कोई नागरिक घर या संपत्ति को कुछ नियमों के अधीन रहते हुए पूजा स्थल घोषित कर सकता है, लेकिन सार्वजनिक स्थान के लिए ऐसा नहीं किया जा सकता।
सड़क और गलियों में पूजा-प्रार्थना किसी का मूल अधिकार नहीं है, केवल धार्मिक आयोजनों के लिए इनका उपयोग हो सकता है। एक सार्वजनिक कार्यालय जहां नागरिक कर्तव्यों का निर्वहन होता है, उसे
किसी एक धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता।
ऐसा हुआ तो वह कार्यालय, कार्यालय नहीं रहेगा। हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने खंडपीठ की नई इमारत परिसर में मंदिर बनाए जाने की याचिका को इस टिप्पणी के साथ खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि संविधान ने सरकार को किसी खास धर्म को प्रचारित करने का आदेश नहीं दिया है।
याचिका : अनुच्छेद 25 की व्यवस्था के अनुसार बहुसंख्यक वकीलों को मिले ऐसी जगह
याचिका हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस ने दायर की थी। इसमें नई इमारत में पूजा प्रार्थना के लिए मंदिर या गुरुद्वारा जैसी कोई जगह नहीं होने की बात कहते हुए बताया गया था कि हाईकोर्ट की कैसरबाग स्थित पुरानी इमारत में यह उपलब्ध थी। ऐसे में उन्हें नए कैंपस में भी ऐसी जगह मुहैया करवाई जाए।
संविधान के अनुच्छेद 25 की व्यवस्था के अनुसार कोर्ट आने वाले बहुसंख्यक वकील को ऐसी जगह दी जानी चाहिए। इसके बिना वे अपने हिंदू धर्म के पालन से महरूम रह जाएंगे। यह संविधान में दिए गए मूल अधिकारों का हनन होगा। वकीलों के साथ साथ बड़ी संख्या में वादी भी कोर्ट आते हैं, यहां काफी समय रहते हैं, उनके भी अधिकारों का संरक्षण होना चाहिए। यह सरकार का दायित्व भी है।