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मुगल सेना का मुंहतोड़ जवाब देनी वाली योद्धा चांदबीबी का इतिहास

History of the warrior Chandbibi who answered the retort of the Mughal army

  

इतना तो आप सभी जानते ही होंगे कि भारत के गौरवशाली इतिहास में पुरुष योद्धाओं साथ-साथ कई वीरांगनाओं के नाम भी दर्ज हैं। जिन्होंने अपने साहस से नारी शक्ति को दिखाया है और उसे गारवान्वित भी किया है। फिर चाहे वह रानी लक्ष्मी बाई हों या रानी चेनम्मा। अंग्रेजों से लड़कर अपनी जान देने वाली ऐसी कई सराहनीय नारियां हैं। जैसे कि सरोजनी नायडू व लक्ष्मी सहगल जिन्होंने देश की आजादी के बाद तक देश की सेवा में स्वयं को समर्पित कर दिया।

वहीं इसी कड़ी में चांदबीबी का भी एक ऐसा नाम रहा है जिन्होंने मुगलों की विशाल सेना का मुकाबला कर उसे कड़ी टक्कर दी व दुनिया के सामने नारी शक्ति की ताकत को दिखाया। जहां चांदबीबी के जन्म स्थान का कोई सटीक जवाब कहीं नहीं मिलता। वहीं ऐसा माना जाता है कि 15 वीं शताब्दी में अपनी आंखें खोलने वाली चांद बीबी के पिता अहमदनगर के थे जिनका नाम हुसैन निजाम शाह था। और उनकी मां खुंजा हुमायूँ एक गृहणी थी। माता-पिता के लाड-प्यार के साथ देखते ही देखते वह कब 14 साल की हो गई उन्हें पता ही नहीं चला। दरअसल गौर फरमाने वाली बात ये है कि  उस दौर में लड़कियों की जल्द ही शादी हो जाती थी जिसके चलते  उनके पिता ने भी उनकी शादी का फैसला कर बीजापुर सल्तनत के अली आदिल शाह प्रथम  से उनका निकाह करा दिया।

बता दे कि बचपन से ही खूब समझदार रहने वली चांदबीबी को शादी के बाद ससुराल में ज्यादा परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ा। बहुत ही जल्द वह सबके साथ घुल-मिल गईं और उनका वैवाहिक जीवन भी काफी अच्छा चल रहा था। सिर्फ इतना ही नही उन्हें उनके पति अली आदिल शाह प्रथम से भी पूरा प्यार व सहयोग मिलता था। सबकी तारीफ बटोरने वाली चांद बीबी की खुशियों पर अचानक किसी की नज़र लग गई और उनके पति की मृत्यु हो गई। जहां एत तरफ इतने कम उम्र में पति का निधन होने के बाद चांदबीबी पर भी इसका गहरा असर पड़ा था। वहीं उनके पति की मौत के कुछ ही दिन पश्चात उनकी गद्दी पर बैठने की तलब सी मच गई। दरअसल चांदबीबी को अपने पति से कोई भी पुत्र प्राप्त नहीं हुआ था जिसके चलते ही अन्य लोग सत्ता पर बैठने की आपना-अपना दावा कर रहे थे।

फिलहाल अंत में जाकर अली आदिल शाह प्रथम  के भतीजे इब्राहिम आदिल शाह को बीजापुर का ताज पहनाया गया। उस समय इब्राहिम आदिल युवा थे जिसके कारण ही उनकी कुशलता पर किसी को कोई भी शक नहीं था। यहां तक कि चांदबीबी को भी। हां वो बात और है कि  उनको अबला समझकर राज्य के कुछ लोगों ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया जिसे उन्होंने अपने कौशल से धराशायी कर दिया। आपकी जानकारी के लिए बता दे कि इसी बीच उनके पिता के राज्य अहमदनगर में भी निजाम की हत्या के पश्चात वहां की भी सत्ता का विवाद हुआ। बहरहाल वहां से चांदबीबी को बहुत लगाव था जिसके कारण वह वहां की मदद के लिए फौरन रवाना हो गईं। और जैसे ही वहां पहुंचकर उन्हें ये पता चला कि दिल्ली का शहजादा मुराद अपने सैन्य बल के साथ अहमदनगर की ओर बढ़ रहा है तो ऐसे में चांदबीबी ने बेहद बुद्धिमानी व साहस के साथ अहमदनगर का नेतृत्व किया। उन्होंने उसका मुकाबले करने के लिए एक बढ़िया रणनीति तैयार कर मुगलों के दांत खट्टे कर दिए। जिसके बाद उन्होंने अहमदनगर के किले को तो बचा लिया पर मुगलों के साथ उनकी दुश्मनी हो गई।

गौरतलब है कि इसके बाद से ही यह सिलसिला नहीं रुका और शाह मुराद  ने चांदबीबी के पास अपने एक दूत को भेजकर उनसे पीछे हटने को कहा  पर अं में जब उसे लगा कि चांदबीबी नहीं मानेगी तो उसने आगे बढ़ने का फैसला किया। दरअसल उसकी योजना को चांदबीबी भलीभांति रूप से जानती थी। इसीलिए बिना समय बर्बाद किए अपने भतीजे इब्राहिम आदिल शाह व गोलकोण्डा के मुहम्मद क़ुली क़ुतुब शाह से एक होने की बात कही। जिसके पश्चात योजना के अंतर्गत ही इब्राहिम ने अपने साथी सोहेल खान के साथ मिलकर 25,000 लोगों का एक दल बनाकर नलदुर्ग में गठबंधन कर लिया। वहीं गोलकॉन्डा की सेना में 6,000 लोग इस युद्ध के लिए तैयार किए गए जिसके कारण चांदबीबी के पास एक अच्छी सेना हो गई  जो मुगलों को मात देने में सक्षम थी।

सबसे ज्यादा गौर फरमाने वाली बात ते ये है कि जब सब कुछ उनके हिसाब से हो रहा था तभी उनका विश्वसनीय मुहम्मद खान मुगलों से जा मिला जिसके कारण नतीजा चांदबीबी की सेना कमजोर पड़ गई। हां वे बात और है कि उनकी तरफ से सोहेल खान पूरी ताकत के साथ मुगल सेना से लड़ते रहे पर इस युद्ध को वह चांदबीबी के हक में नहीं करा पाने से अंत में वो हार गए। भले ही चांदबीबी युद्ध के मैदान में हार गई थीं पर उन्होंने कूटनीतिक तरीके से अपने किले को बचाने की पूरी कोशिश की थी। दरअसल इसके लिए उन्होंने मुगलों से बातचीत की पर उनकी इस बातचीत का कोई हल नहीं निकला। जिसके चलते अंत में मुगलों ने अहमदनगर पर कब्जा कर लिया।

गौरतलब है कि सबसे बड़े दुख की बात तो ये थी कि जिन अपनों के लिए चांदबीबी मुगलों से लड़ रही थीं वही ही उनके दुश्मन बन गए। उनकी सेना के कुछ सिपाही विरोधियों की ओर चले ग जिसके चलते चांदबीबी के सिपाही विरोधियों से प्रेरित हो गए और उन्होंने चंदीबीबी की बड़ी ही बेरहमी से हत्या कर दी।  भले ही चांदबीबी की मौत अपनो के हांछों छलने से हुई पर आज भी उनका नाम इतिहास में एक महान महिला योद्धा के रूप में जाना जाता है।

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