मार्गशीर्ष माह को हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण माना जाता है। इस माह को अगहन माह भी कहा जाता है इसी कारण से इस माह की अमावस्या को अगहन अमावस्या भी कहा जाता है। हर माह की अमावस्या का अपना महत्व होता है, दान आदि के लिए ही अमावस्या की तिथि होती है। मार्गशीर्ष माह के लिए भगवान कृष्ण ने स्वयं कहा है इसलिए हिंदू पंचाग के अनुसार मार्गशीर्ष का महत्व बढ़ जाता है। गीता में भी इस माह के बारे में उल्लेख मिलता है, ऐसा माना जाता है कि गीता का ज्ञान इसी माह में दिया गया था, इसी मान्यता के अनुसार इस माह की अमावस्या तिथि फलदायी मानी जाती है। इस अमावस्या का महत्व कार्तिक माह की अमावस्या से कम नहीं माना जाता है। इस दिन देवी लक्ष्मी के पूजन का विधान होता है। इसके साथ ही गंगा स्नान, दान आदि धार्मिक कार्य आदि किए जाते हैं। इस दिन पितृ दोष शांत करने के लिए भी पूजन और व्रत किया जाता है।
व्रत पूजा विधि-
हिंदू मान्यताओं के अनुसार हर माह की अमावस्या की तिथि को स्नान और दान का महत्व माना जाता है, लेकिन मार्गशीर्ष की अमावस्या के दिन यमुना नदी में स्नान करने का विशेष महत्व है। इस दिन स्नान करने के बाद कई लोग व्रत करते हैं, व्रत के बाद शाम को सत्यनारायण की कथा का पाठ किया जाता है। सत्यनारायण भगवान विष्णु का ही रुप माने जाते हैं। इस दिन के लिए मान्यता है कि विधि के साथ पूजन करने से अमोघ का फल मिलता है। व्रती को स्नान के बाद अपने समर्थ के अनुसार दान आदि करना चाहिए, इससे पाप नष्ट हो जाते हैं। इस वर्ष 18 नवंबर को मार्गशीर्ष अमावस्या है।
शास्त्रों के अनुसार मान्यता है कि व्यक्ति को देवों से पहले पितरों को प्रसन्न किया जाता है। जिन लोगों की कुंडली में पितृ दोष विराजमान होता है तो वो संतानहीन का योग बन रहा होता है तो ऐसे जातकों को अवश्य ही इस दिन उपवास करना चाहिए। विष्णुपुराण के अनुसार इस अमावस्या को व्रत करने से सिर्फ पितृ तृप्त नहीं होते बल्कि ब्रह्मा, इंद्र, रुद्र, सूर्य, अग्नि, पशु-पक्षी और सभी भूत-प्रेत भी तृप्त होकर प्रसन्न होते हैं। जिस तरह श्राद्ध पक्ष की अमावस्या महत्वपूर्ण होती है उसी तरह मार्गशीर्ष अमावस्या को पितरों का तर्पण किया जाता है।