसने शास्त्री जी के पत्नी को किसी रहस्य के बारे में बताना चाहा और उनके साथ भी दुर्घटना हो गयी। गौर करने वाली बात यह है कि भारत के प्रधानमंत्री की मृत्यु दूसरे देश में रहस्यमयी तरीके से हुई और फिर भी उनका भारत में पोस्टमार्टम तक नही किया गया। लाल बहादुर शास्त्री के मृत्यु के बाद भी भारतीय परमाणु कार्यक्रम को भाभा ने पहले की तरह ही जारी रखा और उस समय की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी इसमें कोई विघ्न न डालते हुए इस कार्यक्रम का पुरजोर समर्थन भी किया बल्कि पूरे विश्व को यह संदेश दिया कि भारत एक परमाणु सम्पन्न राष्ट्र की श्रेणी में जल्द ही खुद को स्थापित भी करेगा। C.I.A के पूर्व जासूस रोबर्ट.टी.क्राउली के अनुसार अमेरिका किसी भी तरह इस परमाणु कार्यक्रम को रोकना चाहता था। और उसी बीच भारत में परमाणु कार्यक्रम के जनक माने जाने वाले महान भारतीय वैज्ञानिक होमी जहांगीर भाभा की 24 जनवरी 1966 को हवाई जहाज दुर्घटना में मृत्यु हो जाती है। उनके मौत से सारा विज्ञान जगत व भारत का परमाणु भविष्य धूमिल होता दिखने लगा। भाभा एयर इंडिया 101 से एक परमाणु संबंधित कार्यक्रम में हिस्सा लेने जेनेवा जा रहे थे। रास्ते में माउंट ब्लेंक के पास उनका हवाई जहाज दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है। जिसमे भाभा सहित 110 यात्री मारे जाते हैं। खास बात तो यह भारतीय सरकार ने उस घटना की कोई भी जांच नहीं करवाई और ना ही जांच की मांग की। फिर भी कुछ बाहरी एजेंसी के जांचकर्ता डेनियल रॉस और ए.बी.एंथ्यूशिया ने जांच करके बताया कि हवाई जहाज पर्वत चोटी से टकराने से पहले ही हवा में दुर्घटनाग्रस्त हो गया। बल्कि दुर्घटना से 6 मिनट पहले पायलट ने हवाई जहाज की दुरुस्तीकरण की रिपोर्ट ए. टी.सी को दी थी। C.I.A के पूर्व जासूस रोबर्ट.टी.क्राउली की मानें तो भाभा की मौत कोई दुर्घटना नहीं बल्कि एक हत्या थी और उसके लिए अमेरिकी खुफिया एजेंसी C.I.A पूरी तरह से जिम्मेदार है। और यह सिलसिला वहीं नहीं रुका 13 जून 2009 में कैगा परमाणु ऊर्जा केंद्र के 47 वर्षीय वैज्ञानिक लोकनाथम महालिंगम की अपहरण करके हत्या कर दी जाती है। उनके परिवार का कहना था कि महालिंगम पांच दिन से गायब थे। वह सुबह की सैर पर निकले और कभी लौट कर नहीं आये उनकी लाश काली नदी में पाई जाती गयी।महालिंगम के पास परमाणु कार्यक्रम से जुड़ी बहुत खास और गुप्त सूचनाएं भी थी।उनकी मौत आज तक एक रहस्य बन कर रह गयी है। इसी तरह 23 फरवरी 2010 भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के इंजीनियर रहस्यमयी हालात में अपने घर में मृत पाए जातें हैं।पोस्टमार्टम रिपोर्ट में शरीर में बाहर से एक खरोच भी नहीं थी बल्कि शरीर के आंतरिक हिस्से पूरी तरह जख्म से भरे थे। फॉरेंसिक टीम को पूरे घर में किसी भी प्रकार का कोई भी उंगलियों के निशान या सबूत नहीं मिले। पुलिस ने अपर्याप्त सबूत होने के कारण मामले को बंद कर दिया। जानकारों के अनुसार इस तरह की हत्या किसी एजेंसी द्वारा करवाई जाती रही है, यह हत्या ठीक उसी प्रकार की गई जिस प्रकार ईरान में परमाणु कार्यक्रम से जुड़े वैज्ञानिकों की हुई थी। इसी श्रेणी में के.के.