Friday, July 26, 2024
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अगर ‘जुनैद’ न होता तो वो ज़िंदा होता

SI News Today

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रीवा सिंह “मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना, हिंदी हैं हम वतन है हिंदोस्तां हमारा”… इन पंक्तियों को तबतक पढ़ें जबतक आप खुद को यकीन न दिला सकें कि ये किताबी बातें हैं जिनका वास्तविकता से कोई सरोकार नहीं है। ये पंक्तियां सभागारों में पढ़कर फूले न समाने के लिए ठीक हैं, संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में भारतवर्ष को परिभाषित करने के लिए भी अच्छी हैं पर ये आदर्श स्थिति है और इसका यथार्थ से कोई संबंध नहीं है।

भारत-भूमि वो स्थान है जहां आपको किराये के मकान के लिए भी अपना धर्म और जाति बताने की ज़रूरत पड़ती है। जहां लोग नाम जानकर चरित्र-चित्रण करने की क्षमता रखते हैं। सिर पर सफेद टोपी आते ही इंसान ‘संदिग्ध’ हो जाता है और लंबी दाढ़ी रखने वाला आईएसआईएस का एजेंट। फ्रिज में रखा मटन जानलेवा हो जाता है अगर वो फ्रिज राम को नहीं, रहमान को मानने वाले का हो। आप गाय ले जा रहे हैं तो आप उससे दूध निकालेंगे या गोश्त ये आपको बताने का मौका नहीं मिलेगा, आपका नाम खुद-ब-खुद बता देगा।
आप किसी मोहल्ले में रहते हों या सियाचिन के ग्लेशियर पर, आप कितने हिंदुस्तानी हैं और कब आपको पाकिस्तान चले जाना चाहिए ये यहां की ‘भीड़’ बताएगी क्योंकि आपके नाम के पहले ‘श्री’ नहीं, ‘मोहम्मद’ लगता है। प्रमाणपत्र बांटते रहने की यहां कोई एकमात्र शाखा नहीं है। देशसेवा में लोग चहूं ओर अनवरत लगे हुए हैं। आपको ग़ुलाम अली साहब पसंद हैं तो आप भारत से प्रेम नहीं करते। आप आतिफ़ असलम के गाने पर झूमते हैं तो आपको चैन-ओ-अमन पसंद नहीं। आपको सरफ़राज़ का खेल लुभाता है तो आप देशद्रोही हैं। आपको हरा रंग आकर्षित करता है तो पाकिस्तान क्यों नहीं चले जाते! सच्चे हिंदोस्तानी होने के प्रमाण पत्र देने वाली यहां अनेकों सत्यापित संस्थाएं खुली हैं।

ये सोचने की ज़हमत क्यों उठायी जाए कि कैसा लगता होगा उस इंसान को खुद के लिए देशद्रोही सुनकर जो बचपन में तिरंगा लेकर ‘जय हिंद’ बोलता हुआ पूरे घर में दौड़ लगाता हो। कितनी चुभन भरे होंगे पाकिस्तानी होने के ताने उस जिस्म के लिए जिसकी लहू का हर कतरा राष्ट्र परेड की धुन सुनकर तेज़ी से दौड़ उठता रहा। उन्हें हर बार अपनी देशभक्ति जतानी पड़ती है, सत्यापित करानी पड़ती है। ज़रा सोचिए कितनी घुटन होती होगी जब वो निगाहें सामने प्रेम से देखें और जवाब में उन्हें आशंका भरी नज़रों से देखा जाए। कितनी कोफ़्त होती होगी जब बस या ट्रेन में किसी दाढ़ीवाले के बैठते ही उसके बगल में बैठा व्यक्ति किनारे की ओर सिकुड़ जाए।

जुनैद ईद के लिए कपड़े खरीदने गया था। वो मेवात में पढ़ता था, इमाम बनना चाहता था। उसका करीबी दोस्त स्तब्ध होकर कहता है – हम सभी को चिकन या मटन बिरयानी पसंद थी जबकि जुनैद सोयाबीन बिरयानी पसंद करता था जिसपर हम सबको ताज्जुब होता था। वो जब घर आता तो मैं अम्मी से उसके लिए सोयाबीन बिरयानी बनाने को कहता, और उसे ये कहकर मार डाला कि वो बीफ़ खाता है। जुनैद का भाई बताता है कि – उसे पतंग उड़ाने का बहुत शौक था, पागल था वो पतंग के पीछे। एक बार तो पतंग के चक्कर में ही नीचे मुंह के बल गिर पड़ा। उसका सपना था कि अपनी बाइक हो। उसने इस बारे में बात करते हुए कहा था कि अपनी पॉकेट मनी से 300-400 जितना हो सके बचाएंगे ताकि जब कुछ पैसे हो जाएं तो एक सेकेंड हैंड पल्सर खरीद सकें। भाई ये कहते हुए रो पड़ा कि – अब हम क्या करेंगे उसके बचाए हुए पैसे का!

ये जुनैद के परिजनों के सुनाये किस्से हैं। जुनैद एक आम लड़का था, बाकी सभी की तरह। उसके सपने साधारण थे और मासूम भी। पतंग सभी उड़ाते हैं, प्रधानमंत्री जी भी। बाइक चलाना टीनेज में हर लड़के की ख्वाहिश होती है। उसने हेरोइन की तस्करी करने की नहीं सोची थी। वो हथियार सप्लाई नहीं करता था। वो बड़ा होकर आईएसआईएस एजेंट नहीं, इमाम बनना चाहता था पर मारा गया क्योंकि वो जुनैद था। उसे जानने वाला कोई भी अब उस ट्रेन से सफर करने को तैयार नहीं है। उस क्षेत्र के लोगों को यकीन हो चला है कि वो खतरे में हैं क्योंकि उनका क़ौम अलग है। चलिए इस डर को दीवार पर टांगकर उसपर माला चढ़ा दें ताकि फिर से ‘अखण्ड भारत’ के नाम की नारेबाज़ी हो सके।
यदि इतने के बाद कोई बढ़कर कहे कि वो यहां असुरक्षित महसूस करता है तो उसे पाकिस्तान भेजने का इंतज़ाम करने के लिए एक पूरी फ़ौज तैयार है। आपने देश को असहिष्णु कहा तो ये ‘भीड़’ आपको ट्वीटर पर घसीटेगी और सड़क पर पीटेगी ताकि आपको याद रहे कि हम विश्व के सर्वाधिक सहिष्णु मुल्क में रहते हैं।

अगली बार जब देश की परिभाषा लिखी जाए तो उसे चुनावी मेनिफेस्टो-सा लुभावना न बनाकर सच लिखा जाए ताकि लोगों के कानों में सुन्न पड़ चुके पर्दों तक ये बात पहुंचे कि मोहम्मद इक़बाल का हिंदोस्तां कितना बदल गया है। अगली बार जब मां भारती की तस्वीर बने तो उस पर उन तमाम दंगों के धब्बे भी बनाये जाएं जिनमें हर कौम के मासूम मारे गए क्योंकि यही आज के भारतवर्ष की तस्वीर है।

 

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