Source :Viwe Source
शाहिल मिश्रा-
( इस पोस्ट को किसी भी धर्म का विरोध करने के लिए नही लिखा गया है। केवल हिन्दू धर्म मैं RIP से श्रद्धांजलि क्यों नहीं देनी चाहिए यह जानकारी देने हेतु लिखी गई है । जाने अनजाने मैं कई बाते ऐसी होती है की हमें उसका सही मतलब पता ही नहीं होता है और हम उसे इस्तेमाल किये जाते है।)
आजकल देखने में आया है किसी के भी दिवंगत होने पर RIP लिखने का “फैशन” चल पड़ा है। कान्वेंटी दुष्प्रचार तथा विदेशियों की नकल के कारण हमारे युवाओं को धर्म की मूल अवधारणाओं का भान ही नहीं है….
RIP शब्द का अर्थ होता है “Rest in Peace” (शान्ति से आराम करो)। यह शब्द उनके लिए उपयोग किया जाता है जिन्हें कब्र में दफनाया गया हो। क्योंकि ईसाई अथवा मुस्लिम मान्यताओं के अनुसार जब कभी “जजमेंट डे” अथवा “क़यामत का दिन” आएगा, उस दिन कब्र में पड़े ये सभी मुर्दे पुनर्जीवित हो जाएँगे… अतः उनके लिए कहा गया है, कि उस क़यामत के दिन के इंतज़ार में “शान्ति से आराम करो”।
लेकिन हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार शरीर नश्वर है, आत्मा अमर है। हिन्दू मृतक को जला दिया जाता है, अतः उसके “Rest in Peace” का सवाल ही नहीं उठता। हिन्दू धर्म के अनुसार मनुष्य की मृत्यु होते ही आत्मा उसे छोड़कर किसी दूसरे नए जीव/काया/शरीर/नवजात में प्रवेश कर जाती है… उस आत्मा को अगली यात्रा हेतु गति प्रदान करने के लिए ही श्राद्धकर्म की परंपरा का निर्वहन किया जाता है। अतः किसी हिन्दू मृतात्मा हेतु “विनम्र श्रद्धांजलि”, “श्रद्धांजलि”, “आत्मा को सद्गति प्रदान करें” जैसे वाक्य विन्यास लिखे जाने चाहिए। जबकि किसी मुस्लिम अथवा ईसाई मित्र के परिजनों की मृत्यु पर उनके लिए RIP लिखा जा सकता है…
अतः कोशिश करें कि भविष्य में यह गलती ना हो एवं हम लोग “दिवंगत आत्मा को श्रद्धांजलि” प्रदान करें… ना कि उसे RIP (apart) करें।