वट सावित्री एक पारंपरिक त्योहार है जिसे कि विवाहित महिलाएं मनाती हैं। महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, गुजरातस हरियाणा, पंजाब और बिहार में इस त्योहार को बहुत ही धूम-धाम से मनाया जाता है। विवाहित महिलाएं ज्येष्ठ मास की अमावस्या के दिन वट सावित्री का उपवास रखती हैं। माना जाता है कि वट वृक्ष (बरगद का पेड) की जड़ों में ब्रह्मा, तने में विष्णु और पत्तियों में शिव का वास होता है। इसी वजह से वट सावित्री व्रत के दिन इस पेड़ की पूजा अर्चना की जाती है। महिलाएं पूजा करने के बाद सती सावित्री की कहानी सुनती हैं और अपने सुहाग की लंबी उम्र की कामना करती हैं।
वट सावित्री की कथा इस प्रकार है – सावित्री के पति सत्यवान अल्पायु थे। इसके बारे में उन्हें ऋषि नारद ने बताया था और उन्हें अपने लिए दूसरा पति मांग लेने को कहा था। लेकिन सावित्री ने कहा कि मैं हिंदू औरत हूं और एक बार ही अपना पति चुनती हूं। इसके कुछ समय बाद सत्यवाद को काफी दर्द हुए जिसके बाद सावित्री ने उन्हें वट वृक्ष के नीचे अपनी गोद में लिटा लिया। कुछ देर बाद वहां अपने यमदूतों के साथ मृत्यु के राजा यमराज पधारे। सत्यवान की आत्मा को यमराज के द्वारा ले जाते हुए देखकर उसके पीछे-पीछे सावित्री भी चलने लगी। उन्हें अपने पीछे आता देखकर यमराज ने लौट जाने के लिए कहा। लेकिन वो नहीं मानी और कहा कि जहां मेरे पति रहेंगे, मैं भी वहीं रहूंगी।
सावित्री के जवाब से खुश होकर यमराज ने उन्हें तीन वरदान मांगने को कहा। जिसपर उन्होंने सास-ससुर की आंखों की रोशनी, ससुर का खोया हुआ राज्य और सत्यवान के बच्चों की मां बनने का वर मांग लिया। इसपर यमराज ने तथास्तु कहा। जिसके बाद जब वो वापिस वटवृक्ष पर आईं तो देखा कि उनके पति के मरे हुए शरीर में प्राण वापिस आ गए हैं। इसी वजह से अमावस्या के दिन वटवृक्ष की पूजा करने से महिलाएं अपने पति के दीर्घायु होने की प्रार्थना करती हैं। वट सावित्री व्रत वाले दिन घर को गंगाजल से पवित्र करें और उसके बाद बांस की टोकरी में सप्त धान्य भरकर ब्रह्माजी की प्रतिमा को स्थापित करें।
इसके बाद ब्रह्माजी की बाईं तरफ सावित्री जबकि दाईं ओर सत्यवान की मूर्ति स्थापित करनी चाहिए। फिर टोकरी को वट वृक्ष के नीचे ले जाकर रख दें। उसके बाद सावित्री और सत्यवान की पूजा करके वट वृक्ष की जड़ में जल अर्पित करें। पूजा के लिए पानी, मौली, रोली, सूत, धूप, चने का प्रयोग करें। सूत के धागे को वट वृक्ष पर लपेटकर तीन बार परिक्रमा करने के बाद सावित्री और सत्यवान की कथा सुनें। पूजा खत्म होने के बाद कपड़े, फल आदि को बांस के पत्तों में रखकर दान कर दें और चने का प्रसाद बांटें। शुभ मुहूर्त की बात करें तो 25 मई 2017 की सुबह 5:07 मिनट से 26 मई 2017 को 1:14 मिनट तक रहेगा।