Mid Day Mill is being named after playing with the health of the children.
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मिड डे मील की गुणवत्ता को लेकर आये दिन सवाल उठते रहे है लेकिन हर बार कुछ समय तक ध्यान देने के बाद मामला फिर से ठंडा पड़ जाता है। मिड डे मिल के नाम पर अब विद्यालय प्रशासनिक अमले के साथ मिलकर बच्चो को जहर बांट रहा है। आये दिन बच्चे मिड डे मिल खाकर बीमार पड़ जाते है। ऐसी घटनाये पिछले काफी समय से हो रही है।
मामला दिल्ली के नरेला क्षेत्र के बांकनेर गांव स्थित राजकीय कन्या वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय के मिड-डे मील में बुधवार को एक छिपकली मिलने से उछला। विद्यालय के लापरवाह रवैये और उसके लापरवाह कर्मचरियों ने छिपकली से दूषित खाना बच्चो को खिला दिया, जिसे खाकर कर बच्चे बीमार पड़ गए है। उसके बाद बच्चो को नरेला स्थित सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र अस्पताल में भर्ती कराया गया। हालांकि देर शाम सभी को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। उधर बच्चो का हाल जानने पहुंचे दिल्ली सरकार के समाज कल्याण मंत्री राजेंद्र पाल गौतम अस्पताल आये जिन्हे अभिभावकों ने घेर लिया और खूब खरी-खोटी सुनाई। 7वीं कक्षा की छात्रा पूजा ने मंत्री को बताया कि जो मिड-डे मील उन्हें दिया गया, उसमें छिपकली मरी हुयी थी। इस पर मंत्री ने पूरे मिड-डे मील को कब्जे में लेकर आपूर्ति करने वाली एजेंसी के खिलाफ मामला दर्ज कराने के आदेश अधिकारियों को दिए। बाद में मिड-डे मील के कुछ सैंपल जांच के लिए भेज दिए गए। दिल्ली सरकार ने मिड-डे मील आपूर्ति करने वाली संस्था आर्य नवयुग शिक्षा समिति के खिलाफ मामला दर्ज कराने के आदेश दिए हैं।
लेकिन हर बार मिड डे मील को लेकर मीडिया में सुर्खियां बनने के बाद भी न तो प्रशासन अपनी तरफ से भविष्य में होने वाले किसी बड़ी दुर्घटना के लिए कार्यवाही करते हैं और न भोजन सप्लाई करने वाली एजेंसियों की मानव संवेदना ही जागती है।कुछ दिन हो-हल्ला होने के बाद सारा मामला फिर से ठंडा हो जाता है। मिड-डे मील के जरिए बच्चों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ का ये खेल बंद होने का नाम नहीं ले रहा है। लगातार हो रही इन घटनाओं से साफ है कि सरकार मिड-डे मील की गुणवत्ता सुधारने की दिशा में असफल रही है। आखिर कब सरकार मिड डे मिल की गुणवत्ता को सुधारने के लिए कोई ठोस कदम शायद तब उठाएगी जब कोई बहुत बड़ी दुर्घटना हो जाएगी।