झारखंड पुलिस के 15 जवान एक 60 वर्षीय डेयरी किसान को बचाने के लिए करीब एक हजार लोगों की भीड़ को काबू में रखे रहे। मंगलवार (27 जून) को भीड़ गिरिडीह जिले के बारवाबाड़ गांव के मोहम्मद उस्मान के घर पर भीड़ तब टूट पड़ी जब उनके घर के बाहर एक मरी हुई गाय पाई गई। भीड़ ने उस्मान के घर के एक हिस्से में आग लगा दी। कुछ उन्मादियों ने उस्मान को आग में फेंकने की कोशिश की। हमलावरों ने उस्मान को दो बार पुलिस जीप से खींचने की कोशिश की। बाद में सीआरपीएफ की टीम ने पहुंच कर मामले को संभाला।
मौके पर सबसे पहले पहुंची पुलिस टीम के सब-डिविजनल पुलिस अफसर प्रभात रंजन बरवाड़ ने कहा, “हम केवल 15 लोग थे। साप्ताहिक बाजार की वजह से वहां काफी लोग थे। करीब हजार लोग इकट्ठा हो गए थे। हमारी पहली कोशिश थी उस्मान को अपनी निगरानी में लेना। हम इसमें कामयाब रहे लेकिन हम उसे गांव से बाहर नहीं निकाल पा रह थे। फिर हमें खबर मिली कि उसके परिवार के लोग घर के अंदर हैं। हम घर के पीछे की सीढ़ी से घुसकर अंदर जाने में कामयाब रहे और उसके परिजनों को बाहर निकाल लाए।”
बरवाड़ के बयान की पुष्टि तीन चश्मदीदों ने भी की। बात करते हुए गांव के जावेद अंसारी ने कहा, निजामुद्दीन और ग्राम प्रधान मंजूर आलम ने भी बरवाड़ की बात की पुष्टि की। घटना के बाद गांव में बहुत ही कम लोग बचे हैं। उस्मान और उनका परिवार इलाज के लिए धनबाद गया है। अंसारी वाचमैन के तौर पर काम करते हैं। उस्मान के घर पर भीड़ के हमले की पुलिस को सूचना उन्होंने ही सबसे पहले दी थी।
अंसारी ने बताया, “बाजार में पूरी चहल-पहल थी। जब बाजार में भगदड़ जैसी मची तो मैं दाढ़ी बनवा रहा था। मैं मोटरसाइकिल से मौके पर पहुंचा क्योंकि पुलिस को इत्तला करने से पहले मुझे पता करना था कि हुआ क्या है।” गांव में केवल उस्मान ही गाय पालते हैं। उनके पास आठ गायें हैं। उनका परिवार बारवाबाड़ और पड़ोस के मांद्राव गांव में दूध बेचते थे। भीड़ ने पहले उस्मान से पूछा कि क्या मरी हुई गाय उनकी है। उस्मान ने माना कि गाय उन्हीं की है। भीड़ उस्मान को मरी हुई गाय के पास ले गई और उनसे कुबुलवाया कि गाय को उन्होंने नहीं मारा। उस्मान ने ये भी किया। ग्राम प्रधान आलम कहते हैं, “हमने सुना कि कुछ लोग उन्हें आग में फेंक देना चाहते थे।”