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थोड़े से समय में चार नामचीन-पत्रकारों की देश के अलग-अलग राज्यों में गोली मारकर हत्या की घटी घटनाएं देश के स्वस्थ-लोकतंत्र के लिए खतरनाक है….केंद्र सरकार बेंगलूरु में एक एनजीओ की संचलिका-एक नामचीन पत्रकार श्रीमती गौरी लंकेश के अलावा दुसरे पत्रकारों की हत्या का भी संज्ञान लेवे और घटी-वारदातों का पर्दाफास कर घटनाओं को अंजाम देने वाले हत्यारे-अपराधियों को जेल के सीखचों में डाला जाये.कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार के गृह-मंत्री ने पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या में माओवादियों का हाथ होने की आशंका जताई है.
निष्पक्छता के निर्वहन में कोई भी पत्रकार “Left-Right wing” वामपंथी या दक्षिणपंथी नहीं हो सकता है. विचारधाराओं को समझने वाला सिर्फ एक पत्रकार होता है और विचारधाराओं में डूबने वाला दलीय और वैचारिक “प्रवक्ता” होता है पत्रकार तो वह हरगिज़ नहीं. वैचारिक-खांचों में धंसी जनता भी पत्रकारों की हत्याओं का तगड़े से विरोध करने के लिए सड़क पर उतरे. श्रीमती लंकेश की बेंगलुरू में मंगलवार देर शाम को उनके आवास पर आठ-गोली मारकर की गई हत्या पर “हार्दिक संवेदनाऐं”.
वैचारिक मतभेद और असहमति पर हत्या कर देना सुख और सुकून तो कदापि नहीं दे सकती. गाँधी से आगे विवेकशील-पत्रकारों को मारने से देश में विद्यमान स्थितियों के चिंताजनक होना दर्शाता है. वैचारिक खांचों में फंसे लोग समझ लेवें सच बोलने और सच-लिखने वाले अभी इतने है कि बम-गोलियां, खंजर, तलवारें और त्रिशूल कम पड़ जाएंगे….