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इसलिए न‍िकाय चुनाव मैदान में उतरे योगी आदित्यनाथ, जानिए…

लखनऊ: प्रदेश में निकाय चुनाव का चरम शुरू हो चुका है। पहले चरण का मतदान दो दिन बाद संपन्न हो जाएगा, लेकिन इस बार चुनाव कुछ मायनों में अलग साबित होगा। इसमें कुछ नए नगर निगम शामिल हुए हैं तो सभी बड़ी पार्टियां अपने सिंबल पर चुनाव लड़ रही हैं। जहां भाजपा के लिए आगामी लोकसभा के चुनाव को देखते हुए निकाय चुनाव में सफल होना जीने-मरने का सवाल है तो वहीं, चुनाव प्रचार में नई परंपरा शुरू करते हुए प्रदेश में पहली बार कोई मुख्यमंत्री मैदान में उतरा है। न केवल मैदान में उतरा है, बल्कि धुआंधार रैलियों और जनसभाओं के माध्यम से प्रचार भी कर रहा है।

बेपरवाह भाजपा
यह जानना ज्यादा दिलचस्प है कि अन्य विपक्षी पार्टियां जहां इस चुनाव में जुबानी तीर चला रही हैं, वहीं भाजपा बिना किसी बात पर ध्यान दिए अपने काम में जुटी है। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का कहना है कि भाजपा अपनी खराब स्थिति के कारण डरी हुई है, क्योंकि उत्तर प्रदेश में यह पहला मौका है जब कोई मुख्यमंत्री स्थानीय निकाय चुनाव में प्रचार अभियान में उतरा हो और चुनावी सभाओं को संबोधित कर रहा हो। उनका यह भी कहना है कि पुरानी परंपरा को देखते हुए स्थानीय निकाय के प्रचार अभियान से वरिष्ठ नेता दूर हैं। दूसरी ओर निकाय चुनाव को लेकर अन्य दल भी कमर कस रहे हैं। अखिलेश यादव को अपने द्वारा कराए गए विकास कार्यों पर भरोसा है। वह कहते भी हैं कि अगर लखनऊ मेट्रो, आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस वे, समाजवादी पेंशन योजना, समाजवादी आवास योजना समेत उनकी पिछली सरकार के तमाम विकास कार्यों को देखते हुए वोट पड़े तो ज्यादातर नगर निकायों में पार्टी के प्रत्याशी चुने जाएंगे।

सपा के राष्ट्रीय सच‍िव ने कहा- प्रचार मैदान में उतरने का अख‍िलेश का कोई कार्यक्रम नहीं
सपा के राष्ट्रीय सचिव राजेंद्र चौधरी का कहना है कि फिलहाल अखिलेश के चुनाव प्रचार मैदान में उतरने का कोई कार्यक्रम नहीं है। उधर, कांग्रेस यह मानती है कि यह पार्टी नगर निगमों, नगर पालिकाओं और नगर पंचायतों में अपने प्रत्याशी खड़े करती रही है। लेकिन इस बार यह चुनाव बेहद अहमियत रखते हैं, क्योंकि इसके बाद सीधे 2019 का लोकसभा चुनाव होगा, लिहाजा निकाय चुनाव से पार्टी का आधार मजबूत होगा। चुनाव में पार्टी के राज्यस्तरीय नेता प्रचार करेंगे। जहां जरूरत पड़ेगी, वहां केंद्रीय नेताओं से मदद ली जाएगी। कांग्रेस ऐसा कर भी रही है। उसके भी कई बड़े नेता मैदान में उतरे हुए हैं। बसपा भी इस चुनाव के महत्व को समझ रही है, इसलिए पहली बार वह अपने सिंबल पर निकाय चुनाव लड़ रही है। उधर, दिल्ली में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी उत्तर प्रदेश में पहली बार नगर निकाय चुनाव में ताल ठोक रही है। दिल्ली विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत हासिल करने वाली यह पार्टी इन स्थानीय चुनावों को राज्य में अपनी सियासी पारी की औपचारिक शुरुआत मान रही है।

मुस्तैद भाजपा
अन्य पार्टियां चाहे जो भी कहें या चुनाव को जिस भी रूप में ले रही हों, पर भाजपा इसे लेकर जरा भी बेपरवाह नहीं है। हर स्तर पर वह इस चुनाव में फतह हासिल करने का प्रयास कर रही है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल तो यही उठ रहा है कि चुनाव तो पहले भी होते रहे हैं और निकाय चुनावों में भाजपा का ही डंका बजता रहा है, लेकिन इस बार ऐसा क्या है कि परंपरा तोड़कर खुद मुख्यमंत्री को प्रचार के लिए उतरना पड़ा है। सवाल तो यही है, पर इसके बारे में अलग-अलग लोगों के अलग अलग तर्क है।

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