Tuesday, April 16, 2024
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CWG 2018: पहले अनस किया करते थे लॉन्ग जंप, कोच अंसार की सलाह से ट्रैक रेस पर रखा कदम

SI News Today

मैदान पर उतरने वाले हर एथलीट का सपना मेडल जीतना होता है, वहां एथलीट आपको शायद एक जैसा दिखे, लेकिन वहां तक पहुंचने की उन सबकी कहानी अलग है. इनमें से कुछ ट्रैक के हीरो होते हैं तो कुछ असल जिंदगी के, लेकिन हर एथलीट का पोडियम पर खड़े होने का सपना पूरा नहीं हो पाता. सबकी कहानी अलग होती है. कहानी संघर्ष की, कष्ट की और परिवार के दर्द की भी होती है. कई बार जब एथलीट अपने खेल में कड़ी मेहनत के बाद भी कोई सफलता हासिल नहीं कर पाता, तब अपने मेडल्‍स को फेंक पेट पालने के लिए कोई छोटा-मोटा काम तलाशने लगता है. फिर वह अपने खेल को भूल पूरी तरह जिंदगी के खेल में उलझ जाता है. ऐसी ही कहानी है मोहम्मद अनस और उनके परिवार की.

फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह के बाद 400 मीटर की दौड़ के फाइनल में क्वालिफाई करने वाले दूसरे भारतीय मोहम्मद अनस को खेल विरासत में मिला. अनस की मां शीना खुद स्कूल के जमाने में खेल-कूद में बेहद रूची रखती थीं, तो अनस के पिता खुद एक एथलीट थे. हालांकि सफलता न मिलने पर उन्होंने खेल को छोड़ परिवार को पालने के लिए सेल्समैन की नौकरी पकड़ ली.

अनस के छोठे भाई अनीस बताते हैं कि उनके पिता अनस को खेलों में जाते देख खुश नहीं थे. इसके पीछे शायद संघर्षों के बाद न मिलने वाली सफलता होगी या फिर उनके व्यक्तिगत तौर पर खेलों में विफल होने का कारण. हालांकि उनकी मां शीना ने हमेशा उनको खेलने के लिए प्रोत्साहित किया. अनीस जो खुद राष्ट्रीय स्तर के लॉन्ग जंपर हैं, वह बताते हैं कि उनके पिता की दिल का दौरा पड़ने के कारण मौत हो गई थी. जिसके बाद परिवार बिखर गया था. ऐसे तंगी के दौर में भी अनस की मां शीना ने उन्हें खेलने से नहीं रोका.

पिता की मौत के समय अनस 10वीं में पढ़ते थे. उस भावुक समय पर अनस भी खेल को छोड़ कर परिवार संभालने में लग सकते थे, लेकिन उनकी मां ने उन्हें ऐसा नहीं करने दिया. तब उन्होंने खेल को छोड़ने की जगह कोच की सलाह पर खेल बदल जरूर लिया. दरअसल अनस शुरुआत में लॉन्ग जंप किया करते थे, लेकिन उनके कोच अंसार की सलाह पर उन्होंने ट्रैक रेस में कदम रखा. इस फैसले ने उनकी जिंदगी पूरी तरह से बदल दी.

उनके इसी फैसले का नतीजा शायद 21वें कॉमनवेल्थ गेम्स में सारी दुनिया ने देखा होगा. जब इतिहास रचते हुए अनस महज 0.2 सेकेंड से मेडल जीतते-जीतते रह गए. हालांकि उनके हाथ मेडल भले ही नहीं आया हो लेकिन उन्होंने भारतवासियों को एक उम्मीद जरूर दे दी है. उम्मीद जो मिल्खा सिंह के बाद किसी भारतीय को ट्रैक इवेंट में मेडल जीतते देखना.

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