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घर के भीतर बसी दुनिया की ये दबी दास्तां

 

 

 

 

 

 

These closed tales of the world within the house

     

जिंदगी बड़ी खूबसूरत है यही समझती थी वो…

घर की दुनिया में रहकर बाहर के सपने देखती थी वो…

मम्मी का प्यार और पापा को दुलार ही समझती थी वो…

दुनिया से बड़ी अंजान रहती थी वो…

बड़ी होकर भी बचपन में जी रही थी वो…

खूब बचकानी हरकतें कर रहीं थी वो…

इन हंसी खुशी के माहौल में बड़ी ही कोमल बन गई थी वो…

फिर एक दिन हुआ कुछ ऐसा कि बहुत रो रही थी वो…

अपनों को खोने के बाद कुछ इस कदर बिलख रही थी वो…

मेरी दुनिया कहां गई, मेरी जिंदगी , मेरी हंसी कहां गई, यही कहकर चीख रही थी वो…

चार दीवारी में कैद पल-पल तड़पकर मर रही थी वो…

दुनिया तो उसने देखा ही नही, शायद इसीलिए अकेले ही कुढ़ रही थी वो…

कैद होकर पहले जीती थी, पर अब और न जी पा रही थी वो…

छोड़ गई दुनिया पर आज भी दुनिया नही देख पाई थी वो…

By Shambhavi Ojha

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