Thursday, October 24, 2024
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आतंकियों का गढ़ बना दक्षिण कश्मीर, घाटी में सक्रिय 282 में से 112 आतंकी यहीं के

SI News Today

रविवार (28 मई) को दक्षिणी कश्मीर के त्राल में हिज्बुल मुजाहिद्दीन के कमांडर सब्जार भट के जनाजे में प्रशासन द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने के बाद भी भारी भीड़ उभरी।  भट शनिवार (27 मई) को मारा गया था। पिछले कुछ समय में दक्षिणी कश्मीर उग्रवादियों की नर्सरी बनकर उभरा है। जम्मू-कश्मीर पुलिस के अनुसार घाटी में सक्रिय 282 उग्रवादियोें में से 112 दक्षिणी कश्मीर से हैं। इन 112 में से 99 उग्रवादी “स्थानीय” हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार कम से कम 20 और “स्थानीय” उग्रवादी इस इलाके में सक्रिय हैं। कई ऐसे हैं जिन्होंने अपने उग्रवादियों से जुड़ने की बात सार्वजनिक नहीं की है। इस इलाके में हर हफ्ते किसी ने किसी के “उग्रवाद” से जुड़ने की खबर आती है।

इन उग्रवादियों को मोटे तौर पर तीन वर्गों में बांटा जा सकता है – 1- वे नौजवान जिन्होंने जेल भेजे जाने के बाद हथियार उठा लिया, 2- साल 2008 में हुए उपद्रव के जेल से वापस आने वालों ने दोबारा उग्रवाद का रास्ता अपना लिया और 3- वो नौजवान वैश्विक जिहाद में भागीदारी के लिए कश्मीर में सक्रिय हैं। पहले दोनों वर्गों का मकसद राजनीतिक है। पहले दोनों वर्ग के उग्रवादी “कश्मीर को पाकिस्तान का हिस्सा” बनाना चाहते हैं। तीसरे वर्ग में कितने नौजवान शामिल हैं इसकी सटीक जानकारी नहीं है। पुलवामा के त्राल के रहने वाले 22 वर्षीय बुरहान वानी के पिछले साल जुलाई में मारे जाने के बाद से ये तीसरा वर्ग “अदृश्य दस्ते” की तरह उभरा है।

बुरहान वानी की जगह लेने वाले हिज्बुल मुजाहिद्दीन कमांडर जाकिर राशिद उर्फ मूसा ने हाल ही में हिज्बुल से नाता तोड़ा है। जाकिर से मिले संकेतों के अनुसार इस तीसरे वर्ग ने पाकिस्तान स्थित यूनाइटेड जिहाद काउंसिल (यूजेसी) और श्रीनगर स्थित अलगाववादी संगठन हुर्रियत से अलग राह पकड़ ली है। हिज्बुल छोड़ने से पहले मूसा ने पुलवामा में उग्रवादियों से “गैर-इस्लामी” पाकिस्तानी झंडा न फहराने के लिए कहा था। उसने कश्मीर में चल रहे “संघर्ष” को “इस्लाम के लिए युद्ध” बताया था। मूसा ने गांववालों से तालिबान के समर्थन में नारे लगाने के लिए कहा था। सरकारी अधिकारियों के अनुसार मूसा श्रीनगर के उन दो नए उग्रवादियों में था जो हिज्बुल या लश्कर-ए-तैएबा से संबंधित नहीं था।

इस तीसरे वर्ग के उग्रवादियों में कई बातें साझा हैं-

अलग-अलग संगठनों से जुड़े होने के बावजूद वो आपसी तालमेल से काम करते हैं.
इन्हें हथियार चलाने की कोई औपचारिक ट्रेनिंग नहीं मिली है और इन्होंने हथियार वगैरह स्थानीय स्तर पर हासिल किए हैं।
वो ज्यादातर स्थानीय मुद्दों से प्रेरित हैं और जान देने के लिए तैयार रहते हैं।
उग्रवाद से जुड़ने की सूचना वो बंदूक के संग अपनी तस्वीर सार्वजनिक करके देते हैं।

इंडियन एक्सप्रेस ने जब इन युवाओं के घरवालों से मुलाकात की तो पता चला कि उग्रवादी बनने से पहले पुलिस इन्हें अक्सर “उठाती” रहती थी। इन नौजवानों में बहुत से ऐसे हैं जिनके करीबी रिश्तेदार या परिजन उग्रवाद या अलगाववाद से जुड़े रहे हैं और उन्हें जेल हो चुकी है या वो मारे जा चुके हैं।

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