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नूरजहां : एक ऐसी महिला जिसकी कुशाग्रता की कहानियां आज भी ज़िंदा हैं

Noorjahan : A lady whose stories of sharpness are still alive today

         

16वीं सदी की शुरुआत में भारत में सत्ता स्थापित करने वाले मुगलों ने भारतीय उप महाद्वीप के एक बड़े हिस्से पर 300 साल से ज़्यादा समय तक शासन किया. यह भारत के सबसे बड़े और सबसे ताकतवर राजवंशों में से एक था. मुगल काल में कई शासक रहे जिन्होंने इस महाद्वीप पर शासन किया, नूरजहां उनमें से एक थीं.

नूरजहां कला, संस्कृति और स्थापत्य कला की संरक्षक थीं. उन्होंने उस दौरान ऐसे शानदार शहर, महल, मस्ज़िद और मक़बरे बनवाए
जिसकी कोई कल्पना भी नहीं सकता था. इतना ही नहीं बल्कि उन्होंने आगरा में अपने माता-पिता के मक़बरे का डिज़ाइन भी तैयार किया. ताजमहल की डिजाइन भी इसी से प्रेरित है.

नूरजहां के वक़्त में आगरा और लाहौर मुगल शासन के दो प्रमुख शहर थे. इसलिए उनकी कहानियां आज भी उत्तर भारत के आगरा और उत्तर पाकिस्तान के ऐतिहासिक इमारतों में सुनाई जाती है कि कैसे वो और जहांगीर एक दूसरे से प्यार करने लगे और कैसे नूरजहां ने एक आदमखोर बाघ का शिकार करके एक गांव को बचाया.

नूरजहां एक ऐसी महिला थी जिन्होंने तमाम अड़चनों का सामना करते हुए मुगल शासन की कमान संभाली. उन्हें शिकार करने में महारत हासिल थी और वो स्थापत्य कला में नए-नए प्रयोग करने की शौक़ीन थीं.इतना ही नहीं वे एक कवियत्री भी थी.

बिना किसी शाही परिवार से ताल्लुक रखने के बावजूद एक आम लड़की ने केवल अपनी महत्वाकांक्षाओं  के दम पर मलिका से लेकर राजनेता और जहांगीर की पसंदीदा पत्नी बनने से लेकर एक विशाल मुगल साम्राज्य की महरानी बनने तक का सफर तय किया.

नूरजहां का जन्म 1577 के क़रीब कंधार (अफ़गानिस्तान) में हुआ था. उनके माता-पिता फ़ारसी थे जिन्होंने सफ़वी शासन में बढ़ती असहिष्णुता की वजह से ईरान छोड़कर कंधार चले गए थे.उस वक़्त अरब और फ़ारस के निवासी भारत को अल-हिंद कहते थे जिसकी संस्कृति समृद्ध और सहिष्णु थी. अल-हिंद में अलग-अलग धर्मों, रीति-रिवाजों और विचारों के लोगों के एक साथ शांति से रहने की सुविधा थी.

नूरजहां अलग-अलग तरह की संस्कृतियों और रीति-रिवाजों में पली बढ़ीं. उनकी पहली शादी 1594 में मुगल सरकार के एक पूर्व सिख सरकारी अधिकारी से हुई. इसके बाद वो बंगाल चली गईं जो उस वक़्त पूर्वी भारत का एक संपन्न राज्य था. वहीं, उन्होंने अपनी इकलौती संतान को जन्म दिया. बाद में नूरजहां के पति पर जहांगीर के ख़िलाफ़ षड्यंत्र रचने के आरोप लगे. तब जहांगीर ने बंगाल के गवर्नर को नूरजहां के पति को आगरा में अपने शाही दरबार में लाने का आदेश दिया. लेकिन नूरजहां के पति गवर्नर के आदमियों के साथ युद्ध में मारे गए.

पति की मौत के बाद विधवा नूरजहां को जहांगीर के महल में शरण दी गई. 1611 में नूरजहां और जहांगीर की शादी हो गई. इस तरह नूरजहां जहांगीर की बीसवीं और आख़िरी पत्नी बनीं

कुछ इतिहासकारों का कहना है कि जहांगीर नशा करते थे, जिसकी वजह से वे अपनी सत्ता संभालने में असक्षम थे, इसलिए उन्होंने अपने साम्राज्य की कमान नूरजहां को संभालने के लिए दे दी थी. पर क्या आपको पता है जहांगीर सिर्फ अफ़ीम का सेवन किया करते थे. इसलिए ये कहना गलत नहीं होगा कि उन्हें नशे की लत थी.

दरअसल, इसके पीछे वजह उस सम्मान का है जो जहांगीर के मन में नूरजहां के लिए था. वह कभी भी अपनी पत्नी की तरक्की और बढ़ते प्रभाव से कभी असहज नहीं रहे . वहीँ शादी के कुछ ही वक़्त बाद नूरजहां ने अपना पहला शाही फ़रमान ज़ारी किया था जिसमें कर्मचारियों के ज़मीन की सुरक्षा की बात कही गई थी. इस फ़रमान के उनके दस्तख़त थे- नूरजहां बादशाह बेगम. अब आप इससे खुद ही समझ सकते हैं कि नूरजहां की ताक़त कैसे बढ़ रही थी.

1617 में जारी चांदी के सिक्को पर जहांगीर के बगल में उनका नाम छपने से लेकर शिकार करना, शाही फ़रमान और सिक्के जारी करना , सार्वजनिक इमारतों का डिजाइन तैयार करना , ग़रीब औरतों की मदद के लिए नए फ़ैसले लेना या हाशिए पर पड़े लोगों की अगुवाई करनी, ये सब रूढ़िवादी परंपराओं के ख़िलाफ़ उनकी ऐसी जंग थी जिसे वे एक के बाद एक जीतती गई.

इतना ही नहीं, जब जहांगीर को बंदी बना लिया गया तब उन्होंने उन्हें बचाने के लिए सेना का नेतृत्व भी किया. यही सब वजह है कि नूरजहां का नाम इताहिस में हमेशा के लिए दर्ज़ हो गया.

 

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