Thursday, July 25, 2024
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सत्तरवें कान फिल्म समारोह: मंटो-सच बोलने का साहस

SI News Today

सत्तरवें कान फिल्म समारोह में भारतीय अभिनेत्री नंदिता दास और नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने भारतीय पैविलियन में अपनी आनेवाली फिल्म ‘मंटो’ पर विस्तार से चर्चा की। इस फिल्म की निर्माता वायकॉम 18 कंपनी है, जिसने अनुराग कश्यप की ‘गैंग्स आॅफ वासेपुर’ और नीरज घायवान की ‘मसान’ का निर्माण किया था जो पिछले सालों में कान फिल्म समारोह मे दिखाई गई थी। मंटो का किरदार निभा रहे नवाजुद्दीन सिद्दिकी का कहना है कि मंटो सच बोलने का साहस देते हंै। हम सबके भीतर मंटो है, किसी में थोड़ा कम, किसी में थोड़ा ज्यादा। वह कहते हैं,‘मैं सोचता था कि जीवन में कभी झूठ नही बोलूंगा पर मुंबई जाने के बाद रोज झूठ बोलना पड़ता है। मंटो बनकर लगा कि सच बोलकर भी जिंदा रहा जा सकता है।’

मंटो ने उन्हें लगातार झूठ बोलने के अपराधबोध से राहत दी। यह किरदार निभाना चुनौतीपूर्ण था। एक तो 1940 में जाकर मंटो को अपने भीतर उतार लेना दूसरे उनकी कहानियों के चरित्रों को बाहर लाना। वह कहते हैं कि पहली बार लगा कि किसी ऐसे लेखक का किरदार निभाना जिसे करोड़ों लोग जानते हैं, कितना मुश्किल काम है। निर्देशक के रूप में नंदिता दास पर नवाजुद्दीन सिद्दिकी का कहना है कि वे खुद एक बड़ी अभिनेत्री हैं। जब कोई ऐक्टर फिल्म बनाता है तो सबसे बड़ा खतरा यह होता है कि पूरी फिल्म उसी की ऐक्टिंग की कॉपी लगती है। नंदिता ने कभी नहीं कहा कि ऐसा करो या वैसा करो। उन्होने बस सीन की व्याख्या की और हमें आजाद छोड़ दिया। मेरे लिए अभिनय के दो ही तरीके होते हैं। या तो पहले शारीरिक रूप से किरदार को अपने भीतर उतार लेना और फिर उसे मानसिक स्तर पर जीना या इसका उलटा करना।नवाजुद्दीन सिद्दीकी अकेले ऐसे भारतीय अभिनेता हैं जिनकी फिल्में कान फिल्म समारोह में सबसे अधिक बार दिखाई गई है। वह 2012 से लगातार कान फिल्म समारोह में आ रहे हैं। वह कहते हैं कि 2013 में जब नंदिता दास शार्ट फिल्म की जूरी में थी, तभी इस फिल्म की योजना बनी थी और मैंने हां की थी। अब ‘मंटो’ करने के बाद मुझे दूसरी भूमिकाएं करने के लिए एक अंतराल चाहिए। मंटो ने भीतर तक बदल दिया है । उनका इतना गहरा असर है कि अभी और कुछ सोचना मुमकिन नहीं।

नंदिता दास कहती है कि उन्होंने 2012 में इस फिल्म के बारे में सोचना शुरू किया जब मंटो की जन्म शताब्दी मनाई जा रही थी। 2013 में नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने जब इस फिल्म के लिए दो साल देने का वायदा किया, तब उनके पास समय था। बाद में वह बड़े स्टार बन गए इसलिए थोड़ी देर हो गई। अब अगले साल फिल्म को रिलीज करने का इरादा है। यह फिल्म मंटो पर भारत और पाकिस्तान में बनी दूसरी फिल्मों से अलग है क्योंकि जहां हमारी फिल्म खत्म होती है, वहां उनकी फिल्म शुरू होती है। उम्मीद है कि हमारी फिल्म का भारत पाकिस्तान सहित सारी दुनिया में स्वागत होगा।नंदिता दास कहती है कि उनकी फिल्म मंटो के जीवन, उनकी दुनिया, जिसमें उनका परिवार और उनकी मित्र मंडली है के साथ उनकी कुछ कहानियों और किरदारों पर फोकस होगी। वह स्वीकार करती हैं कि मंटो और उनकी बेटियों के प्रसंग में उन्हें अपने चित्रकार पिता जतिन दास के साथ के अनुभव बार बार याद आते रहे। वह कहती हैं, ‘मेरे पिता मंटो की तरह ही अक्खड़ इनसान हैं। कहीं भी कुछ भी बोल देते हैं। पर वह पिता के रूप में प्यारे इनसान हैं। मैंने खुद को मंटो की बेटियों की जगह रखकर देखा।’ नंदिता दास कहती हंै कि फिल्म लिखते हुए उन्होंने हर चरित्र को खुद करके देखा, ‘मेरा मानना है कि चाहे आप लाख कलात्मक ऊंचाईवाली फिल्म बना लें, यदि आपके पास कहने के लिए कुछ खास नहीं है तो फिल्म नहीं चलेगी। यदि फिल्म नहीं चली तो फिल्म बनाने का कोई मतलब ही नहीं बचता। मेरी पिछली फिल्म ‘फिराक’ दुनिया के साठ फेस्टिवलों में गई। खूब चर्चा हुई पर बॉक्स आॅफिस पर उतनी नहीं चली जितनी चलनी चाहिए थी। इसलिए इस बार मैंने वायकॉम 18 और दूसरी कंपनियों से करार किया क्योंकि मार्केटिंग मेरे बस का काम नहीं है।’

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