वट सावित्री पारंपरिक हिन्दू त्योहार है जो पूरे भारत में मनाया जाता है। इस दिन शादीशुदा महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं।महाराष्ट्र, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, पंजाब और बिहार में काफी बड़े स्तर पर मनाया जाता है। स्कन्द पुराण के अनुसार इस इस व्रत को ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को रखा जाता है, लेकिन निर्णयामृतादि के अनुसार यह व्रत जयेष्ठ माह की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को करने का विधान है।
इस साल वट सावित्री का व्रत 25 मई का है। इस दिन वट वृक्ष के नीचे बैठकर पूजा और कथा सुनी जाती है। वट का मतलब होता है बरगद का पेड। बरगद
का पेड़ काफी बड़ा होता है। इस व्रत में वट का बहुत महत्व है, कहा जाता है कि इसी पेड़ के नीचे सावित्री ने अपने पति सत्यवान को यमराज से वापस
पाया था। हिंदू पुराण में बरगद के पेड़ में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास माना जाता है। इस वजह है यही माना जाता है कि इस पेड़ के नीचे बैठकर पूजा करने से हर मनोकामना पूरी होती है। पहले वट सावित्री के व्रत से तीन दिन पहले व्रत रखने की परपंरा थी लेकिन आज सिर्फ वट सावित्री के दिन ही व्रत रखा जाता है।
पूजा करने का तरीका इस दिन सुहागन महिलाएं स्नान आदि करने के बाद पूरा श्रृंगार करती हैं। इसके बाद काफी सारी महिलाएं बरगद के पेड़ के पास इकठ्ठा होती हैं और पेड़ की पूजा करती हैं। सबसें पहले महिलाएं बरगद के पेड़ पर जल चढ़ाती हैं। उसके बाद लाल या पीला धागा पेड़ के चारों ओर बांधती हैं। पंड़ित पूजा विधि पूरी करते हैं और सावित्री और सत्यवान की कथा भी सुनाते हैं।
भोग में भीगी हुई दाल, चावल और फल रखें जाते हैं। जिन महिलाओं ने इस दिन व्रत किया होता है वह प्रसाद खाकर अपना व्रत पूरा करती हैं। यह सारी रस्में पूरी करने के बाद महिलाएं अपने पति और घर के बड़े-बूढ़ों से आशीर्वाद
लेती हैं। इस दिन खाना, कपड़े और पैसे दान करने की परपंरा भी हैं।