जोशी और अभिष शिवम भी आतें हैं यह दोनों भारत की पहली स्वदेशी परमाणु पनडुब्बी के प्रोजेक्ट में इंजीनियर थे। इन दोनों की लाशें अक्टुबर 2013 में विशाखापत्तनम में रेलवे पटरी के किनारे पाई गईं। पुलिस ने इसको एक दुर्घटना बता कर इस मामले को दबा दिया अगर देखा जाए तो दोनों के शरीर पर कहीं भी चोट के निशान नहीं थे। इसी प्रकार उमंग सिंह और पार्था प्रतिम बेग की मौत 30 दिसंबर 2009 को भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र में रहस्यमयी आग से जल जाने के कारण हुई। रहस्य की बात यह है कि जहां दोनो जले पाए गए वहां आग लगने का कोई संकेत नहीं था। इसी तरह यह सिलसिला अभी भी चलता चला आ रहा है।उमा राव, मोहम्मद मुस्तफा, तितुस पाल,दलिया नायक,अवदेश चंद्रा,आशुतोष शर्मा और सौमिक चतुर्वेदी,अक्षय .पी चह्वाण,सुभाष सोनावणे और कई परमाणु वैज्ञानिक रहस्यमयी तरीके से मृत पाए गए हैं। RTI कार्यकर्ता चेतन कोठारी ने RTI से पता किया कि 1995 से अब तक 197 परमाणु वैज्ञानिकों की रहस्यमयी मृत्यु हुई है।इनमे ज्यादातर भाभा परमाणु अनुसंधान से जुड़े थे। और उनमें सभी 25 से 50 की उम्र के वैज्ञानिक थे। मरने वालों में देश के 2-3 उच्च कोटि के वैज्ञानिक थे जो संरक्षण मंत्रालय से जुड़े हुए थे। अगर हिसाब लगाया जाए तो वैज्ञानिकों की मृत्यु का सीधा असर देश के सुरक्षा कार्यक्रमों को प्रभावित करता है। इस बात पर पुख्ता तरीके से नहीं कहा जा सकता कि इनमें सबकी हत्या ही हुई है। कुछ के मरने के निजी कारण भी हो सकते हैं। भारत में परमाणु ऊर्जा विभाग (D.A.E- Department of atomic Energy) से करीब 65 हज़ार कर्मचारी जुड़े हैं,जिनमें कईओं की मौत आत्महत्या और भी कई निजी कारणों से हुई मानी जाती है।लेकिन सबकी मृत्यु रहस्यमयी हालात में ही हुई है। और तो और पुलिस भी आज तक एक भी वैज्ञानिक की मौत का रहस्य नहीं सुलझा पाई है। कईओं के तो मामलों को तो बिना जांच के बंद कर दिया गया है। इनकी मौत से हमको नुकसान तो कईओं को फायदा भी पहुंचता है। आज भी भारत सरकार इन रहस्यों को उजागर नहीं कर पाई। और तो और “CIA Eyes Of South East Asia” के लेखक अनुज धर ने 2009 में RTI के माध्यम से भारतीय प्रधानमंत्री शास्त्री जी की मौत की जानकारी मांगी तो प्रधान मंत्री कार्यालय की ओर से कहा गया कि यह संवेदनशील मुद्दा है इससे विदेश नीतियों पर फर्क पड़ सकता है। विदेश नीतियों को मजबूत बनाने के लिए हमको अपने प्रधानमंत्री सहित भारतीय परमाणु कार्यक्रम के जनक होमी जहांगीर भाभा और 197 वैज्ञानिकों की मृत्यु को नज़रअंदाज़ कर देना पड़ेगा यह नीति हमारी सरकार की है। देश की सुरक्षा को मजबूत करने वाले इन रत्नों की जान की कीमत कितनी है यह अंदाजा आपके हमारे द्वारा लगाया जा सकता है। इनकी मौत का कारण चाहे C.I.A हो या I.S.I लेकिन कुछ दोषी हमारी सरकार और हमारी नीतियां भी हैं।ना जाने वो कौन सी शक्तियां हैं जो भारतीय परमाणु कार्यक्रम को हमेशा से अपंग बनाने की कोशिश करतीे चली आयी हैं। वैज्ञानिकों की सुरक्षा की बात को लेकर खुद स्वर्गीय मिसाइल मैन व पूर्व राष्ट्रपति ए. पी.जे.अब्दुल कलाम ने भी चिंता जताई थी। उन्होंने यह कहा कि भारत सरकार को उनको भारतीय सेना के साथ पोखरण में गुप्त तरीके से रखना पड़ा था। आज विश्व पटल पर भारत का कद बढ़ा माना जाता है तो क्यों न भारत सरकार बिना किसी परवाह के इन वैज्ञानिकों की मौत की जांच करवा कर दोषी एजेंसियों के अपराध को विश्व के सामने उजागर करे व हमारे अनमोल रत्नों की सुरक्षा को भी मजबूत करे।

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