वरिष्ठ कांग्रेसी नेता सैफुद्दीन सोज ने आज कहा कि अगर हिज्बुल मुजाहिदीन कमांडर बुरहान वानी को पिछले साल सुरक्षा बल मार नहीं देते तो वह उससे बातचीत करते।
उन्होंने एक टीवी समाचार चैनल से कहा, ‘‘बुरहान वानी को जीवित होना चाहिए था ताकि मैं उससे बातचीत कर पाता। मैं उसे बताता कि कश्मीर भारत और पाकिस्तान के बीच दोस्ती का मजबूत सेतु बन सकता है और वह इसमें मददगार हो सकता है। लेकिन अब वह नहीं है।’’ सोज के विवादास्पद बयान यहां आॅब्सर्वर रिसर्च फाउंडेशन द्वारा जम्मू कश्मीर में हालात विषय पर आयोजित एक सम्मेलन से इतर आये।
वानी को सुरक्षा बलों ने पिछले साल आठ जुलाई को मार गिराया था। उसके मारे जाने के बाद कश्मीर घाटी में ंिहसक प्रदर्शन हुए जो महीनों तक जारी रहे। उन्होंने कहा, ‘‘जो मानते हैं कि वह शहीद था तो मानते रह सकते हैं और जो मानते हैं कि उसे मार गिराया गया तो वे ऐसा कर सकते हैं। घटना हो चुकी है। हमें भारत और पाकिस्तान के बीच दोस्ती बढ़ानी चाहिए और कश्मीरियों के दर्द को समझना चाहिए।’’ सोज ने कहा कि वानी सीमावर्ती राज्य में उग्रवाद का ‘प्रतीक’ था। उन्होंने कश्मीर मुद्दे के समाधान के लिए अलगाववादियों से बातचीत शुरू करने की वकालत की।
उन्होंने कहा, ‘‘उग्रवाद से कैसे निपटा जाए? बातचीत के जरिये। मैं चाहता हूं कि सरकार हुर्रियत कांफ्रेंस से बातचीत करे। अगर आप हमसे बातचीत शुरू कर सकते हैं तो हुर्रियत से भी कीजिए।’’ इससे पहले सम्मेलन को संबोधित करते हुए सोज ने कहा, ‘‘आज जम्मू-कश्मीर में समस्या नहीं है बल्कि लोगों के दिमाग में है जो अलग-थलग महसूस कर रहे हैं। कश्मीर के युवाओं को भटके हुए या पथराव करने वाले नहीं बताया जा सकता है। भारत में हर कोई रहना चाहता है लेकिन प्रतिष्ठा, प्रेम और स्रेह के साथ, गोलियों के साथ नहीं।’’ सोज ने कहा कि सैन्य बल के इस्तेमाल से कश्मीर को चलाना नामुमकिन है। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि ‘आरएसएस का आख्यान’ कश्मीर के लोगों को स्वीकार्य नहीं है। ‘कश्मीरियत, जम्हूरियत, इंसानियत’ और राष्ट्रीय एकीकरण के नजरिये से ‘कश्मीर की समस्याओं’ को देखने के लिए इस सम्मेलन का आयोजन किया गया। नेशनल कांफ्रेंस के नसीर असलम वानी ने कहा कि कश्मीरियों को अब भी हर दिन अपनी भारतीय पहचान साबित करनी पड़ती है।