Friday, July 26, 2024
featuredमेरी कलम से

रफ्तार और विकास

SI News Today

पुष्पेन्द्र प्रताप सिंह-रेल गाड़ी रेल गाड़ी….जी हां अशोक कुमार जी ने जिस अंदाज में इस गाने को फिल्माया था ठीक उसी अंदाज में रेल गाड़ी का चित्रण हमारे मन में आज तक चल रहा था। पहाड़, नदियों,गांव, खेतों,शहरों के बीच से निकलती रेल गाड़ी भारत के प्राकृतिक, सांस्कृतिक,और भारतीय समाज के रहन सहन का असली चरित्र चित्रण करती है। आज तो तकनीक से हर कोई परिपूर्ण हैं लेकिन कुछ समय पहले जिस आदमी के मुंह से हम रेल गाड़ियों के नाम और समय सुनते थे तो लगता था कि यह व्यक्ति कितना जानकार है। आंकड़ों के मुताबिक भारत में प्रतिदिन करीब 2.5 करोड़ लोग लगभग पूरी ऑस्ट्रेलिया की आबादी भारतीय रेल से यात्रा करती है। लेकिन हमारी भारतीय रेल पर एक कलंक भी लगता आया है कि यह विश्व की सबसे असुरक्षित और सबसे लापरवाह रेल बन सी गयी है। इसको सुधारने के लिए हमारी सरकारों ने काफी प्रयास भी किये हैं लेकिन समस्त भारत का भार उठाने वाले इतने बड़े नेटवर्क के लिए यह प्रयास नाकाफी है। वर्तमान सरकार ने जिस हिसाब से भारतीय रेल को सुधारने के लिए क्रांतिकारी कदम उठाए ठीक उसी के विपरीत उससे भी तेजी से दुर्घटनाएं सामने आईं है। अब तो आलम यह है कि रोज कहीं न कहीं कोई दुर्घटना समाचार में सुनने को मिलती है। अब लोगों का विश्वास रेल के सुरक्षित सफर से उठने लगा है। और रेल दिनों दिन भारत सरकार के लिए चुनौती बन कर दौड़ने लगी और इन्ही चुनौतियों के बीच मोदी सरकार ने पूरे भारत में बुलेट ट्रेन के हीरक चतुर्भुज जाल बिछाने की बात की। और पहले रुट जो कि मुम्बई से अहमदाबाद जो 508 किलोमीटर का 12 स्टेशनों के साथ होगा उसका भी शिलान्यास जापान के प्रधानमंत्री के साथ गुजरात में कर दिया। आंकड़ों की मानें तो बुलेट ट्रेन पर करीब 1.2 लाख करोड़ का खर्च आएगा और अगर बात रेलवे सुरक्षा की हो तो अनिल काकोडकर कमेटी का अध्यन किया जाए तो यह बात सामने आती है के भारत में 64000 किलोमीटर के रेलवे तंत्र की दुरुस्तीकरण को लगभग एक लाख करोड़ रुपये की आवश्यकता है। इसी बात को लेकर भारत के कुछ विशिष्ट बुद्धिजीवियों की फौज भारत सरकार को घेरने में लगी है। उनका मानना हैं कि सरकार बड़े सपनों के चक्कर में गरीब जनता को भूल सी गयी है।और मोदी सरकार भी कांग्रेस की 60 साल वाली नाकारापंती और बेईमानी के आंकड़े गिना कर अपना बचाव करती दिख रही है। लेकिन जो बुद्धिजीवि भारत सरकार को कोस रहे हैं वो जनता से एक आंकड़ा छुपा भी रहें हैं। की बुलेट ट्रेन के खर्च का 80% जापान लोन के रूप में देगा। जिसको 0.1% ब्याज दर से हमको 50 साल में जापान को लौटाना होगा। विरोधी पक्ष यह भी कह रहा है कि बुलेट ट्रेन एक सामूहिक परिवहन नहीं है और इसका किराया आम आदमी की पहुंच से काफी दूर भी है। यही बात हवाई जहाज के लिए भी सामने आती है लेकिन वह भारत में सफल है और बुलेट ट्रेन का किराया हवाई जहाज से काफी कम होगा।अब आप केजरीवाल जी की बात पर गौर मत करिए जिन्होंने एक तरफ का किराया 75 हज़ार बताया था। वैसे इस तरह का विरोध कोई नया नही है मोबाईल, कम्प्यूटर और मारुति को लेकर भी यही वर्ग विरोध का झंडा लेकर छाती पीट रहा था। एक बात और सामने आती है कि बुद्धिजीवियों का कहना है कि अमेरिका,फ्रांस,जर्मनी जैसे अमीर देश भी बुलेट ट्रेन के पक्ष में नहीं दिखाई देते,तो उन लोगों को यह भी पता होना चाहिए कि इन देशों में सड़क पर दौड़ती गाड़ियां किसी बुलेट से कम नहीं हैं और यहां की सड़कों कि तुलना और कम आबादी भी रफ्तार का एक और कारण हैं। विरोध का आलम तो यह है कि जब 1969 में देश को भारतीय रेल ने राजधानी एक्सप्रेस से रूबरू करवाया तो लोगों ने कहा कि इस गरीब देश मे इस रेल का क्या काम। कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना किसी के कहने से विकास की गाड़ी को रोक देना भी मूर्खता है। बस विकास की नीति संजय गांधी की तरह दमनकारी न हो। बुलेट ट्रेन को भारत में दौड़ाने का काम NHSRC (National High Speed Rail Corporation) करेगा। इसके लिए वड़ोदरा में एक प्रशिक्षण केंद्र खोला जाएगा जिसमे 4000 कर्मचारियों को नई तकनीकियों का प्रशिक्षण दिया जाएगा। प्रो० जी रघुराम निदेशक IIM बैंगलोर के अनुसार इस परियोजना से अनुमानतः 5 करोड़ से अधिक जनसमुदाय का आर्थिक विकास होगा। अब देखना यह कि बुलेट ट्रेन जिस क्षेत्र में होगी वहां के विकास की रफ्तार कितनी तेज़ होगी। भारत में कुछ समय से एक बात यह देखने को मिल रही है कि योजना चाहे जैसी हो उसका विरोध ही करना है। और बुद्धिजीवियों के अनुसार जब हर भारतीय का पेट भर जाए और एक भी गरीब इस देश में न रहे तो ही आधारभूत सरंचना का विकास शुरू करो जो कि बेवकूफी है। लेकिन एक बात तो कहूंगा ही, कि मोदी सरकार अपने बड़े विजन के आगे छोटे और गरीब तबके की पहुंच से कहीं न कहीं दूर तो जा ही रही है। चाहे वह पेट्रोल डीजल के दाम हो या प्याज़ और टमाटर के। हम मध्यम वर्गीय तबके से आते हैं जिसको पेट्रोल,और डीजल प्याज़ टमाटर से रोज जंग लड़नी है। बुलेट ट्रेन पर हम रोज़ उद्योगपतियों को घूमते देखना पसंद करेंगे जब हमारा भी दो वक्त के रोटी का जुगाड़ आसानी से हो जाये।।

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