वे भले ही एक वर्ग-विहीन समाज बनाने में विफल रहे हों और भले ही उनका चर्चित नारा ‘चीन का प्रमुख है हमारा प्रमुख’ अब न सुना जाता हो, लेकिन नक्सली आंदोलन के जाने-माने नेताओं का कहना है कि नक्सलियों के आदर्श और संघर्ष अब भी प्रासंगिक हैं। वीरवार राव और संतोष राणा जैसे पूर्व नक्सली और दीपांकर भट्टाचार्य जैसे वर्तमान नेताओं का कहना है कि दुश्मन का सिर्फ स्वरूप ही बदला है। पहले ये दुश्मन सामंतवादी थे और अब ये दुश्मन भाजपा-आरएसएस हैं। इन नेताओं का कहना है कि क्रांति शुरू हुए भले ही 50 साल बीत गए हों लेकिन आज जब भाजपा-आरएसएस सरकार ‘‘देश और समाज को धार्मिक आधार पर बांटने पर उतारू हैं’, तब नक्सली आंदोलन के आदर्श आज भी प्रासंगिक हैं।
पूर्व नक्सली नेता वीरवार राव ने पीटीआई भाषा से कहा, ‘‘एक वर्गविहीन समाज बनाने के लिए हम सामंतवादियों और पूंजीपति व्यवस्था के खिलाफ लड़े। हमें सफलता नहीं मिली लेकिन आज, जब भाजपा-आरएसएस की सरकार देश और धर्म को धार्मिक आधार पर बांटने की कोशिश कर रही है, तब हमारे लक्ष्य और अधिक प्रासंगिक हो जाते हैं।’’ राव ने कहा कि वे ‘‘वर्ग संघर्ष के असली शत्रु’’ हैं और उनसे एकजुट होकर लड़ा जाना चाहिए। वहीं दूसरी तरफ अन्य पूर्व नक्सली संतोष राणा ने कहा कि मोदी और आरएसएस द्वारा गौरक्षा और घर वापसी जैसे मुद्दों पर जोर देकर देश को पीछे ढकेला जा रहा है।
ये देश को विकास की बात करते हैं लेकिन इन मुद्दों के कारण देश पीछे जा रहा है। इन मुद्दों के चलते ही नक्सलबाड़ी आंदोलन द्वारा दी जा रही सीख और उनके आदर्श काफी हद तक प्रासंगिक हो जाते हैं। आपको बता दें कि 25 मई 1967 में नक्सलबाड़ी आंदोलन की शरुआत हुई थी। इस आंदोलन की शरुआत उस समय दार्जीलिंग में स्थित नक्सलबाड़ी गांव से की गई थी जब बेवजह स्थानीय पुलिस वालों ने गांव के 2 बच्चों समेत 19 ग्रामीणों को मौत के घाट उतार दिया था। इस आंदोलन से जुड़े हुए लोगों में ज्यादातर माकपा के पूर्वी नेता हैं, जिन्होंने पार्टी से अलग होकर अपनी नई पार्टी भाकपा (माले) बनाई थी।