Sunday, May 12, 2024
featuredगोण्डामेरी कलम से

।।फतवा।।

SI News Today

देखो भैया बात यह है की सोनू निगम हो गए गंजे उनको गंजा करने वाला नाई इस्लाम धर्म से जुड़ा है उसको 10 लाख तो मिलने चाहिए।लेकिन भाई साहब मौलवी साहब तो पलट गए उन्होंने फतवे के अधिसूचना ही बदल दी।अब समय आ गया की हम लोगों को भी फतवे की पूरी जानकारी दी जाये।फतवा किस किस को गंभीरता से लेना है और कौन फर्जी ह्ल्ला बोल रहा है। मुस्लिम समुदाय के मौलाना को यह भी बताना चाहिए की फतवे में मिली रकम कैसी होगी डायरेक्ट खाते में आएगी या नगद दी जाएगी,नगद में समस्या हो सकती है,मोदी जी धर लेंगे।और “फतवा” का मतलब क्या है? फतवा एक अरबी शब्द है जिसका मतलब होता है, किसी मामले में धार्मिक विद्वान की ओर से शरियत के मुताबिक दी गई राय। यह बात इस जुम्मे को लाउडस्पीकर से बतायी जाये। और फतवा कोई फरमान नहीं है।मेरी जानकारी में पहला फतवा 10 सितम्बर 2005 में सानिया मिर्ज़ा की स्कर्ट पे आया था,कि स्कर्ट पहन के आप टेनिस नहीं खेलेंगी। लेकिन अब बुरका पहन कर भी तो नहीं खेला जा सकता। तो अभी हाल ही में मौलवी साजिद रशीद ने ये बात दोहराई की जिस खेल को आप बुरका पहन कर नहीं खेल सकती वो खेल इस्लाम धर्म की औरतों को नहीं खेलना चाहिए।लेकिन फतवे से ना सानिया रुकीं ना और न ही इंडियन आइडल जूनियर की उप विजेता नाहिदा आफरीन।इस प्रकार के फतवे का दंश कई प्रकार की महिलाए और पुरुष झेल चुके हैं। हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहू अलैहे वसल्लम (स.ल.अ.) ने पहली बार इंसानियत को औरतों की अज़मत से वाकिफ कराया। दुनिया को सबक़ दिया कि लड़के और लड़कियों की परवरिश मे भेदभाव न करें। लड़कियों को तालीम देने का हुक्म दिया। माँ के कदमो के नीचे जन्नत करार दिया। इस्लाम औरत को कद्र और इज़्ज़त की निगाह से देखने के लिए कहता है। फिर क्यों बार बार एक नया फतवा जारी करके हम उनके आत्मसम्मान को ठेस पहुँचाते हैं और उनकी तरक्की में रुकावट बनते हैं? सलमान खान की खुली शर्ट देख कर तो पिक्चर हॉल में हर धर्म के लोग सीटियाँ मारते हैं, इस्लामिक आदमी है उस पर भी दो चार फतवे तो बनते ही हैं। लेकिन मौलवी साहब को तो सानिया मिर्ज़ा ही दिखीं। फतवा पढ़ना है तो गरीबी और बेरोजगारी के खिलाफ भी पढो। और भाई उन मौलवियों को भी रजिस्टर्ड कर दो जो प्रमाणित फतवा पढ़ते हों। यार ये समझ नहीं आता की मनुस्मृति का विरोध करने वालों का साथ देने वाले बुद्धिजीवी लोग बवाली फतवों पर बोलने से क्यूँ डरते हैं कहीं उनका डर कोई फतवा तो नहीं???

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Pushpendra Pratap singh

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