24 अप्रैल 2017 मात्र एक तारीख नही है एक काला दिन है भारत सरकार के लिए।जो दावे करती दिख रही कि नोट बंदी से नक्सलियों की कमर टूट गयी।300 कायर नक्सलियों ने 150 जवानों पर अचानक हमला कर हमारे 25 सपूतों को हमसे छीन लिया।अब प्रश्न ये है कि आंतरिक सुरक्षा पर 2014 से पहले प्रश्न चिन्ह लगाती यह सरकार और ताज हमले पर विपक्ष में बैठ कर देश की सुरक्षा को राम भरोसे बताती यह सरकार अब खुद क्यों इतना कमजोर नज़र आ रही। पठानकोट ,उरी,सुकुमा,कुपवाड़ा,JNU कांड, पत्थरबाज और भी कई दंश यह सरकार क्यों चुपचाप सह रही।आखिर कहां गयी डोभाल साहब की 1984 वाली फुर्ती क्या केवल हम इनकी कहानियां ही सुनते रहेंगे।आज एक प्रश्न मन मे उठ रहा कि रक्षा बजट बढ़ाने और पाकिस्तान पर सख्ती बरतने या 58000 करोड़ के राफेल लड़ाकू विमान से क्या हम अपने भितरघातियों से सुरक्षित हैं?आखिर चूक कहाँ,क्या हमारी सुस्त नीतियां इनकी जिम्मेदार हैं।1887 में गठित आंतरिक सुरक्षा के लिए इंटेलिजेंस बयूरो और उसका लक्ष्य “जागृतं अहर्निशं”मतलब हमेशा सतर्क लेकिन 24 अप्रैल 2017 को ये सतर्कता कहां।हम पर नक्सलियों ने कोई पाकिस्तान से आकर हमला नहीं किया है मात्र 5635.79 वर्ग किलोमीटर वाले एक जिले में 300 से ज्यादा लोग अत्याधुनिक हत्यार और I.E.D विस्फोटक से लैस होकर हमारे जवानों पर अचानक टूट पड़े।क्या हमारी एजेंसियां एक ऐसे जिले जो हमेशा से ही संवेदनशील रहा वहां पर भी इतनी लचर हैं।क्या इतनी बड़ी गलती का कोई भी जिम्मेदार नहीं।12 लाख सैनिकों की संख्या से ज्यादा के अर्धसैनिक बल को 2.5 लाख के अबादी वाले जिले में इतना असहाय देख कर भारत के खुफिया तंत्र पर एक प्रश्न तो बनता ही है।आज तक हमारे देश के किसी भी गृह मंत्री ने खुफिया तंत्र की कमज़ोरियों पर प्रकाश नही डाला,पाकिस्तान में सर्जिकल स्ट्राइक करने वाला देश अपने देश मे इतना कमजोर।क्या पाकिस्तान और चीन जैसे देश ने हमारी यह कमज़ोरी नहीं भाँपी होगी।हमने तो कई बार अपने ड्रॉइंग रूम में बैठ कर इस विषय पर चर्चा की कि नक्सल समस्या में चीन हमेशा से उत्प्रेरण का काम करता आया है।लेकिन कभी कोई भी ऐसी नीति चीन के खिलाफ बनाई गई जो उसके इस नापाक मंसूबों पर पानी फेर सके। किसी विद्वान ने कहा कि भारत विश्व का सबसे सुरक्षित देश क्योंकि यहां की सुरक्षा स्वयं ईश्वर ही कर रहा,नहीं तो इतनी लचरता के बावजूद भी यह देश और यहां के लोग अपने को कभी भी असुरक्षित नहीं महसूस करते।अगर प्रकाश डाला जाए तो कमियां कहाँ। हमारा गृह मंत्रालय लगभग हर साल ही इंटेलीजेंस बयूरो की भर्तियां करता आया लेकिन आज भी पूरे भारत मे 3500 से ज्यादा ACIO के पद खाली हैं ऐसा ही कुछ पुलिस और लोकल इंटेलिजेंस यूनिट का भी हाल है ये भी संसाधन की कमियों से जूझते दिखेंगे।हमने भले ही आज कश्मीर ,गुजरात ,पंजाब और राजस्थान जैसे इलाकों में चौकसी बढ़ा रखी हो लेकिन क्या बहराइच,बलरामपुर,गोरखपुर जैसे छोटे जिलों में नेपाल बॉर्डर पर होती आपराधिक गतिविधियों पर हमारा ध्यान गया।क्या यहां पर होती लचरता को हमसे खार खाये बैठे पड़ोसी मुल्कों ने नहीं भांपा होगा।युद्ध में शहीद होता जवान देख कर दुख से ज्यादा उसकी वीरता पर गर्व होता है लेकिन आक्रोश तो तब मन में आता है जब अपने सुरक्षित देश के अंदर अपने कैम्प में सोते हुए जवान को आतंकवादी जिंदा जला देते हैं।जो जवान हमारे जीवन की रक्षा कर रहे हैं। क्या हमारा तंत्र उनकी नींद की भी जिम्मेदारी नहीं उठा सकता है। अब सुकमा से उठी उस परिवार की करुण पुकार जो हमारे मन की शांति को चीर कर हमारे पौरुष को ललकारती है,और हम खुद को इतना असहाय प्रदर्शित कर के क्या उन शहीदों के आत्मसम्मान को ठेस नहीं पंहुचा रहे। हमे अपनी सरकार पर पूरा भरोसा है कि आज नहीं तो कल हम इन सारी समस्याओं से निपटेंगे।लेकिन अपने इतिहास में लिखते इस काले अध्यायों का हिसाब आने वाली पीढ़ियों को कौन देगा।अब वक्त आ गया है कि हिंदुस्तान की सुरक्षा की जिम्मेदारी का प्रभार भगवान से लेकर खुद उठाया जाए।…….पुष्पेंद्र प्रताप सिंह
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